विवेक शुक्ल
आज से 95 साल पहले 1929 में राष्ट्रपति भवन बनकर तैयार हुआ था. तब से ही यहां के दरबार हॉल और अशोक हॉल को खास स्थान हासिल था. पर अब एडवर्ड लुटियंस के डिजाइन और देखरेख में बने राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल और अशोक हॉल के नामों में बदलाव करा गया है. जब राष्ट्रपति भवन बना तो इसका नाम वायसराय हाउस था. इस इमारत का निर्माण भारत में ब्रिटेन के वायसराय आवास के लिए किया गया था. और 26 जनवरी, 1950 से इसे राष्ट्रपति भवन कहा जाने लगा. राष्ट्रपति भवन की तरफ से गुरुवार को जारी की गई एक प्रेस रिलीज के मुताबिक, दरबार हॉल का नाम अब गणतंत्र मंडप और अशोक हॉल का नाम अशोक मंडप होगा.
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आशीर्वाद की मुद्रा में बुद्ध
बेशक, दरबार हॉल राष्ट्रपति भवन का सबसे भव्य हॉल है. इधर ही देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद से लेकर मौजूदा राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्म ने राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण की है. जगदीप धनखड़ ने 11 अगस्त, 2022 को राष्ट्रपति भवन के दरबार में एक संक्षिप्त शपथ ग्रहण समारोह में भारत के 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 71 वर्षीय श्री धनखड़ को पद की शपथ दिलाई थी. यहां पर ही केन्द्रीय मंत्री शपथ लेते रहे हैं. इसमें 33 मीटर की ऊंचाई पर 2 टन का झाड़फानूस लटका हुआ है. ब्रिटिश शासन के दौरान, इसे सिंहासन कक्ष के रूप में जाना जाता था. वायसराय और उनकी पत्नी के लिए दो अलग-अलग सिंहासन थे जिसके स्थान पर अब राष्ट्रपति की एक कुर्सी को रखा गया है. इधर ही पांचवीं शताब्दी के गुप्त काल से जुड़ी आशीर्वाद की मुद्रा में गौतमबुद्ध की प्रतिमा है. इस हॉल का प्रयोग राजकीय समारोहों, रक्षा अलंकरण समारोह, पद्म पुरस्कार आदि प्रदान करने के लिए किया जाता है. दरबार हॉल में राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह से पहले और बाद में राष्ट्रगान होता है.
अशोक हॉल में राजनयिक
राष्ट्रपति भवन में अशोक हॉल का भी खास महत्व है. अब इसका नाम हो गया है अशोक मंडपम. यह 32 ़ 20 मीटर का आयताकार कक्ष है. इधर विभिन्न देशों के राजदूत और उच्चायुक्त राष्ट्रपति को अपने परिचय पत्र पेश करते हैं. भारत में इसे मूल रूप में शाही नृत्य-कक्ष के रूप में निर्मित किया गया था. इसका फर्श लकड़ी का है, कक्ष में एक केन्द्रीय नृत्य स्थान है और तीन ड्योढ़ियां हैं. राष्ट्रपति भवन के बहुत से अन्य कक्षों और प्रकोष्ठों से हटकर अशोक हाल की छत पर चित्रकारी की गई है. यह चित्रकारी फारसी शैली में है. छत की मुख्य चित्रकारी में शाही शिकार का दृश्य दशार्या गया है जबकि कोनों में दरबारी जीवन के दृश्य चित्रित हैं. अधिकतर रंग गहरे हैं. क्योंकि यह चित्रकारी चमड़े पर की गई है, इसलिए सफेद रंग भी भूरापन लिए हुए दिखाई देता है. यह कार्य लेडी विलिंग्डन द्वारा अपने पति लॉर्ड विलिंग्डन के वायसराय काल के दौरान करवाया गया था. लोदी गॉर्डन का निर्माण लेडी लेडी विलिंग्डन ने ही करवाया था.
इस बीच, राष्ट्रपति भवन में एक बैंक्विट हॉल भी है. इसमें 104 व्यक्ति बैठ सकते हैं. इसकी दीवारों पर सभी पूर्व राष्ट्रपतियों के चित्र सजे हुए हैं. यहां पर राष्ट्रपति विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के लिए भोज की व्यवस्था करते हैं. जाहिर है कि इन कार्यक्रमों में देश के अति विशिष्ट नागरिक ही शिरकत करते हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि राष्ट्रपति भवन के इन सभी हॉल का डिजाइन तैयार करने में एडवर्ड लुटियंस ने पूरी तन्मयता का परिचय दिया है.
बहरहाल, राष्ट्रपति भवन के निर्माण में एडविन लुटियन तथा मुख्य इंजीनियर ‘ूज कीलिंग के अलावा बहुत से भारतीय ठेकेदारों की भी भूमिका थी. नई दिल्ली क्षेत्र की जिस सड़क को अब टालस्टाय रोड कहा जाता है, इसके पहले नाम हयूज कीलिंग रोड ही था. एक बात और कि राष्ट्रपति भवन के निर्माण में दो भारतीय ठेकेदारों हारून-अल-राशिद और सरदार सोभा सिंह मुख्य रूप से जुड़े थे. हारून अल-राशिद लाहौर से थे. वे नई दिल्ली के निर्माण के बाद वापस लाहौर लौट गए थे. सोभा सिंह यहा पर ही रहे. उन्होंने अपना लिए 1 जनपथ पर बंगला बनवाया था. उन अनाम मजदूरों को कैसे नजरअंजाद कर सकते हैं, जिन्होंने राष्ट्रपति भवन को अपनी दिन-रात की मेहनत से खड़ा किया था. राष्ट्रपति भवन को बनाने वाले अधिकतर मजदूर राजस्थान के जयपुर,जोधपुर,भीलवाड़ा वगैरह से सपत्नीक आए थे. इन्हें शुरूआती दिनों में पहाड़ी धीरज में रहने की जगह मिली थी. खुशवंत सिंह बताते थे कि इन राजस्थानी मजदूरों को बागड़ी कहा जाता था. ये सब अपने गांव-देहातों से पैदल ही दिल्ली आए थे. इन सीधे-सरल मजदूरों को रोज एक रुपए और महिला श्रमिकों को अठन्नी मजदूरी के लिए मिलते थे. अगर मजदूर मुख्यरूप से राजस्थान से यहां पर आए थे,तो संगतराश आगरा और मिजार्पुर से थे. कुछ भरतपुर से भी थे.