सुधीर कुमार
आजादी के बाद देश में हर क्षेत्र में उत्तरोत्तर विकास हुआ है. इसी क्रम में शिक्षा में भी हम लोगों ने काफी विकास किया है. बहुत सारे स्कूल, कॉलेज, तकनीकी संस्थान, अनुसंधान केंद्र आदि स्थापित किए गए हैं. लाल किला के प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अनुसंधानकर्ता को हर संभव सुविधा मुहैया कराने का आश्वासन देने की घोषणा किए हैं. नई शिक्षा नीति – 2020 इन्हीं चीजों को ध्यान में रखकर लागू किया गया है. सरकार नई तकनीक और उच्च कोटि के अनुसंधान को मदद के लिए कटिबद्ध है. लेकिन जब हम इक्कीसवीं सदी में तिसरी अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर हैं ऐसे में मौजूदा विकास पर्याप्त है? क्या देश की मौजूदा अनुसंधान प्रणाली विश्व की विकसित अनुसंधान प्रणाली को टक्कर देने के लिए उपयुक्त है?
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आजादी के बाद शिक्षा में विकास हेतु मजबूत नीव को ध्यान में रखकर नवंबर, 1948 में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया. डॉ राधाकृष्णन जो बाद में देश के राष्ट्रपति बने और जिनके जन्मदिन को हम लोग शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं. आज जो शिक्षा का मॉडल हम देश में देख रहे हैं, उसमें डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का महती योगदान है. राधाकृष्णन कमेटी ने कई सारे सुझाव दिए. उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा के तीन उद्देश्य होने चाहिए – सामान्य शिक्षा, संस्कारी शिक्षा तथा व्यावसायिक शिक्षा. उसमें भी सामान्य शिक्षा पर विशेष बल दिया गया. उन्होंने विश्वविद्यालयों में परीक्षा के दिनों के अतिरिक्त 180 दिनों की पढ़ाई पर बल दिया. वर्ष 1953 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का गठन किया गया. इसी प्रकार मौलाना अबुल कलाम आजाद की सलाह पर माध्यमिक शिक्षा के पुनर्गठन की योजना बनाई गई. इसमें बेहतरी के लिए 1952 में डॉक्टर लक्ष्मण स्वामी मुदलियार की अध्यक्षता में एक नए आयोग का गठन किया गया. इसी क्रम में आईआईटी, आईआईएम और एम्स जैसे संस्थान संसद द्वारा बनाए विशेष अधिनियम के तहत स्थापित किए गए. इसके बाद एक बार फिर वर्ष 1964 में दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में एक शिक्षा आयोग का गठन किया गया इस आयोग ने प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक का मूल्यांकन किया. वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में कोठारी आयोग का बहुत बड़ा योगदान है. उन्होंने अपने रिपोर्ट में लिखा था कि शिक्षा और अनुसंधान किसी भी देश की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रगति के लिए अति आवश्यक है. इसके अलावा यशपाल कमिटी, कस्तूरीरंगन कमिटी आदि बनी जिनकी महत्वपूर्ण बातें लागू हुई. इस प्रकार आज जो हम शिक्षा का मॉडल देख रहे हैं, उन्हीं सम्पूर्ण प्रयासों का प्रतिफल है.
मैकाले की शिक्षा प्रणाली ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को पूर्णत: पश्चात शिक्षा व्यवस्था के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया था. मैकाले ने इसके तहत ‘अधोगामी निस्पंदन का सिद्धांत‘ दिया. जिसका उद्देश्य था, भारत के उच्च तथा मध्यम वर्ग के एक छोटे से हिस्से को शिक्षित करना. जिससे, एक ऐसा वर्ग तैयार हो, जो रंग और खून से भारतीय हो, लेकिन विचारों और नैतिकता में अंग्रेज हो. यह वर्ग सरकार तथा आम जनता के मध्य एक कड़ी की तरह कार्य करे. इससे उसके मंसूबे का अंदाजा लगाया जा सकता है. लेकिन क्या आजादी के बाद इस पद्धति को पुन: ध्वस्त करने के लिए उपयुक्त कदम नहीं उठाना चाहिए था?
लेकिन अब मोदी सरकार ने नई शिक्षा नीति – 2020 को लागू कर इस व्यवस्था को पूर्णत: खत्म करने का संकल्प लिया है. इस पद्धति की मूल विशेषता है मातृभाषा में शिक्षा पर जोर देना. इस प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में शिक्षा में काफी विकास हुआ है. इसी क्रम में कई सारे महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, अनुसंधान केंद्र, तकनीकी संस्थान आदि खोले गए हैं. इन संस्थानों के माध्यम से सरकार ने उच्च मानकों के साथ शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने का प्रयास किया है. देश में 2017 में महाविद्यालयों की संख्या चालीस हजार के आसपास थी जो बढ़कर 2024 में 44 हजार के आसपास हो गई है. आईआईटी और आईआईएम जैसी संस्थान की अगर बात करें तो देश में 2014 में 16 आईआईटी संस्थान थे, जो बढ़कर 2024 में 23 हो गये. आईआईएम 2014 में 13 थे जो बढ़कर 2024 में 21 हो गई है. मोदी सरकार के 10 साल के कार्यकाल में विश्वविद्यालय की संख्या में लगभग 300 की वृद्धि देखी गई है. आईबीईएफ की रिपोर्ट के मुताबिक विश्वविद्यालय की संख्या में हम विश्व में पहले नंबर पर आते हैं. छात्रों की पंजीकरण की संख्या में दूसरे नंबर पर और उच्च शिक्षा व्यवस्था में तीसरे नंबर पर आते हैं. साक्षरता दर की अगर बात करें तो 1951 में 18.33 फीसदी साक्षरता दर थी, जो बढ़कर 2021 में 77.7 फीसदी हो गई है. उच्च शिक्षा को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से साथ ही अनुसंधान में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने कुछ विश्वविद्यालय और संस्थानों को इंस्टीट्यूट आफ इमीनेंस अर्थात आईओई की मान्यता दी है. इससे संस्थान को एक विशेष पैकेज मुहैया कराया जाता है. जिसका उपयोग संस्थान वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचार में उपयोग करता है. फिलहाल देश में 10-10 सरकारी और निजी संस्थानों को इंस्टीट्यूट आफ इमीनेंस का दर्जा प्राप्त है. जिसमें यादव पूर्व यूनिवर्सिटी कलिंग विश्वविद्यालय सहित 10 संस्थानों को आईओई का दर्जा प्राप्त है.
इस प्रकार कह सकते हैं कि मौजूदा सरकार ने इस दशक में ‘नई शिक्षा नीति’ के अगुवाई में शिक्षा के विकास की मजबूत नीव डालने का काम किया है. लेकिन इस नई शिक्षा नीति का मूल प्रभाव अगले पीढ़ी में देखने को मिलेगा. बहरहाल यह देखना होगा कि प्रधानमंत्री का जो विजन, ‘विकसित भारत 2047’ है, उसमें नई शिक्षा नीति कितनी कारगर रही. अथवा शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में जो व्यवस्था सरकार कर रही है वह प्रधानमंत्री के विजन को कितना मजबूती प्रदान करता है, यह आने वाला समय ही तय करेगा.