औपचारिक चुनावी शंखनाद से पहले ही बिहार चुनावी रंग में रंग चुका है। एनडीए और महा गठबंधन एक दूसरे को मात देने को हर हथकंडे अपना रहे हैं। कोई नया जातीय समीकरण बना रहा है तो कोई पुराने समीकरण को ध्वस्त करने में लगा है नतीजा है कि सियासी हवा का रुख हर रोज बदल रहा है। भले ही अभी विधानसभा चुनाव में समय है लेकिन बिहार में राजनीतिक गतिविधियां काफी तेज हो गयी हैं। एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्य के विभिन्न हिस्सों में दौरे के जरिए जनता की नब्ज टटोल रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव भी राज्यव्यापी दौरे के जरिए अपने कार्यकतार्ओं को गोलबंद कर रहे हैं। इस बीच कांग्रेस पार्टी के नेता भी सक्रिय हो गए हैं। राहुल गांधी का हालिया बिहार दौरा कांग्रेस कार्यकतार्ओं में नई जान फूंकने में सफल रहा है ऐसा कहा जा रहा है।
हालांकि, राहुल गांधी ने अपने कार्यकतार्ओं को इस बारे में कोई संकेत नहीं दिया कि आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की राजनीतिक रणनीति क्या होगी। गौरतलब है कि राहुल गांधी ने कांग्रेस के प्रदेश मुख्यालय सदाकत आश्रम, पटना में चुनिंदा कांग्रेसी कार्यकतार्ओं की बैठक बुलाई थी और इसमें उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के साथ ही नीतीश सरकार पर भी निशाना साधा था। खासतौर पर उन्होंने राज्य में जातिगत जनगणना पर भी सवाल उठाए और पार्टी कार्यकतार्ओं से तैयार रहने को कहा कि अगर बिहार में एनडीए की हार होती है और नई सरकार बनती है तो कांग्रेस राज्य में फिर से जातिगत जनगणना कराएगी।
राहुल गांधी ने कथित तौर पर यह भी आरोप लगाया कि बिहार में कराई गई जाति जनगणना में व्यापक अनियमितताएं हुईं और आंकड़ों का सत्यापन नहीं किया गया। हालांकि जाति जनगणना के समय बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली कैबिनेट में कांग्रेस भी शामिल थी, लेकिन उस समय एनडीए सरकार नहीं थी बल्कि महागठबंधन की सरकार थी और राज्य के महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल और वाम मोर्चा भी शामिल थी। वाम मोर्चा और कांग्रेस भी नीतीश कुमार की जाति जनगणना का श्रेय ले रही थी। ऐसा लगता है कि राहुल गांधी ने जातिय जनगणना का मुद्दा उठा कर भूल कर दी है। बहरहाल, बिहार लोक सेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षाओं को रद्द करने की मांग को लेकर धरने पर बैठे छात्रों और अभ्यर्थियों से मिलने और परीक्षा रद्द करने की मांग करने की राहुल गांधी की पहल की हर जगह सराहना हो रही है। लेकिन जिस समय राहुल गांधी सदाकात आश्रम में अपने पार्टी कार्यकतार्ओं को संबोधित कर रहे थे, उसी समय होटल मौर्या में राष्ट्रीय जनता दल की बैठक भी चल रही थी और इस बैठक में राष्ट्रीय जनता दल के नेता भी मौजूद थे।
आरजेडी के इस एकतरफा फैसले पर बिहार विकास मंच के अध्यक्ष इरफानुल खैरी कहते हैं कि राष्ट्रीय जनता दल ने एकतरफा घोषणा कर दी है कि तेजस्वी यादव बिहार में महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। इस घोषणा से यह साबित हो गया है कि राष्ट्रीय जनता दल को अपने सहयोगियों से सलाह-मशविरा करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर उन्हें महागठबंधन की फिक्र होती तो तेजस्वी को अपनी पार्टी का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाकर महागठबंधन की बैठक में इस पर मुहर लगवा सकती थी। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और इसे जरूरी नहीं समझा। जल्दी में लिए गए इस फैसले से लगता है कि राष्ट्रीय जनता दल कुछ ज्यादा ही आत्म विश्वास से भरी हुई है ।
जबकि राजनीतिक पंडितों का भी मानना है कि बिहार में जिस तरह का राजनीतिक समीकरण बन रहा है, उससे राष्ट्रीय जनता दल की जमीन दिन-प्रतिदिन संकरी होती जा रही है। इसका एकमात्र कारण यह है कि राष्ट्रीय जनता दल का जो ‘कोर’ यादव वोटर है उसने भी साथ छोड़ना शुरू कर दिया है। हाल ही में हुए उपचुनावों के नतीजे इसका प्रत्यक्ष माण हैं। पिछले संसदीय चुनाव में छपरा से लालू यादव की बेटी रोहिणी यादव की हार भी इस कड़वी सच्चाई को उजागर करती है कि यादव गुटों में अराजकता व्याप्त है। सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि अब तक राज्य में यही समझा जाता था कि ‘माई’ का मतलब मुस्लिम और यादव वोटों की एकजुटता है। यह एकजुट है, लेकिन ऐसा नहीं है।
पिछले विधानसभा चुनावों से यह तथ्य सामने आया है कि जहां भी मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतरे वहां यादव मतदाताओं ने अपनी एकता का सबूत नहीं दिया और मुस्लिम उम्मीदवारों को अपना वोट नहीं दिया। लेकिन मुसलमानों ने दिल खेलकर राष्ट्रीय जनता दल का साथ दिया। यहां तक कि जहां जहां यादव उम्मीदवार थे उन्हें अपना भरपूर समर्थन दिया और उनके पक्ष में जमकर वोटिंग की। यह बात हाल के संसदीय चुनावों में भी स्पष्ट हो गया है। यही कारण है कि आरजेडी नेतृत्व की बेरूखी की वजह से राज्य में मुसलमानों का झुकाव प्रशांत किशोर की नई राजनीतिक पार्टी जन सुराज की ओर बढ़ रहा है। जिसने जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से मुस्लिम उम्मीदवार उतारने की बात कही है। हालांकि प्रशांत किशोर की राजनीति करने के अंदाज से स्पष्ट है कि वह सक्रिय रूप से किसका समर्थन कर रहे हैं और उनकी पार्टी किसको फायदा पहुंचा रही है।
पीके को फंडिंग करने के मामले को लेकर भी लोग समझने लगे हैं कि उनके पीछे कौन खड़ा है। क्योंकि पिछले दिनों पटना के गांधी मैदान में उनके धरना पर बैठने के दौरान करोड़ों रूपए की वेनेटी वैन किस भाजपाई नेता ने उन्हें भेजी थी इसका भी खुलासा हो चुका है। इसके बावजूद मुसलमानों का एक बड़ा तबका पीके की पार्टी की तरफ हाथ बढ़ा रहा है जो आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल को भारी पड़ सकता है। ऐसे में राष्ट्रीय जनता दल का यह ऐलान कि महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री होंगे घाटे का सौदा साबित हो सकता है। लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव चाहते तो अपने सहयोगियों की संयुक्त बैठक के जरिए इसकी घोषणा कर सकते थे और इसका सकारात्मक संदेश भी राज्य में मतदाताओं के बीच जाता। क्योंकि महागठबंधन भी राष्ट्रीय जनता दल के हाथों में ही रहने को मजबूर है। राज्य में वही नेतृत्व भी कर रहा है। लेकिन इस जल्दबाजी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह है कि राष्ट्रीय जनता दल की इस घोषणा के बाद कांग्रेस और वाममोर्चा का रुख क्या होगा।
चूंकि नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों में अभी काफी समय बचा है, इसलिए ऐसी अफवाहें भी हैं कि नीतीश कुमार जल्दी मतदान करवा सकते हैं और इसके लिए वह दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन नीतीश कुमार के हाल के दिनों नें उनके जरिए लिए कुछ फैसलों से राजनीति के माहिर खिलाड़ी भी परेशान हैं। नीतीश कब राजनीति के धुरंधरों को चौंका देंगे कहना मुश्किल है। ऐसा वह करते भी रहे हैं। नीतीश कुमार मोदी एंड कंपनी से क्या छिटक रहे हैं अब यह भी सवाल उठने लगा है। तथ्य और घटनाएं ऐसा ही बता रही है। नीतीश का पुराना इतिहास भी है कि जिससे दूर भागना होता है, उसकी महफिल से बेरुखी दिखाना शुरू कर देते हैं। नीतीश कुमार हाल ही में दिल्ली गये दो दिन रहे लेकिन मोदी-शाह-नड्डा से भेंट तक नहीं की। कांग्रेस और यूपीए के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के परिवार से मिलना ही उनका एजेंडा दिखा। वहीं पटना में केंद्रीय स्तर पर स्पीकर्स सम्मेलन हुआ।
लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला की विशेष उपस्थिति उसमें रही। राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश के अलावा कई राज्यों के विधानसभा अध्यक्ष इस कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वहां देखने भी नहीं पहुंचे। केंद्रीय मेहमानों से मिलना-जुलना भी नहीं किया। वे अपनी प्रगति यात्रा पर लगे रहे। इसी तरह 24 जनवरी को मुख्यमंत्री भारत रत्न कपूर्री ठाकुर की जयंती पर केंद्रीय स्तर पर समस्तीपुर में आयोजित होने वाले कार्यक्रम में शामिल होने के लिए उप राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ एयरफोर्स के विमान से पटना उतरे उनकी आगवानी में एयरपोर्ट पर राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान समेत बीजेपी और नीतीश सरकार के डिप्टी सीएम तक मिलने पहुंचे लेकिन नीतीश वहां भी दिखाई नहीं दिए। प्रोटोकॉल को भी नजरंदाज कर दिया।
समस्तीपुर में कपूर्री ठाकुर की जयंती समारोह में उपराष्ट्रपति के केंद्रीय कार्यक्रम में भी अपनी प्रगति यात्रा से कुछ देर का समय निकाल कर नीतीश कुमार नहीं पहुंचे। जबकि उसी दिन समस्तीपुर में ही कपूर्री ठाकुर की जयंती पर आयोजित एक दूसरे कार्यक्रम में नीतीश ने पहुंच कर कपूर्री ठाकुर की जमकर तारीफ की । कहा तो यह भी जा कहा है नीतीश कुमार ने कार्यक्रम में उस समय जाना मुनासिब समझा जब उप राष्ट्रपति समस्तीपुर से जा चुके थे।
वैसे जानकारों का मानना है कि मणिपुर सरकार से जदयू का समर्थन वापसी और फिर मणिपुर जेडीयू प्रदेश अध्यक्ष हटाने के मामले को लेकर एनडीए के साथ होते हुए भी मोदी- नीतीश के बीच उपजे अंदरूनी रार को और भी धारदार बना दिया है। सवाल ‘तू कि मैं’ वाली बात पर दोनों के बीच अंदरूनी जंग चल रही है। ऐसे में दोनों क्या खुद को बचाते हुए एक दूसरे को मौका और जुगत लगाकर पटखनी देने की भीतरी जंग तो नहीं लड़ रहे हैं? हो सकता है कि इसी बहाने नीतीश भाजपा से पिंड छुड़ाने के चक्कर में हों क्योंकि लालू ने उन्हें फिर से अपने साथ आने का न्यौता दे दिया है जिससे लेकर हल- चल तेज हो गयी है। नीतीश भी आने जाने के सवाल पर कम बोलने लगे हैं। यही बात भाजपा को अंदर ही अंदर परेशान कर रही है।
सामाजिक कार्यकर्ता दिलीप पांडेय कहते हैं कि लालू प्रसाद ने इधर नीतीश को महागठबंधन में आने का न्यौता देकर सियासी हड़कंप तो मचा ही दिया है। वहीं राहुल गांधी के हालिया बिहार दौरे और राष्ट्रीय जनता दल कार्यकतार्ओं की बैठक से राज्य में राजनीतिक गतिविधियां और तेज हो गई हैं। कांग्रेस कार्यकतार्ओं का मनोबल भी बढ़ा हुआ है। हालांकि राहुल गांधी की रैली में कांग्रेस कार्यकर्ता 243 नंबर लिखी तख्तियां पकड़े हुए थे। इसका मतलब यह है कि कांग्रेस कार्यकर्ता बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव अकेले लड़ना चाहते हैं लेकिन कांग्रेस आलाकमान ऐसा कदम उठाने में सक्षम नहीं है। हाल के दिनों में हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस को अपनी जमीनी हकीकत का एहसास हो गया है। इसी तरह अकेले दम पर बिहार में सरकार नहीं पाने वाली जनता दल यूनाइटेड को भी भाजपा से या नए सहयोगियों से हाथ मिलाने पर मजबूर होना पड़ेगा। ठीक इसी तरह कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के सामने भी यह बाध्यता है कि वे अकेले विधानसभा चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। यही वजह है कि आम जनता भी पूछने लगी है बोल बिहारी कौन है भारी।