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    दुनिया को खूबसूरत बनाने कासशक्त माध्यम है कला
    समाज

    दुनिया को खूबसूरत बनाने कासशक्त माध्यम है कला

    Uday SarvodayaBy Uday SarvodayaApril 16, 2025No Comments7 Mins Read
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    ललित गर्ग
    कला जीवन को रचनात्मक, सृजनात्मक, नवीन और आनंदमय बनाने की साधना है। कला के बिना जीवन का आनंद फीका अधूरा है। कला केवल एक भौतिक वस्तु नहीं है जिसे कोई बनाता है बल्कि यह एक भावना है जो कलाकारों और उन लोगों को खुशी और आनंद देती है जो इसकी गहराई को समझते हैं। कला अति सूक्ष्म, संवेदनशील और कोमल है, जो अपनी गति के साथ मस्तिष्क को भी कोमल और सूक्ष्म बना देती है। हम जो कुछ भी करते हैं उसके पीछे एक कला छिपी होती है।

    कला का हर किसी के जीवन में बहुत महत्व है। इसी महत्व के लिये विश्व कला दिवस विभिन्न कलाओं का एक अंतरराष्ट्रीय उत्सव है, जिसे दुनिया भर में रचनात्मक गतिविधि के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कला संघ (आईएए) द्वारा घोषित किया गया था। अंतर्राष्ट्रीय कला संघ की 17वीं आम सभा में 15 अप्रैल को इस दिवस को घोषित करने का प्रस्ताव रखा गया, जिसका पहला समारोह 2012 में आयोजित किया गया था। इस प्रस्ताव को तुर्की के बेदरी बैकम ने प्रायोजित किया और मैक्सिको की रोजा मारिया बुरीलो वेलास्को, फ्रांस की ऐनी पौरनी, चीन के लियू दावेई, साइप्रस के क्रिस्टोस सिमेयोनिडेस, स्वीडन के एंडर्स लिडेन, जापान के कान इरी, स्लोवाकिया के पावेल क्राल, मॉरीशस के देव चूरामुन और नॉर्वे की हिल्डे रोगनस्कॉग ने सह -हस्ताक्षर किए।

    विश्व कला दिवस की 2025 की थीम है ‘अभिव्यक्ति का उद्यानः कला के माध्यम से समुदाय का विकास करना‘। इस थीम का उद्देश्य कला के माध्यम से सामुदायिक विकास को बढ़ावा देना है। दुनिया भर के कलाकारों के लिए यह एक महत्वपूर्ण दिन है, जिसका मुख्य उद्देश्य कलाकारों और उनकी कला को सुरक्षित, संरक्षित एवं सवंर्धित करना और उन्हें अपनी बुद्धिमत्ता, रचनात्मकता और नवाचार को प्रदर्शित करने के लिए एक मंच प्रदान करना है। कला दिवस विश्व में विभिन्न संस्कृतियों को जोड़ने का एक सशक्त माध्यम है। कलाकार कविता, पेंटिंग, मूर्तिकला, नृत्य, संगीत जैसे विभिन्न भौतिक साधनों के माध्यम से अपने विचारों, रचनात्मकता, ज्ञान, भावनाओं और कल्पना का आदान-प्रदान करते हैं। यह दिन हमें अपने आस-पास की प्रकृति में गोता लगाने, उसकी सुंदरता का निरीक्षण करने और अपने आस-पास की छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान देने को प्रेरित करता है। इसके माध्यम से जीवन की खूबसूरती को उकेरने एवं मोहक दुनिया का सृजन करने का प्रयत्न किया जाता है।

    विश्व कला दिवस की तिथि लियोनार्डाे दा विंची के जन्मदिन के सम्मान में तय की गई थी, जो इटली के महान चित्रकार, मूर्तिकार, वास्तुशिल्पी, संगीतज्ञ, कुशल यांत्रिक, इंजीनियर और वैज्ञानिक थे। लिओनार्दाे अपनी कला की वजह से दुनिया भर में मशहूर थे, दा विंची को विश्व शांति, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सहिष्णुता, भाईचारे और बहुसंस्कृतिवाद के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में कला के महत्व के प्रतीक के रूप में चुना गया था। कला और कलाकारों की कलात्मक सोच को सम्मानित और आत्मसात करने के उद्देश्य से ही हर साल यह दिवस मनाया जाता है।

    रंगों और आकृतियों के माध्यम से भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए, कला जीवन के सार को पकड़ती है, भावनाओं को जगाती है और शब्दों के बिना भी संबंध को बढ़ावा देती है। विंची एक महान कलाकार थे। उन्होंने कई ऐसी पेंटिंग बनाई हैं, जो विश्वभर में प्रसिद्ध हुई हैं। इन सब में ‘मोना लिसा की पेंटिंग’ के बारे में बच्चे-बच्चे को पता है। लेकिन, विंची ने मोना लिसा के अलावा भी कई विख्यात पेंटिंग बनाई हैं, जिनमें से कुछ हैं – लास्ट सपर, सेल्फ पोट्रेट, द वर्जिन ऑफ द रॉक्स, हेड ऑफ अ वुमेन आदि। उनकी बनाई गई पेंटिंग्स आज भी दुनियाभर के म्यूजियम में रखी हुईं हैं, जिन्हें देखने हर साल कई लाख लोग आते हैं।

    दुनिया में कला के विविध रंग बिखरे हैं, कई अद्भुत आर्ट फॉर्म्स प्रचलित है। पॉप आर्ट एक खास तरह का आर्ट फॉर्म है, जो सदियों से लोगों का पसंदीदा रहा है। इस तरह के आर्ट फॉर्म में पेंटिंग को एक कल्पना के तहत बनाया जाता है। इसमें पेंटिंग्स के पारंपरिक तरीकों का प्रयोग किया जाता है। कंटेम्पर्री आर्ट का सीधा मतलब है, ऐसा आर्ट जो हाल के समय में बनाया गया हो। इस तरह के आर्ट में हाल में हुई घटनाओं पर फोकस किया जाता है। कई लोग मानते हैं कि कंटेम्पर्री आर्ट और मॉडर्न आर्ट एक ही हैं।

    मगर ऐसा नहीं है, कंटेम्पर्री आर्ट के उलट मॉडर्न आर्ट के पेंटिंग्स में पारंपरिक तरीकों को फॉलो नहीं किया जाता है। इस तरह के आर्ट फॉर्म में पेंटर्स को छूट होती है, अपनी कल्पना के तहत पेंटिंग्स बनाने की। एब्सट्रैक्ट आर्ट की पेंटिंग्स बनाना एक बहुत मुश्किल और उलझा हुआ काम है। इस तरह के आर्ट में रंगों और अलग-अलग तरह की आकृतियों का इस्तेमाल किया जाता है, जो एक दूसरे में घुली-मिली-सी होती हैं। एब्सट्रैक्ट आर्ट में कलर्स का इस्तेमाल खासतौर पर भावनाओं को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। स्पिरिचुअल आर्ट में अध्यात्म और भक्ति से जुड़ी हुई पेंटिंग्स बनाई जाती हैं। कई बार कलाकार पूरी तरह से भक्ति और अध्यात्म में डूबकर ही इस तरह की पेंटिंग्स को पूरा कर पाते हैं। हर देश में वहां के कल्चर, अध्यात्म, आस्था और भगवान के अनुसार स्पिरिचुअल आर्ट्स बनाए जाते हैं।

    संगीत भी कला का माध्यम है जो शांति, सुकून एवं आनन्द प्रदत्त कर सकता है। संगीत अमूर्त कला है पर उसमें निहित शांति, सौन्दर्य एवं संतुलन की अनुभूति विरल है। संगीत अशांति के अंधेरों में शांति का उजाला है। यह अंतर्मन की संवेदनाओं में स्वरों का ओज है। शादी में ढोलक-शहनाई, भजन-मंडली में ढोल-मंजीरा, शास्त्रीय संगीत में तानपूरा, तबला, सरोद, सारंगी का हम सब भरपूर आनंद उठाते हैं, ये कला के बेजोड़ नमूने है। भारत में संगीत का हजारों वर्षों का इतिहास है, शास्त्रीय संगीत आदि काल से है। संगीत के आदि स्रोत भगवान शंकर हैं। उनके डमरू से तथा श्रीकृष्ण की बांसुरी से संगीत के सुर निकले हैं। किंवदन्ति है कि संगीत की रचना ब्रह्माजी ने की थी। सूरदास की पदावली, तुलसीदास की चौपाई, मीरा के भजन, कबीर के दोहे, संत नामदेव की सिखानियाँ, संगीत सम्राट तानसेन, बैजु बाबरा, कवि रहीम, संत रैदास भक्ति संगीत एवं साहित्य विलक्षण उदाहरण हैं।

    कठपुतली भी कला का ही एक नमूना है, लकड़ी अर्थात काष्ठ से इन पात्रों को निर्मित किये जाने के कारण अर्थात् काष्ठ से बनी पुतली का नाम कठपुतली पड़ा। पुतली कला कई कलाओं का मिश्रण है, जिसमें-लेखन, नाट्य कला, चित्रकला, वेशभूषा, मूर्तिकला, काष्ठकला, वस्त्र-निर्माण कला, रूप-सज्जा, संगीत, नृत्य आदि। भारत में यह कला प्राचीन समय से प्रचलित है, जिसमें पहले अमर सिंह राठौड़, पृथ्वीराज, हीर-रांझा, लैला-मजनूं, शीरी-फरहाद की कथाएँ ही कठपुतली खेल में दिखाई जाती थीं। भारत में प्राचीन समय से नृत्य की समृद्ध परम्परा चली आ रही है। नृत्य के अनेक प्रकारों में कथकली प्रमुख है, मोहिनीअट्टम नृत्य भी केरल राज्य का है। मोहिनीअट्टम नृत्य कलाकार का भगवान के प्रति अपने प्यार व समर्पण को दर्शाता है।

    ओडिसी ओडिशा राज्य का प्रमुख नृत्य है। यह नृत्य भगवान कृष्ण के प्रति अपनी आराधना व प्रेम दर्शाने वाला है। कुचिपुड़ी नृत्य की उत्पत्ति आंध्रप्रदेश में हुई, इस नृत्य को भगवान मेला नटकम नाम से भी जाना जाता है। भारत के विभिन्न नृत्यकलाओं में निपुण अनेक नर्तकों एवं नृत्यांगनाओं ने पूरी दुनिया में भारतीय नृत्य कलाओं का नाम रोशन कर रहे हैं। जिनमें सोनल मानसिंह, यामिनी कृष्णामूर्ति, केलुचरण महापात्रा आदि चर्चित नाम है।

    सब लोग किसी न किसी कला में उस्ताद ज़रूर होते हैं। जैसेकि लेखक, कवि, नाटककार, संगीतज्ञ, गीतकार, नृत्यकार आदि। आज के युवा बहुत-सी कलाओं को दुनिया के सामने ला रहे हैं, जो सबको अचंभे में डाल देती है। दुनिया भर की इन्हीं कलाओं को बढ़ावा देने और जो लोग कला का महत्व नहीं समझते, उन्हें कला के अलग-अलग रूपों से मिलवाने के लिए ही विश्व कला दिवस मनाया जाता है। लेकिन, जब हम कला दिवस की बात करते हैं तो यहां कला का अर्थ है पेंटिंग्स।

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