Close Menu
Uday Sarvodaya
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Uday Sarvodaya
    • राजनीति
    • समाज
    • शख़्सियत
    • शिक्षा
    • सेहत
    • टूरिज्म
    • कॉर्पोरेट
    • साहित्य
    • Video
    • eMagazine
    Uday Sarvodaya
    गिरिराज सिंह की ‘हिंदू स्वाभिमान यात्रा’: क्या बिहार में फिर से भड़केगा साम्प्रदायिकता का ज्वाला?
    राजनीति

    गिरिराज सिंह की ‘हिंदू स्वाभिमान यात्रा’: क्या बिहार में फिर से भड़केगा साम्प्रदायिकता का ज्वाला?

    Tanveer JafriBy Tanveer JafriOctober 29, 2024No Comments6 Mins Read
    Share
    Facebook Twitter LinkedIn Pinterest Email

    तनवीर जाफ़री

    राजनैतिक यात्राओं से बिहार का गहरा नाता रहा है। भारतीय जनता पार्टी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने जब सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा निकाली थी उस दौरान अयोध्या पहुँचने से पहले ही बिहार के समस्तीपुर में 22 अक्टूबर 1990 को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया था। उस समय विश्वनाथ प्रताप सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे। केंद्र में नेशनल फ़्रंट की भाजपा के समर्थन से चलने वाली सरकार थी। अडवाणी की रथ यात्रा जहाँ जहाँ से गुज़र रही थी वहाँ सांप्रदायिक माहौल ख़राब हो रहा था। कई जगह साम्प्रदायिक दंगे भी भड़क उठे थे। एक तरफ़ अडवाणी समर्थक पूरी यात्रा के दौरान जय श्रीराम और सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे जैसे नारे लगा रहे थे वहीँ दूसरी तरफ़ लालू यादव का मत था की इसतरह की यात्रा से देश में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ रहा है। इस यात्रा का देश की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव पड़ा। भाजपा ने आडवाणी की गिरफ़्तारी के विरोध स्वरूप विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। दूसरी तरफ़ इस आंदोलन ने भाजपा में एक नई जान फूँक दी।

    इसे भी पढ़ें ⇒कौन कहता है कि बदल गया आरएसएस?

    उसके बाद जनवरी 2024 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी जिस समय मणिपुर से मुंबई तक देश के 15 राज्यों के 110 ज़िलों की यात्रा पर थे उस दौरान उन्होंने भी बिहार में चार दिनों में 425 किलोमीटर की दूरी किशनगंज, पूर्णिया ,कटिहार व अररिया जैसे ज़िलों में की थी। इस यात्रा का नाम था ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’। इस यात्रा में राहुल समाज के सभी वर्गों को जोड़ने तथा समाज के शोषित वर्ग को न्याय दिलाने की बात किया करते थे। इसके अतिरिक्त भी बिहार की जो यात्रायें चर्चित रहीं उनमें विकासशील इंसान पार्टी (वी आई पी ) प्रमुख मुकेश सहनी की निषाद संकल्प यात्रा , प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा तथा सीपीआई-एमएल की न्याय यात्रा व तेजस्वी यादव की कार्यकर्त्ता संवाद यात्रा उल्लेखनीय है। परन्तु गत 18 अक्टूबर को केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह द्वारा जो ‘हिंदू स्वाभिमान यात्रा’ शुरू की गयी थी उसके तेवर,मक़सद व नीयत सब कुछ विवादित था। यही वजह थी कि न केवल बीजेपी ने गिरिराज सिंह की इस यात्रा से ख़ुद को अलग रखा बल्कि बिहार में बीजेपी की सत्ता सहयोगी जनता दाल यूनाइटेड ने भी इस यात्रा का विरोध किया। जिसके चलते गिरिराज सिंह को यह यात्रा 20 अक्टूबर को ही रोकनी पड़ी। परन्तु इस बीच भागलपुर से शुरू हुई उनकी यात्रा किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया होते हुये अररिया पहुँच चुकी थी। यह ज़िले सीमांचल क्षेत्र के ज़िले कहे जाते हैं। जहाँ मुसलमानों की घनी आबादी है। यह वही इलाक़े हैं जिनमें कई सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी भी बड़ी उम्मीदें लेकर अपने उम्मीदवार तो ज़रूर खड़ा करते हैं परन्तु क्षेत्र के लोग उनके झांसे में भी नहीं आते।

    सवाल यह है कि स्वयं केंद्रीय मंत्री होने तथा बिहार में भी भाजपा-जे डी यू गठबंधन की सरकार होने के बावजूद गिरिराज सिंह को राज्य में ‘हिंदू स्वाभिमान यात्रा’ निकालने की ज़रुरत क्यों महसूस हुई? ऐसा तो संभव नहीं है कि वह यात्रा की योजना बना रहे हों और उन्हीं की पार्टी को इस यात्रा की जानकारी न हो ? और यदि यात्रा शुरू हो ही चुकी थी तो किन कारणों से भाजपा ने इस यात्रा से अपना पल्ला झाड़ा और यात्रा निर्धारित समापन तिथि से पहले ही समाप्त कर दी गयी ? माना जा रहा है कि भाजपा अपने सहयोगी व बिहार सरकार के मुखिया नीतीश कुमार से नाराज़गी मोल नहीं लेना चाहती थी। क्योंकि जहां केंद्र में नीतीश कुमार के समर्थन से भाजपा की सरकार चल रही है वहीँ बिहार में भाजपा, नीतीश कुमार की जे डी यू-भाजपा सरकार में सहयोगी है। ज़ाहिर है गिरिराज सिंह की यात्रा को लेकर भाजपा नीतीश कुमार से नाराज़गी मोल नहीं लेना चाहती थी। इस वजह से भी गिरिराज सिंह की यात्रा को पार्टी ने समर्थन भी नहीं दिया और यात्रा भी बीच में ही रुकवा दी।

    परन्तु इस यात्रा के मक़सद को लेकर कई तरह की चर्चाएं चल रही हैं। एक तो यह कि क्या यह यात्रा पड़ोसी राज्य झारखण्ड में 13 से 20 नवंबर के दौरान होने जा रहे विधान सभा चुनवों के मद्देनज़र शुरू की गयी थी ताकि साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का प्रभाव पड़ोसी राज्य के नाते झारखण्ड चुनाव पर पड़ सके ? या फिर 13 नवंबर को बिहार में चार विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को प्रभावित करने के उद्देश्य से यह यात्रा निकाली गयी थी ? या इस यात्रा का मक़सद 2025 में बिहार में प्रस्तावित आम विधानसभा चुनावों से पहले राज्य के माहौल को गर्म करना था ? राजनैतिक विश्लेषकों द्वारा हालांकि यात्रा के मक़सद को लेकर उपरोक्त क़यास लगाये जा रहे हैं। परन्तु इस राज्य में पूर्ण रूप से साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का खेल खेलना उस तरह शायद संभव नहीं जैसा कि गुजरात,मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश व उत्तरांचलव असम जैसे राज्यों में किया गया है या करने की कोशिश की जा रही है।

    शायद इन्हीं कोशिशों के तहत गिरिराज सिंह ने अपनी यात्रा की शुरुआत अपने लोकसभा क्षेत्र बेगूसराय से लगभग 150 किलोमीटर दूर उस भागलपुर से की जो 1989 में साम्प्रदायिक दंगों की आग में झुलस चुका था। परन्तु आज वहां पूर्ण शांति है। यही वजह थी कि उन्होंने 19 अक्टूबर को कटिहार में अपनी इसी यात्रा के दौरान ‘लव जिहाद, लैंड जिहाद’ थूक जिहाद तथा ‘रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठ’ जैसे नफ़रत फैलाने वाले कई काल्पनिक व आभासी मुद्दे उठाये। उनकी यात्रा भी सीमांचल क्षेत्र कहे जाने वाले अररिया,कटिहार, पूर्णिया और किशनगंज जैसे मुस्लिम प्रभाव वाले क्षेत्रों से गुज़री। बिहार एक एक ऐसा राज्य भी है जहाँ का बहुसंख्य हिन्दू मांसाहारी है। यह बात गिरिराज सिंह को भी मालूम है। इसलिये वह यहाँ शाकाहार पर ‘प्रवचन ‘ देने से बचते हैं परन्तु लोगों को हलाल मांस न खाने और झटका मांस खाने का ‘ज्ञान’ ज़रूर बांटते हैं। इस यात्रा का समय भी वह था जबकि उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िले का महराजगंज क़स्बा साम्प्रदायिक हिंसा का सामना कर रहा था।

    इसे भी पढ़ें ⇒राजनीति के लिए परिवार से भिड़ने में भी गुरेज नहीं करते हैं नेता

    दरअसल गिरिराज सिंह भाजपा के स्टार फ़ायर ब्रांड नेताओं में स्वयं को योगी आदित्यनाथ व हिमंत विस्वा सरमा की तरह स्थापित करना चाहते हैं। ज़ाहिर है किसी भी पार्टी का कोई भी नेता जब अपनी सकारत्मक सोच,जनता के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों व विकास सम्बन्धी योजनाओं के बल पर अपनी पहचान नहीं बना पाता तो उसके लिये सबसे आसान तरीक़ा यही होता है कि वह धर्म व साम्प्रदायिकता की राजनीति करे। और जब भाजपा जैसे राजनैतिक दल इन नेताओं को टिकट देकर मंत्री व मुख्यमंत्री बनाने लगें तो इससे उनकी हौसला अफ़ज़ाई होनी भी स्वभाविक है। गिरिराज सिंह भी अपने दिल में कुछ ऐसी ही दूरगामी राजनैतिक इच्छाओं को पाले हुये बिहार जैसे सद्भावपूर्ण राज्य को साम्प्रदायिकता की आग में झोंकने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं।

    #Bihar Politics #bjp #Communal Harmony #Election Strategies #Giriraj Singh #Hindu Nationalism #jdu #Political Journeys #politics #Religious Tensions #Social Justice
    Share. Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Tanveer Jafri
    • Website

    Related Posts

    विवाद के समय बीजेपी क्यों छोड़ देती है अपने नेताओं का साथ

    April 24, 2025

    क्या है देश के अपमान की परिभाषा

    April 24, 2025

    संभल में संघ संगठन और सनातन की साख हैं कपिल सिंघल

    April 13, 2025

    Comments are closed.

    Don't Miss
    कॉर्पोरेट

    REC को वित्त वर्ष 2025 में ₹15,713 करोड़ का रिकॉर्ड शुद्ध लाभ

    By Uday SarvodayaMay 8, 20250

    नई दिल्ली, 8 मई 2025: सरकारी स्वामित्व वाली आरईसी लिमिटेड ने वित्त वर्ष 2024-25 के…

    देश में ऑनलाइन लूडो के बढ़ते खतरे पर कैसे लगेगी लगाम

    May 7, 2025

    इन्हें अपराध से नहीं बल्कि अपराधी के धर्म से नफ़रत है

    May 7, 2025

    मीट इन इंडिया कॉन्क्लेव रहेगी खास, 55 देशों के टूअर ऑपरेटर्स करेंगे शिरकत

    April 29, 2025
    Popular News

    2000 रुपये के नोट एक्सचेंज नियमों में बदलाव: अब तक बचे हुए नोट बदलने का समय बढ़ा, जानिए नए निर्देश

    January 8, 2024

    समय तय करेगा अयोध्या धाम किसको देगा फायदा कौन उठायेगा नुकसान

    January 1, 2024

    अति की हार

    June 6, 2024
    Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
    • Home
    • About Us
    • Privacy Policy
    • Terms & Conditions
    • Contact Us
    © 2025 Powered by NM Media Solutions

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.