भारत के पास ऐसी सैटेलाइट है कि वह नवाज शरीफ की पार्किंग में खड़ी कारों को गिन सकता है। वह चाहे तो पाकिस्तान में मौजूद एक-एक टैंक, ट्रक और फाइटर एयरक्र क्राफ्ट को गिन सकता है, चाहे वह पाकिस्तान में कहीं भी खड़े हों। इन दिनों भारत द्वारा पाकिस्तान में किए गए सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर खूब हो-हल्ला मचा है। पाकिस्तान तो सर्जिकल स्ट्राइक को मानने से ही इंकार कर रहा है लेकिन हकीकत यह है कि पाकिस्तान भारत की सैटेलाइट ताकत से डरा हुआ है। भारत ने कब, क्या किया, उसे इसका पता ही नहीं चला। पाकिस्तान की नजरों से दूर आकाश में उड़ रहे आधा दर्जन मेटॉलिक बर्ड्स ने भारतीय सेना के मिशन की तैयारी और उसे अंजाम देने में प्रमुख भूमिका निभाई।पाकिस्तान का डर सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। वह भारत की सैटेलाइट के क्षेत्र में बढ़ती ताकत से चिंतित है। भारत इस क्षेत्र में अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए C4ISR को विकसित कर रहा है। C4ISR यानी कमांड, कंट्रोल, कम्युनिकेशन्स, कंप्यूटर, इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रिकॉनिसन्स। भारत पहले ही एक एयरोस्पेस कमांड बना चुका है और सर्जिकल स्ट्राइक्स को समझने वाले विशेषज्ञ मानते हैं कि इसके जरिए आधी रात को हमला करने की तैयारी और उसे अंजाम देने के लिए यह कमांड महत्वपूर्ण है।इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइेशन (इसरो) हालांकि युद्ध नहीं लड़ती और पूरी तरह से एक सिविलियन एजेंसी हैं, लेकिन इसने देश को जो क्षमताएं दी हैं, वो दुनिया में श्रेष्ठ हैं। इसरो न केवल पाकिस्तान में मौजूद आतंकियों और उनके ठिकानों को गिद्ध दृष्टि से देखती है बल्कि इन ठिकानों को नष्ट करने के लिए सेना को नेविगेशन सिग्नल भी उपलब्ध कराती है। इसरो ने ऐसा ढांचा विकिसत किया है, जो दिन या रात किसी भी समय जवानों की मदद करता है। बहुत सारे भारतीयों को इन क्षमताओं के बारे में पता नहीं है और यह सब इसरो के पोर्टल में छिपा है क्योंकि मंगलयान और चंद्रमा मिशन सारा लाइमलाइट खींच लेते हैं। दूसरी ओर इसरो की 17 हजार वैज्ञानिकों की टीम खामोशी के साथ सीमाओं की रक्षा में जवानों की मदद के लिए दिन-रात काम करती है।एशिया प्रशांत क्षेत्र में सैटेलाइट्स का नक्षत्रपाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में सेना की सर्जिकल स्ट्राइक में इसरो ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और आने वाले सालों में भारतीय स्पेस एजेंसी के संसाधन सीमा पर युद्ध की स्थिति को खत्म करने में भी एक बड़ी भूमिका निभाएंगे। इसरो के चेयरमैन किरण कुमार कहते हैं कि इसरो देश के हितों की रक्षा में किसी भी योगदान से पीछे नहीं हटेगा।भारत के पास इस समय पृथ्वी की कक्षा में 33 सैटेलाइट जबकि एक सैटेलाइट मंगल के आर्बिट में है। इन सबमें 12 कम्युनिकेशन सैटेलाइट, 7 नेविगेशन सैटेलाइट, 10 अर्थ (पृथ्वी) आॅब्जर्वेशन सैटेलाइट और 4 मौसम की निगरानी से जुड़े सैटेलाइट हैं। एशिया प्रशांत क्षेत्र में यह सबसे बड़ा सैटेलाइट नक्षत्र है। बता दें कि हर सैटेलाइट एक खास उद्देश्य के लिए तैयार किया गया है और यह भारत के राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा में जरूरी मदद करता है।भारत के पास दुनिया के बेहतरीन सैटेलाइट हैं और इनमें 22 जून को लॉन्च हुए कार्टोसैट 2 सीरीज के सैटेलाइट महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। कार्टोसैट 2 सीरीज के सैटेलाइट पाकिस्तान में मौजूद छोटी से छोटी चीज को देख सकते हैं और नवाज शरीफ की पार्किंग में खड़ी कारों को भी गिन सकते हैं। 0.65 रेज्योलूशन के साथ यह हर 90 मिनट पर पृथ्वी का एक चक्कर लगाता है और पाकिस्तान में मौजूद एक-एक टैंक, ट्रक और फाइटर एयरक्राफ्ट को गिन सकता है, चाहे वह पाकिस्तान में कहीं भी खड़े हों।चीन के पास भी नहीं है ये तकनीकइसरो के पूर्व चेयरमैन माधवन नायर की बातों पर गौर करें तो चीन के पास भी ऐसी तकनीक नहीं है। ड्रैगन देश के पास जो तकनीक है, वह 5m की है, जबकि पाकिस्तान के पास इस तरह की कोई क्षमता ही नहीं है।नायर के अनुसार, भारत ने स्पेस इमेजिंग टेक्नोलॉजी में जबरदस्त पैसा लगाया है और अब पूरा फायदा उठा रहा है। यहीं नहीं, भारत के पास रीसैट-1 और रीसैट-2 के रूप में ऐसे उपग्रह हैं, जो दिन या रात कहीं भी देख सकते हैं। इन उपग्रहों को सिंथेटिक अपर्चर सैटेलाइट कहते हैं।इसी साल 28 अप्रैल को लॉन्च किए गए नाविक सैटेलाइट के जरिए नेविगेशन तकनीक में भारत के पास 20m की क्षमता है, जो फिलहाल अमेरिका के जीपीएस सिस्टम से भी बेहतर है। इसके जरिए भारत सीमा के आर-पार 1500 किलोमीटर तक देख सकता है। नेविगेशन सिग्नल 24 घंटे काम करता है। अमेरिका और रूस के पास ही इस तरह की क्षमता है। चीन भी इस मामले में पीछे है और अभी अपना नेविगेशन सिस्टम तैयार कर रहा है।यही नहीं, भारत के पास जीसैट-6 उपग्रह भी हैं, जो दो दिशाओं में एक साथ वीडियो बना सकते हैं और इसके पास 6m के व्यास वाला एंटीना है, जो 21वीं सदी में नेटवर्क आधारित युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।जीसैट 6अ सैटेलाइट से लैस टेलीफोनिक हैंडसेटगौरतलब है कि ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के समय बराक ओबामा ने उपग्रहों की मदद से सेना की कार्रवाई का लाइव वीडियो देखा था। भारत भी इसी तरह अपने जीसैट 6 और जीसैट 6A की मदद से अपने पड़ोसियों के रिमोट इलाकों से भी लाइव वीडियो हासिल कर सकता है। एयरोस्पेस कमांड के सूत्रों की मानें तो भारत जल्द ही इस तकनीक के उपयोग को हासिल कर लेगा और इसका उपयोग सामान्य जगहों पर भी हो सकता है। माधवन नायर के अनुसार, भारत अभी सैटेलाइट टेलीफोन के लिए थुराया हैंडसेट पर निर्भर है, लेकिन जल्द ही डीआरडीओ जीसैट-6 तकनीक से लैस भारतीय हैंडसेट उपलब्ध कराएगा। भारत के पास जल्द ही जीसैट 6अ सैटेलाइट टेलीफोनिक हैंडसेट भी होंगे और यह बड़ी कामयाबी होगी।इसरो ने थलसेना के साथ ही नौसेना की भी डिमांड पर रुक्मनी सैटेलाइट को लॉन्च किया है। इसके जरिए विजुअल रेंज से बाहर होने पर नौसेना के जहाज सुरिक्षत तरीके से आपस में जुड़े रह सकते हैं। आने वाले सालों में इसरो एयरफोर्स के लिए भी एक सैटेलाइट को लॉन्च करेगा। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसरो के रॉकेट लॉन्चिंग पर खासतौर से नजर रखते हैं और शायद इसीलिए पाकिस्तान को ललकारने में उन्हें कोई हिचक नहीं होती।
भारत की असली ताकत सर्जिकल स्ट्राइक नहीं, सैटेलाइट
Uday Sarvodaya | 1 Oct 2016 2:49 PM GMT
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Updated : 1 Oct 2016 2:49 PM GMT
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