महेंद्र बाबू कुरुवा
बीते दिनों खबर के आते ही कि ईरान के इस्फहान शहर के करीब एक प्रमुख एयरबेस के पास एक बड़ा धमाका हुआ है, अमेरिकी अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की कि इस्राइल ने ड्रोन से ईरान में अपना सैन्य अभियान छेड़ दिया है। इससे ऐसा लगता है कि इस्राइल ने रणनीतिक दृष्टि से अपना लक्ष्य चुना है, क्योंकि इस्फहान शहर ईरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े स्थलों का घर है, जिसमें इसका भूमिगत नतांज संवर्धन स्थल भी है।
पश्चिम एशिया पिछले एक अप्रैल से ही उबल रहा है, जब इस्राइल ने सीरिया स्थित ईरान के दूतावास पर हमला किया था। उसके बाद इस क्षेत्र में भू-राजनीतिक तनाव बढ़ गया है, क्योंकि पहली बार ईरान ने पलटवार करते हुए सीधे इस्राइल पर हमला किया, जिसकी प्रतिक्रिया में इस्राइल ने इस्फहान में ताजा हमला किया है। दोनों धुर विरोधी मुल्कों के बीच दशकों से जो छद्म युद्ध चल रहा था, उसने अब गंभीर मोड़ ले लिया है, जिसने वैश्विक अर्थव्यवस्था और राजनीतिक स्थिरता के लिए चिंता बढ़ा दी है। पूरी दुनिया उत्सुकता से इन घटनाक्रमों को देख रही है और इसके प्रभावों की प्रतीक्षा कर रही है। यह एडवर्ड लॉरेन्ज के ‘बटरफ्लाइ इफेक्ट’ की याद दिलाता है, जो कहता है कि तितली के पंख फड़फड़ाने से भविष्य में हजारों मील दूर के मौसम पर प्रभाव पड़ता है। इस अवधारणा की कल्पना एक तितली द्वारा पंख फड़फड़ा कर तूफान पैदा करने से की गई है। यह ईरान और इस्राइल के बीच बढ़ते तनाव तथा सामान्य रूप से शेष दुनिया एवं विशेष रूप से भारत पर पड़ने वाले प्रभावों के संदर्भ में सटीक है। भारत पर इस संघर्ष का सबसे बड़ा असर कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के जरिये पड़ेगा। यह इसलिए, क्योंकि भारत कच्चे तेल का दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है और पश्चिम एशिया वैश्विक कच्चे तेल के एक-तिहाई का आपूर्तिकर्ता है। ईरान और इस्राइल के बीच तनाव बढ़ते ही आपूर्ति संकट के कारण कच्चे तेल की कीमतें बढ़ गईं। चूंकि भारत अपनी जरूरत के 85 फीसदी कच्चे तेल की पूर्ति आयात से करता है, इसलिए कीमतों में जरा-सी वृद्धि होने पर भी आयात बिल काफी बढ़ जाता है, जिससे न केवल चालू खाते का घाटा बढ़ता है, बल्कि व्यापार संतुलन भी बिगड़ जाता है। दूसरी तरफ, पेट्रोल एवं डीजल की कीमतें बढ़ जाने से परिवहन लागत बढ़ जाती है, जो मुद्रास्फीति बढ़ाती है और आम आदमी का जीवन कठिन हो जाता है।
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यह भी ध्यान देना प्रासंगिक है कि ईरान लेबनान में हिजबुल्ला, यमन में हूती और फलस्तीन में हमास का समर्थन करता है और उनसे सहयोग भी लेता है। ईरान और इस्राइल के बीच तनाव बढ़ने की स्थिति में इस बात की बहुत आशंका है कि ईरान अरब सागर और लाल सागर में व्यापार मार्ग को बाधित करने के लिए हूती विद्रोहियों का सहयोग ले। हाल के महीनों में इस्राइल-फलस्तीन संघर्ष के मद्देनजर हूती विद्रोहियों की बाधाओं के चलते पूरी दुनिया को पहले ही काफी नुकसान उठाना पड़ा है। आशंका इस बात की है कि ईरान दुनिया के सर्वाधिक रणनीतिक महत्व के होर्मूज जलडमरूमध्य को बंद कर सकता है, जो फारस की खाड़ी से खुले महासागर में जाने का एकमात्र समुद्री मार्ग है। यदि ऐसा हुआ, तो वैश्विक आपूर्ति शृंखला बाधित हो जाएगी, जिससे पूरी दुनिया में मुद्रास्फीति बढ़ने के साथ वैश्विक व्यापार में काफी उथल-पुथल होगा।
भारत के इस्राइल और ईरान, दोनों देशों के साथ रणनीतिक हित जुड़े हुए हैं। पिछले दस वर्षों में भारत के संबंध इस्राइल के साथ काफी घनिष्ठ हुए हैं और इस्राइल भारत को आतंकवाद के खिलाफ समर्थन देने के अलावा रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बनकर उभरा है। भारत इस्राइल का एशिया में दूसरा सबसे बड़ा और दुनिया में सातवां सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है। भारत में बड़ी संख्या में यहूदी रहते हैं और इस्राइल में भी 18,000 भारतीय रहते हैं, जो वहां इस्राइली बुजुर्गों की देखभाल करते हैं, सॉफ्टवेयर पेशेवर हैं, हीरा व्यापारी और छात्र हैं। जब इस्राइल ने हालिया संघर्ष के बाद अपने देश में फलस्तीनी श्रमिकों के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया, तो भारत ने काफी श्रमिक इस्राइल भेजे। इस प्रकार भारत के इस्राइल के साथ रणनीतिक संबंधों के अलावा व्यापार, रक्षा और लोगों के आपसी संबंध भी हैं। दूसरी तरफ ईरान से भी भारत के पुराने संबंध हैं और इसे ईरान की भी उतनी ही जरूरत है, जितनी इस्राइल की। यह इसलिए कि भारत के मध्य एशियाई देशों, विशेष रूप से कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान आदि जैसे पूर्व सोवियत गणराज्य के राज्यों से रणनीतिक हित और ऐतिहासिक संबंध हैं। इन देशों में बड़े पैमाने पर हाइड्रो कार्बन के भंडार हैं। इन संसाधनों तक भारत की पहुंच और इन देशों से मजबूत आर्थिक और व्यापारिक रिश्तों को जारी रखने के लिए ईरान से होकर गुजरने वाले मार्ग की आवश्यकता है, क्योंकि पाकिस्तान के साथ भारत के अच्छे संबंध नहीं हैं।
हालांकि अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते भारत ईरान से तेल नहीं खरीदना चाहता है, जबकि चीन लगातार ईरान से तेल खरीद रहा है। ऐसे में चीन की ईरान में बढ़ती उपस्थिति को देखते हुए इस क्षेत्र में चीनी प्रभुत्व का मुकाबला करने और मध्य एशिया तक अपनी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए ईरान से सौहार्द्रपूर्ण संबंध बनाए रखना जरूरी है। इस पृष्ठभूमि में, यह प्रासंगिक है कि भारत पश्चिम एशिया में आने वाले समय में भू-राजनीतिक घटनाक्रमों से निपटने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाए। इस मोर्चे पर किसी भी नीतिगत चर्चा के लिए भारत के दीर्घकालिक आर्थिक और रणनीतिक हितों का पुनर्मूल्यांकन करने और जल्द ही उत्पन्न होने वाली जरूरतों के प्रबंधन के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है।
-लेखक एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय
विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं बिजनेस मैनेजमेंट विभाग के प्रमुख हैं।