कृष्ण कांत
'सोनिया जिसकी मम्मी है, वो सरकार निकम्मी है!'
'मनमोहन सिंह एक काम करो, चूड़ी पहनकर डांस करो!'
ये नारे याद हैं आपको? क्या आज ऐसे नारे लग सकते हैं कि "मोदी जिसका ताऊ है, वो सरकार बिकाऊ है"?
यही दिल्ली थी। यही भारत था। जनता जंतर-मंतर पर, रामलीला मैदान पर, इंडिया गेट पर इकट्ठी होकर नारे लगाती थी। सोशल मीडिया पर क्या कुछ नहीं लिखा जा रहा था।
निर्भया केस के बाद जनता राष्ट्रपति भवन तक चढ़ गई थी। हर पुलिस की तरह, तब भी दिल्ली पुलिस रोकने की कोशिश करती थी। लेकिन एक भी शख्स देशद्रोही घोषित नहीं किया गया। जनता को घेर कर मध्यकालीन किला नहीं बनाया गया। कील-कांटे नहीं बिछाए गए। सड़कें नहीं खोदी गईं। युवाओं को जेल में डालकर प्रताड़ित नहीं किया गया। हजारों लोगों को आतंकवादी नहीं बोला गया।
जो लोग उस समय प्रचारित कर रहे थे कि मनमोहन सिंह कमजोर प्रधानमंत्री हैं, वे धूर्त लोग थे।
मनमोहन सिंह एक साहसी नेता थे जिन्होंने अपनी अगुवाई में जनता को आरटीआई और लोकपाल जैसा कानून दिया और प्रशासन को ज्यादा पारदर्शी बनाया। मौजूदा कथित कायर सरकार ने इन दोनों कानूनों को बदल कर कमजोर किया।
आज ट्वीट करने के लिए, जोक सुनाने के लिए, पोस्ट लिखने के लिए, स्टोरी लिखने के लिए युवाओं को पुलिस जेल में डाल रही है।
लोकतंत्र किसी सत्तालोभी नेता की कृपा से नहीं मिलता। लोकतंत्र जनता का शासन है, सत्ता के हवसी नेता इसपर कब्जा चाहते हैं। जनता को इसे छीन कर लेना पड़ता है।
आज लोगों से विरोध-प्रदर्शन का अधिकार छीना जा रहा है। मुझे लगता है कि जब तक आपको एहसास होगा कि आपने क्या खोया है, तब तक शायद देर हो चुकी होगी।
(यह लेखक के अपने विचार हैं, उदय सर्वोदय का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।)