⇒विवेक शुक्ला
जिस दिन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से गड़बड़ी करने का शोर सबसे अधिक होना चाहिए था, उस दिन यह मुद्दा लोकसभा चुनावों के नतीजों के कोलाहल में कहीं गुम हो गया। इसमें गड़बड़ियों को लेकर जो आरोपों का सिलसिला चल रहा था वह थम गया। लगा कि मानो ईवीएम मशीन दूध की धुली हो गई। इससे किसी को कोई शिकायत नहीं थी। राहुल गांधी से लेकर जयराम रमेश जैसे विपक्षी नेता ईवीएम में संभावित छेड़खानी के आरोप सरकार पर लगा रहे थे। जाहिर है, नतीजे अपने पक्ष में आने के बाद ईवीएम के दुरुपयोग के आरोप किसी ने नहीं दोहराए। आखिर लगाते भी किस मुंह से।
आरोप शाह पर
धीर-गंभीर जयराम रमेश ने तो दावा कर दिया था कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 150 जिला अधिकारियों और कलेक्टरों से फोन करके बात की है। अमित शाह ईवीएम के सहारे अपने उम्मीदवारों को जितवाने की फिराक में हैं। जाहिर है, उनके आरोपों से सनसनी पैदा हो गई। जयराम रमेश से जब चुनाव आयोग ने सुबूत मांगे तो उन्होंने 7 दिन का वक्त मांगा। इसे चुनाव आयोग ने ठुकरा दिया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बीती 18 मई को मुंबई में एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करते हुए कहा था “प्रधानमंत्री मोदी ईवीएम के बिना चुनाव नहीं जीत सकते।”
जयराम रमेश के आरोपों से पहले ही अमित शाह कहने लगे थे कि विपक्षी दल 4 जून को अपनी हार के लिए ईवीएम को दोषी ठहरायेंगे। पर यह नौबत नहीं आई। जब मंगलवार को लोकसभा चुनावों के नतीजे आने लगे तो ईवीएम की किसी ने चर्चा करना मुनासिब नहीं समझा।
दरअसल भारत में हाल के दौर में एक तबका इस तरह का उभर कर सामने आया है, जो स्थायी रूप से असंतुष्ट हैं। वह हर मसले पर मीन-मेख निकालता है। पूर्व में लोकसभा और विधानसभा चुनावो के नतीजों के आने के बाद हारने वाले उम्मीदवार ईवीएम को अपनी हार की वजह बताते रहे हैं। साफ है कि इन्हें किसी भी शर्त पर अपनी हार बर्दाशत नहीं है। ये हारने पर ईवीएम को बेशर्मी से ले आते हैं अपनी खीज मिटाने के लिए। ये निराशावादी और कुंठित तत्व तब चुप रहते हैं जब ये चुनाव में जीत जाते हैं। कुल मिलाकर ईवीएम में गड़बड़ी को लेकर मिथ्या और आधारहीन ही आरोप लगते रहे हैं। ईवीएम की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले बेशर्मी से मांग करते हैं कि चुनाव बैलेट पेपर से ही हों। बैलेट पेपर के पक्ष में बोलने वाले यह भूल गए कि बैलेट पेपर के दौर में मतदान के दौरान कितनी गड़बड़ होती थी। जमकर जाली मतदान होता था।
जेल जाने से पहले
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दो जून को तिहाड़ जेल में सरेंडर करने से पहले अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं को आगाह किया था ईवीएम के साथ छेड़खानी हो सकती है। उन्होंने कहा था कि अगर हमारे कैंडिडेट हार भी रहे हों तो उन्हें वहां से उठ के नहीं जाना है बल्कि आपको आखिर तक रुके रहना है। हालांकि उन्होंने ईवीएम पर तब कोई आरोप नहीं लगाए थे जब उनकी पार्टी को दिल्ली विधानसभा चुनावों में शानदार सफलता मिली थी।
कितनी भरोसेमंद ईवीएम
देखिए ईवीएम मशीनों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं कर सकता है, क्योंकि ईवीएम का इंटरनेट का कनेक्शन ही नहीं होता है।यह एक स्टैंड अलोन हार्ड पेपर हैI इसके चलते उसे ऑनलाइन हैक करना असंभव है। ईवीएम के माध्यम से होने वाले चुनावों में धांधली की बात करने वाले यह याद रखें कि किस बूथ पर कौन सी ईवीएम मशीन को भेजा जाएगा, इसके लिए पहले लोकसभा क्षेत्र, फिर विधानसभा क्षेत्र और सबसे अंत में बूथ तय किया जाता है। यानी यह एक लंबी प्रकिया है। यही नहीं, मतदान अधिकारियों को मतदान से एक दिन पहले ही मालूम चल पाता है कि उन्हें कौन सी ईवीएम मशीनें दी जाएंगी। ईवीएम में दो मशीनें होती हैं, बैलट और कंट्रोल। अब इसमें एक तीसरी यूनिट वीवीपीएटी भी होती है, जो मतदाता को एक पर्ची दिखाती है। इससे वह आश्वस्त हो जाता है कि उसका वोट सही ही पड़ा है। मतदान अधिकारी सुबह मतदान शुरू होने से पहले मतदान केंद्र पर सभी दलों के प्रत्याशियों के चुनाव अधिकारियों के सामने मॉक पोलिंग (कृत्रिम मतदान) कराते हैं। इस प्रकिया के पश्चातही उम्मीदवारों के पोलिंग एजेंट मतदान केन्द्र की मतदान टोली के प्रमुख को सही मॉक पोल का प्रमाण पत्र भी देते हैं। ईवीएम मशीनों कीइतनी सघन जांच के बाद भी अगर कोई इनमें अपना भरोसा नहीं जताता तो उसका कोई इलाज करना संभव नहीं है।
ईवीएम का डिजाइन बंबई आईआईटी के प्रोफेसर ए.जी. राव और रवि पुवईया ने तैयार किया था। 1951 के जनप्रतिनिधित्व अधिनियम को 1989 में संसद द्वारा संशोधित किया गया ताकि चुनावों में ईवीएम का उपयोग हो सके। इसे 1998 में लागू करने पर आम सहमति बनी और मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के 25 विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों में इसका सफल प्रयोग हुआ। ईवीएम का 1999 के लोकसभा चुनावों में 45 सीटों में इस्तेमाल किया गया। कह सकते हैं कि देश में ईवीएम के माध्यम से चुनाव बीते 25 सालों से हो रहे हैं। अब बैलेट पेपर सिस्टम पर वापस जाने का सवाल ही नहीं है। ईवीएम भरोसे की मशीन है। इस पर सवाल खड़े करना गलता है। बेहतर होगा कि जीतने और हारने वाले ईवीएम पर भरोसा करना सीख लें।