कला: शाह आलम
पंचनद (जालौन)। पंचनद के ऐतिहासिक तट पर, जहां चंबल, यमुना, सिंध, पहुज और क्वारी नदियों का संगम होता है, एक अनूठा इतिहास रचा गया। चंबल संग्रहालय के बैनर तले आयोजित कार्यक्रम में प्रसिद्ध सैंड आर्टिस्ट हिमांशु शेखर परिदा ने अपनी रेत कला का जादू बिखेरा। यह पहला अवसर था जब पंचनद के तट पर रेत कला का ऐसा भव्य प्रदर्शन हुआ। इस प्रदर्शन ने एक इतिहास रचकर कला- पारखियों तक को हतप्रभ कर दिया। बीते कुछ वर्षों से असली चंबल की तस्वीर उजागर करने और इलाके को नया तेवर देने में लगे डॉ. शाह आलम राना उदय सर्वोदय को यह जानकारी दी। उनका कहना है कि इस अद्भुत प्रदर्शन ने चंबल घाटी में नई उम्मीदों का संदेश दिया है। हिमांशु शेखर परिदा, जो भारतीय सैंड आर्ट के क्षेत्र में अग्रणी माने जाते हैं, ने अपने अद्वितीय कौशल और रचनात्मकता से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके द्वारा बनाई गई कलाकृतियां जैसे कि ह्लही’ूङ्मेी ३ङ्म उँेंुं’,ह्व ह्लपान सिंह तोमर (चंबल मैराथन),ह्व डॉल्फिन, इंडियन स्कीमर, मिट्टी के पहाड़, बीहड़, फिल्म क्लैप बोर्ड, मगरमच्छ और चंबल म्यूजियम ने न केवल पर्यटकों को चकित किया, बल्कि क्षेत्र के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को भी उजागर किया। कार्यक्रम के दौरान परिदा ने मध्य प्रदेश डकैती और व्यपहरण प्रभावित क्षेत्र अधिनियम, 1981 को समाप्त करने की वकालत की। उनका कहना था कि चंबल अब डकैतों के खतरों से मुक्त है, और ऐसे कानूनों को निरस्त कर क्षेत्र में शांति और पर्यटन को बढ़ावा देना चाहिए। आयोजन में विशेष अतिथि के रूप में मूर्ति कला प्रवक्ता आनंद कुमार, डॉ. आर.के. मिश्रा, सौरभ अवस्थी, दीपक सिंह परिहार, दीप्ति अवस्थी, प्रत्यूष रंजन द्विवेदी, महेंद्र सिंह निषाद, आदिल खान, देव सिंह निषाद, डॉ. कमल कुशवाहा, सूरज सिंह, मोनू ठाकुर, अजय कुमार उपस्थित रहे। उपस्थित प्रबुद्ध जनों ने न केवल रेत कला के इस अद्भुत प्रदर्शन की सराहना की, बल्कि चंबल घाटी के इतिहास और इसकी संभावनाओं पर भी विचार-विमर्श किया।