न्यूज़ डेस्क | हमारे अपने भीतर आगे-पीछे की बातों के गुबार कम नहीं होते। बाहर का प्रदूषण मन के उस मौसम को और बिगाड़ देता है। उदासी और खालीपन का धुआं बढ़ता रहता है। कुछ करने का मन नहीं होता। पर चैन की सांस लेनी है तो कुछ तो करना होगा ही। हवा में खुशियां भी छुपी होती हैं। प्रदूषण केवल सेहत पर असर नहीं डालता, हमारी खुशियों को भी निशाना बनाता है। गंदी और जहरीली हवा फेफड़े के रास्ते, दिमाग में पहुंचकर खलबली मचाने लगती है। बिगड़े मौसम का असर हमारे मूड व बर्ताव पर भी पड़ने लगता है। शोध कहते हैं कि हमें प्रदूषण की भावनात्मक कीमत चुकानी पड़ती है। उदासी और निराशा की परतें दिमाग पर छाई रहती हैं, जो हमारे फैसलों और काम करने के तरीकों पर असर डाल सकती हैं। चिड़चिड़ापन और गुस्सा बढ़ने लगता है। यह तो हुई बाहरी प्रदूषण के असर की बात। हमारे दिमाग में आगे-पीछे के गुबार भी कम नहीं होते। लगातार कई तरह की उठापठक चलती रहती है। कई बार गड़बड़ी अपने विचारों में होती है तो कई बार दूसरों से जुड़ी बातों का कचरा दिमाग को दूषित करता रहता है। कारण जो हो, पर भीतर के प्रदूषण से जितना जल्दी हो, निजात पा ही लेना चाहिए।आइये जानते हैं इसके कुछ उपाय -
- उतार दें निराशा और उदासीनता के पर्दे-
- नई कहानी सोचें-
- बुरे विचार पर अटकें नहीं-
- ना कहना भी सीखें-
- खुद को पसंद करें-