अवनीश कुमार गुप्ता
अटल इनोवेशन मिशन (एआईएम) भारत में नवाचार और उद्यमशीलता को प्रोत्साहन देने की एक महत्त्वपूर्ण पहल है, जो देश को तकनीकी और आर्थिक दृष्टि से सशक्त बनाने की दिशा में अग्रसर है। 2016 में स्थापित इस मिशन का उद्देश्य न केवल भारत को स्टार्टअप संस्कृति में अग्रणी बनाना है, बल्कि युवाओं के भीतर रचनात्मकता और समस्या-समाधान क्षमता का विकास करना भी है। हाल ही में एआईएम को 2028 तक विस्तारित करने की मंजूरी दी गई, जिससे इसके महत्व और प्रभाव को नई मान्यता मिली। लेकिन इस पहल की सफलता केवल इसकी योजनाओं पर निर्भर नहीं करती, बल्कि उन चुनौतियों और समाधानों पर भी आधारित है, जिनका सामना यह मिशन कर रहा है।
इसे भी पढ़ें=प्राकृतिक खेती के लिए राष्ट्रीय मिशन
यदि हम भारत के नवाचार इतिहास को देखें, तो पाएंगे कि आर्यभट्ट, चरक और सुश्रुत जैसे विद्वानों ने विज्ञान, गणित और चिकित्सा के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया। लेकिन समय के साथ, विशेष रूप से औपनिवेशिक शासन के दौरान, यह नवाचार संस्कृति कमजोर पड़ गई। आज, एआईएम जैसे कार्यक्रम उसी सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं। इस मिशन ने “अटल टिंकरिंग लैब्स” और “अटल इनक्यूबेशन सेंटर” जैसी पहलों के माध्यम से छात्रों और उद्यमियों को वैश्विक स्तर की तकनीकों से जोड़ने का कार्य किया है। अब तक देशभर में 10,000 से अधिक टिंकरिंग लैब्स स्थापित की गई हैं, जो छात्रों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स और 3डी प्रिंटिंग जैसी उन्नत तकनीकों से अवगत कराती हैं। लेकिन एआईएम की इस सफलता के बावजूद इसकी राह में कई चुनौतियाँ हैं। सबसे बड़ी चुनौती ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों तक इसकी पहुँच सुनिश्चित करना है। नवाचार की जो सुविधाएँ शहरी क्षेत्रों में उपलब्ध हैं, वे ग्रामीण बच्चों और युवाओं के लिए एक सपना भर हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में कई प्रतिभाशाली छात्र हैं, लेकिन संसाधनों और मार्गदर्शन के अभाव में उनकी क्षमता व्यर्थ हो जाती है। इसके अलावा, भारतीय शिक्षा प्रणाली का अभी भी अंकों और रटंत पर केंद्रित होना भी एक समस्या है। नवाचार और समस्या-समाधान कौशल को प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षा प्रणाली में व्यापक सुधार की आवश्यकता है। इसके साथ ही, वित्तीय संसाधनों की कमी भी एक बड़ी बाधा है। एआईएम के तहत कई स्टार्टअप्स को प्रारंभिक सहायता मिली है, लेकिन देशभर में हजारों ऐसे नवोन्मेषक हैं जिन्हें अपने विचारों को साकार करने के लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता है। इसके अलावा, महिलाओं और अल्पसंख्यकों की भागीदारी अभी भी अपेक्षाकृत कम है। जब तक इन समूहों को विशेष रूप से प्रोत्साहित नहीं किया जाएगा, तब तक नवाचार का व्यापक और समावेशी विकास संभव नहीं है।
इन समस्याओं के समाधान के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं। सबसे पहले, ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल टिंकरिंग लैब्स की स्थापना की जानी चाहिए। यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म हो सकता है, जहाँ छात्र इंटरनेट और तकनीकी उपकरणों के माध्यम से आधुनिक तकनीकों का ज्ञान प्राप्त कर सकें। इसके साथ ही, शिक्षा नीति में “डिजाइन थिंकिंग” और “प्रोजेक्ट-बेस्ड लर्निंग” जैसी विधाओं को शामिल किया जाना चाहिए। यह छात्रों को रचनात्मक सोच और व्यावहारिक कौशल प्रदान करने में मदद करेगा।निजी क्षेत्र की भागीदारी भी इस मिशन की सफलता के लिए आवश्यक है। बड़ी कंपनियों और गैर-सरकारी संगठनों को इस पहल में शामिल किया जाना चाहिए। यह न केवल वित्तीय सहायता प्रदान करेगा, बल्कि तकनीकी संसाधनों को भी सुलभ बनाएगा। महिलाओं के लिए विशेष प्रशिक्षण और प्रोत्साहन कार्यक्रम भी चलाने चाहिए, ताकि वे नवाचार और उद्यमशीलता में अपनी भागीदारी बढ़ा सकें। स्थानीय संदर्भ में देखें तो उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, जहाँ बड़ी संख्या में युवा प्रतिभा उपलब्ध है, वहाँ अटल इनोवेशन मिशन को एक सशक्त मंच के रूप में उभरने की आवश्यकता है। लखनऊ, कानपुर, और वाराणसी जैसे शहरों में इनक्यूबेशन सेंटर और टिंकरिंग लैब्स को और अधिक विस्तार दिया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतों और स्थानीय संगठनों की मदद से इन योजनाओं को क्रियान्वित किया जा सकता है।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, भारत नवाचार सूचकांक में अभी 40वें स्थान पर है। यदि एआईएम जैसे मिशन को सही दिशा में आगे बढ़ाया जाए, तो भारत आने वाले वर्षों में शीर्ष 20 देशों में शामिल हो सकता है। इसके लिए मिशन को शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और कृषि जैसे क्षेत्रों में अधिक ध्यान देना होगा। विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है।
इसे भी पढ़ें=निस्तेज विपक्ष देष को कब तक अंधेरों में धकेलेगा?
अटल इनोवेशन मिशन की मौजूदा उपलब्धियाँ यह साबित करती हैं कि भारत में नवाचार और उद्यमशीलता का भविष्य उज्ज्वल है। लेकिन इसकी सफलता के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि यह पहल केवल योजनाओं तक सीमित न रहे, बल्कि इसे व्यावहारिक और समावेशी बनाया जाए। “मेक इन इंडिया” और “डिजिटल इंडिया” जैसे अभियानों के साथ तालमेल बनाकर एआईएम को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है। नवाचार केवल तकनीकी विकास का माध्यम नहीं है, यह एक सांस्कृतिक परिवर्तन है। यह समाज को उस दिशा में ले जाता है, जहाँ समस्याओं का समाधान नए दृष्टिकोण और रचनात्मकता के माध्यम से किया जाता है। अटल इनोवेशन मिशन इस दिशा में एक सशक्त प्रयास है, लेकिन इसे पूर्ण रूप से सफल बनाने के लिए सरकार, उद्योग, शिक्षा जगत, और समाज सभी को अपने-अपने स्तर पर योगदान देना होगा। यदि हम नवाचार को केवल बड़े शहरों और चुनिंदा वर्गों तक सीमित रखेंगे, तो यह केवल एक सीमित सफलता होगी। इसे हर गाँव, हर स्कूल और हर व्यक्ति तक पहुँचाने की आवश्यकता है। तभी भारत सच्चे अर्थों में “विकसित भारत 2047” के लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा।
“नवाचार वह चिंगारी है, जो विकास की आग को प्रज्वलित करती है। इसे हर कोने तक पहुँचाना ही हमारी असली जिम्मेदारी है।” अटल इनोवेशन मिशन भारत को वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनाने की दिशा में एक मजबूत कदम है, लेकिन इस राह पर हर भारतीय का साथ होना आवश्यक है।