हुसैन ताबिश
मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब को मरे हुए लगभग 419 साल बीत चुके हैं, लेकिन मुल्क का एक तबका आज भी उससे लड़ रहा है. सभी लोग उसे हराना चाह रहे हैं! ये लड़ाई ‘छावा’ फिल्म के रिलीज होने के बाद और तेज़ हो गयी है! अब औरंगज़ेब का बचना बेहद मुश्किल होगा.. देश की मौजूदा सभी समस्याओं की जड़ वो ही ज़ालिम बादशाह है.. उसके हारने के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा! कृपा यहीं अटकी हुई है!
हालांकि, जब हमें ओरंगजेब (Aurangzeb) से लड़ना था, तब हम उसकी गुलामी कर रहे थे. उसके दरबार में चाकरी कर रहे थे. उससे संधि कर रहे थे. वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर रहे थे.
हो सकता है, तत्कालीन राजाओं ने जो उस वक़्त किया शायद वक़्त की ज़रूरत और होशियारी उसी में थी, लेकिन अब वो गालियाँ खा रहे हैं, क्यूंकि उन्होंने औरंगज़ेब के कट्टर दुश्मनों से उस वक़्त राय नहीं ली थी!
औरंगज़ेब बहुत क्रूर शासक था. हालांकि, राजा सभी क्रूर होते थे. सत्ता हासिल करने के लिए और उसे कायम रखने के लिए भाइयों तक का खून कर देते थे. बहन बेटी तक से बयाह कर लेते थे! जिसे हम महान अशोक सम्राट कहते हैं, उसने भी सिहासन के लिए अपने भाइयों का क़त्ल किया था. तब राजा चोरी -छिपे अत्याचार नहीं करता था, सब कुछ खुलेआम करता था.
आधुनिक लोकतान्त्रिक शासन में चुनी हुई सरकारें भी सत्ता कायम रखने के लिए नागरिकों का दमन करती है. उसकी हत्याएं करवाती है. एक दूसरे को आपस में भिड़ा देती है. उसकी संपत्ति हर लेती है. उसे झूठे आरोपों में जेल में ठूस देती है. उसे नज़रबंद कर देती है. उसे बोलने नहीं देती है.. सिर्फ राजगीत गाने का दबाव डालती है. पब्लिक को खुश करने के लिए देश को युद्ध के आग में झोंक देती है.
हमारा देश दुनिया का सबसे पुराना लोकतान्त्रिक देश है. इसलिए हमारे देश की संसद और विधान सभाओं में सिर्फ 27 फीसदी जनप्रतिनिधि अब दागी बच गए हैं, जिनपर लूटपाट, फिरोती, हत्या, बलात्कार, धोखाधड़ी जैसे गंभीर इलज़ाम हैं..
वैसे सत्ता संभालना किसी शरीफ आदमी का काम भी नहीं है.. ये सिर्फ राजा हरिश्चंद्र या फिर हजरत अबुबकर और उमर फारूक के ज़माने में होता होगा..
औरंगज़ेब बहुत बदमाश क्रूर राजा था.. क्रूर तो अशोक को भी माना गया है, जिसने कलिंग विजय के लिए वहां के लाखों सैनिकों को कटवा दिया था.. निर्दोष नागरिकों का भी इस युद्ध में खून बहा था.. लेकिन बोद्ध धम्म का पालन और प्रचार कर उसने अपने पाप धो लिए… लेकिन क्रूर औरंगज़ेब बाद के दिनों में इन्साफ पसंद बादशाह बनकर , कुरआन लिखकर और टोपी सिलकर खुद का खरचा वहन करने के बाद भी अपने पाप नहीं धो सका ! हर बार उसके भाई दारा शिकोह की प्रेत आत्मा इस राह में बाधा बनकर खड़ी हो जाती है..
अब हम सभी औरंगज़ेब को मारना चाहते हैं, लेकिन सजा पाने के लिए वो सदेह उपस्थित नहीं है… इसलिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने औरंगज़ेब की कब्र से बदला लेने का आईडिया दिया है.. उसे तोड़कर उससे बदला लिया जाएगा. शायर मनोज मुंतशिर इस सजा से खुश नहीं है. ये सजा उन्हें हलकी लग रही है. इसलिए मनोज ने औरंगज़ेब की कब्र पर शौचालय बनाने का प्रस्ताव सुझाया है… ताकि उसपर हगकर अपना दुःख कम किया जा सके!
मेरा सुझाव है कि औरंगज़ेब (Aurangzeb) के मकबरे को ठिकाने लगाने के बाद महाराष्ट्र में उसकी बीवी की याद में बने बीवी के मकबरा को भी तोड़ दिया जाए.. दिल्ली में लाल किला के अन्दर बने मोती मस्जिद को भी ढहा दिया जाए.. बनारस के आलमगीर मस्जिद को भी मिटा दिया जाए…
अभी आरोपी का घर तोड़ दिया जाता है, जबकि घर उसके बाप- भाई- बहन और पूरे परिवार का होता है.. इसलिए ये सजा औरंगज़ेब पर भी लागू हो… उसके बाप और दादा की निशानियों को भी नष्ट कर दिया जाए.. आखिर उन लोगों ने ऐसा क्रूर औलाद क्यों पैदा किया था ?
आइये हम सब भी मिलकर औरंगज़ेब से लड़ते हैं, ताकि दुनिया में एक मिसाल पेश किया जा सके कि विश्व गुरु और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था बनने जा रहे आधुनिक भारत के लोगों ने 400 साल पहले मरे हुए एक बादशाह से जंग कर कैसे उसे पराजित किया ?