लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। विधानसभा में योगी आदित्य नाथ ने कहा कि अवधी भाषा के महत्व को समझते हुए इसे संरक्षित करने के लिए एक संस्थान खोलने की योजना बनाई जाने का कार्य कर रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस पहल को आगे बढ़ाते हुए कहा कि भोजपुरी, बुदेंलखण्डी, अवधी क्षेत्रीय भाषाओं को संरक्षित करना हमारी सांस्कृतिक विरासत को संजोने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।
अवधी भाषा हमारी पहचान है, इसे संरक्षित करना और नई पीढ़ी तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य है। इस संस्थान के माध्यम से हम अवधी भाषा को शैक्षणिक संस्थानों में लागू करने, शोध को बढ़ावा देने और साहित्य को संरक्षित करने का कार्य करेंगे।’’
-योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेशयोगी आदित्यनाथ का यह कदम अवधी भाषा के उत्थान की दिशा में एक ऐतिहासिक फैसला है। इससे अवधी भाषा के प्रति लोगों की रुचि बढ़ेगी और इसे वैश्विक स्तर पर भी पहचान मिलेगी।
महेश कुमार सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, अवध संस्कृति उत्कर्ष समिति
अवधी भाषा एवं साहित्य का इतिहास के प्रसिद्ध लेखक एवं कोषाध्यक्ष डॉ श्रीनारायण तिवारी ने कहा, ‘अवधी भाषा में जो मिठास और गहराई है, उसे सहेजने की जरूरत है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का फैसला से अवधी साहित्य, लोकगीत और नाट्यकला को नई ऊंचाइयों तक पहुंचायेगा। संस्था के महामंत्री जानकी शरण द्विवेदी ने कहा हमारी अवधी भाषा लगभग 12 करोड़ लोगो की सांस्कृतिक पहचान को और मजबूत करेगा और नई पीढ़ी को अपनी मातृभाषा से जोड़ने का कार्य करेगा। यदि सरकार और समाज मिलकर इस संस्थान को सफल बनाने के लिए प्रयास करें, तो अवधी भाषा एक बार फिर अपनी पुरानी गरिमा को प्राप्त कर सकेगी।
अवधी भाषा के विकास में ‘‘अवध संस्कृति उत्कर्ष समिति (भारत)’’ के विद्वानों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यह समिति अवधी भाषा के प्रसार-प्रचार के लिए राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित करती है, जहां साहित्यिक हस्तियों को सम्मानित किया जाता है। गोस्वामी तुलसीदास की जयंती पर 2023 में, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. अनिल राय, साहित्यकार सूर्यपाल सिंह, डॉ श्रीनारायण तिवारी, उद्योगपति ठाकुर सूर्यकांत सिंह, रमेश दुबे, डॉ लक्ष्मीकांत पांडेय, बेसिक षिक्षा अधिकारी बंलंद षहर, प्च्ै सूरजभान सिंह को ‘‘अवध संस्कृति सम्मान’’ से नवाजा गया। इन प्रयासों से अवधी भाषा और साहित्य को नई ऊंचाइयां मिली हैं।
अवध संस्कृति उत्कर्ष समिति से जुड़े कई साहित्यकारों, शिक्षाविदों, समाजसेवियों और इतिहासकारों ने योगी आदित्यनाथ के इस फैसले का जोरदार स्वागत किया। उनका मानना है कि यह संस्थान न केवल अवधी भाषा के लिए बल्कि संपूर्ण अवध क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।