Close Menu
Uday Sarvodaya
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Uday Sarvodaya
    • राजनीति
    • समाज
    • शख़्सियत
    • शिक्षा
    • सेहत
    • टूरिज्म
    • कॉर्पोरेट
    • साहित्य
    • Video
    • eMagazine
    Uday Sarvodaya
    बुलडोजर पर सुप्रीम प्रहार
    राजनीति

    बुलडोजर पर सुप्रीम प्रहार

    Md Asif RazaBy Md Asif RazaOctober 22, 2024No Comments15 Mins Read
    Share
    Facebook Twitter LinkedIn Pinterest Email

    भारत एक विशाल लोकतान्त्रिक व संप्रभु देश है और विभिन्नता यहां की पहचान है। जाति, भाषा, बोलचाल और धार्मिक अलगाव के बावजूद लगभग सात दशकों से देश में लोकतंत्र फलफूल रहा है। यहां विभिन्न राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें काम करती हैं लेकिन कभी भी राष्ट्रीय एकता और संप्रभुता जैसे संवेदनशील प्रश्नों को बहस का मुद्दा नहीं बनने नहीं दिया गया। यही भारत की खूबसूरती है, यही असल मायने में लोकतांत्रिक होने का सबूत भी है। जबकि बदलते परिवेश और संदर्भ में विचारधारा की राजनीति के दबाव में या यों कहें राजनीतिक सहूलियतों के मार्फत कुछ ऐसे प्रश्नों को उछाला या मुद्दा बनाया जाता है, जिससे समाज में कुछ विशेष वर्गों के वोट को साधा जा सके। इस प्रक्रिया की निरंतरता दरअसल चली तो पहले से ही आ रही है लेकिन तात्कालिक कुछ वर्षों में इसकी मारक क्षमता या उपयोग की माँग काफी बढ़ गयी है। इससे समाज में एक विचित्र और उबाऊ राजनीति का जन्म तो हुआ ही  बल्कि इससे बढ़कर समाज टुकड़ों में बंटने की कगार पर आ गया है। सन्दर्भ यह की पिछले दो दशकों से दक्षिणपंथी राजनीति ने समाज में धार्मिक उन्माद, जातीय और वर्गभेद को बढ़ावा तो दिया ही है बल्कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के मन में भयानक डर पैदा कर दिया है।

    इसे भी पढ़ें ⇒घर-घर की जरूरत पूरा करते-करते बन गया देश का विश्वसनीय ब्रांड

    तात्कालिक संदर्भ में ‘बुल्डोजर’ एक भारतीय राजनीति का अहम प्रश्न बन गया है। दरअसल, बुलडोजर का आविष्कार मानव सुविधाओं के लिए एक हथियार के रूप में हुआ था। संयोग है कि बुलडोजर के बने हुए भी 101 साल पूरे हो रहे हैं। जिसने इसका आविष्कार किया, उसके दिमाग में इसके जरिए खेती-किसानी को समृद्ध करने की योजना थी। जेम्स कुमिंग्स और जे अर्ल मैकलेयोड नामक दोनों किसानों ने मिलकर पहले बुलडोजर का डिजाइन तैयार किया। ये दोनों अमेरिका के कंसास में रहते थे, जहां कई जगहों पर खेती करना बहुत उबड़ खाबड़ जगहों के कारण मुश्किल हो रहा था। दोनों ने मिलकर पहला बुलडोजर 18 दिसंबर 1923 को बनाया। भारत में भी इसका उपयोगिता जगजाहिर है और सालों से इसका उपयोग कई प्रकार से होता रहा है। जबकि आज यह कुछ खास वजहों से काफी चर्चा में है और बदनाम भी होता जा रहा है। साफ-साफ कह सकते हैं कि यह समाज में दुर्भावना और विखराव की नई कहानी कह रहा है। योगी आदित्यनाथ ने 10 फरवरी से 7 मार्च 2022 के बीच होने वाले 2022 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के लिए अपने चुनाव अभियान में बुलडोजर का इस्तेमाल किया। इससे उन्हें ‘बुलडोजर बाबा’ का टैग मिला। इसके बाद तो यह देश का सबसे चर्चित और ज्वलंत मुद्दा बन गया है।

    आप भलीभांति जानते हैं कि भारत एक संघीय राज्य है और इसमें शक्तियों का विभाजन केंद्र और राज्य सरकारों के बीच किया गया है। विभिन्न राज्य सरकारों के क्षेत्रीय मामलों का नियमन संविधान की सातवीं अनुसूची में दिए गए विभिन्न सूचियों के अनुसार किया जाता है। इस प्रकार की कार्यकारी कार्रवाइयां राज्य सूची के अंतर्गत आती हैं और इन विध्वंस प्रक्रियाओं का कार्यान्वयन राज्य सरकार द्वारा किया जाता है। इसका मूल आवश्यक तत्व यह है कि ये कार्रवाईयां चाहे संघ सरकार द्वारा हों या राज्य सरकार द्वारा, उन्हें कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।

    योगी आदित्यनाथ सरकार के आगमन के साथ उत्तर प्रदेश में एक प्रवृत्ति ने जोर पकड़ा है जिसे ‘बुलडोजर राजनीति’ के नाम से जाना जाता है। बुलडोजर राजनीति का तात्पर्य उन विध्वंसक कार्रवाईयों से है जो कुछ व्यक्तियों के खिलाफ की जाती हैं। हालांकि, ये कार्रवाईयां किसी प्रक्रिया के तहत नहीं की जाती ताकि किसी को दंडित किया जा सके। हालांकि, इस संदर्भ में शामिल व्यक्ति की भूमिका की जांच पुलिस या किसी अन्य जांच एजेंसी द्वारा नहीं की जाती है। केवल संदेह के आधार पर, उन्हें शीघ्र कार्रवाई करके दोषी मान लिया जाता है। उत्तर प्रदेश सरकार का यह तर्क है कि ये कदम दंडात्मक कार्रवाई के रूप में महत्वपूर्ण और उचित हैं, ताकि कानून और व्यवस्था को सुनिश्चित किया जा सके।

    विडंबना यह है कि बुलडोजर, जिसे नए बुनियादी ढांचे जैसे घर, कार्यालय, सड़कें और उद्योग बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, अब इस बुनियादी ढांचे के विध्वंस के लिए उपयोग किया जा रहा है। तर्क दिया जाता है कि ये कदम समाज में शांति, व्यवस्था और स्थिरता स्थापित करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हो गए हैं। इन तर्कों पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या ये साधारण तर्क उचित करने का प्रमाणपत्र हैं। इन कार्रवाईयों की वैधता की जांच करने से पहले, हमें कार्रवाई के आधार पर अधिक जोर देना चाहिए। इन कार्रवाइयों की शुरूआत नागरिकता संशोधन अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के खिलाफ हुए प्रदर्शनों के बाद हुई। यह ऐसे बीज की तरह था जो आगे के परिणाम के लिए बोया गया।

    यह बुलडोजर कार्रवाईयों की उत्पत्ति थी, जो प्रदर्शनकारियों की दंगों में संलिप्तता के संदेह पर आधारित थी, चाहे वह योजना बनाना हो या आयोजन करना। इस बीच, विभिन्न राजनीतिक नेताओं द्वारा एक प्रश्न उठाया गया कि क्या यह किसी विशेष समुदाय के खिलाफ राज्य की कार्रवाई है या यह राजनीतिक एजेंडों और वैचारिक मतभेदों से प्रेरित है। यह प्रश्न वैध मान्यता प्राप्त करता है क्योंकि जिन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई, वे मुख्य रूप से अल्पसंख्यक वर्ग से संबंधित थे। ये कार्रवाई दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और गुजरात में हुई। इन राज्यों की सत्ताधारी सरकारें बीजेपी की थी, जो बहुसंख्यक राजनीति की ओर झुकाव रखती हैं।

    बुलडोजर चलाने के नियम
    सर्वविदित है कि लोकतंत्र और स्वतंत्रता की शुरूआत एक प्रमुख आवश्यकता, विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आधारित है। यह अभिव्यक्ति विचारों, पहनावे, अनुष्ठानों और अन्य संचार के रूपों को शामिल करती है। यह सिद्धांत हमारे संविधान के मौलिक अधिकारों के भाग में अनुच्छेद 19 के रूप में अंकित है। इस अनुच्छेद की विशाल संरचना एक ऐसे स्तंभ पर खड़ी है जो न्याय तक पहुंच को सुनिश्चित करता है। पहला कदम यह है कि न्यायालय के सामने परीक्षण का अवसर दिया जाए, यहाँ तक कि गंभीर अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्तियों को भी उसका अधिकार है।अवैध अतिक्रमण को विध्वंस किया जाना चाहिए, लेकिन यह संविधान के मूल्यों और कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार होना चाहिए। सरकार द्वारा उठाए गए कदम गंभीर प्रकृति के हैं और विकास सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं, लेकिन इस प्रक्रिया में बड़े  और सरोकारी प्रश्न भी निहित हैं। इन प्रश्नों का समाधान अति आवश्यक है। हमारे संविधान के निमार्ताओं के प्रमुख उद्देश्य स्वतंत्रता, समानता और व्यक्तियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना थे। ये मूल्य प्रस्तावना से सीधे परिलक्षित होते हैं।

    प्रस्तावना में ‘विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और पूजा की स्वतंत्रता’ का उल्लेख है, जिसका अर्थ है कि सरकार का यह कर्तव्य है कि वह इन मूल्यों की रक्षा करे, न कि उनका उल्लंघन करे। अंतिम टिप्पणियों में, डॉ। बी। आर। अंबेडकर के संविधान सभा में दिए गए अंतिम भाषण से एक अंश है: ‘चाहे संविधान कितना भी अच्छा हो, यह बुरा ही साबित होगा क्योंकि जिन्हें इसे लागू करने के लिए कहा गया है, वे खराब लोग होते हैं। हालांकि, चाहे संविधान कितना भी बुरा हो, यदि उसे लागू करने वाले अच्छे लोग होते हैं, तो यह अच्छा साबित हो सकता है।’

    (अ) सरकारी जमीन पर कब्जा करने की स्थिति में
    अगर किसी व्यक्ति या संस्था के जरिए किसी भी सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया गया हो, तो प्रशासन उनके ऊपर बुलडोजर की कार्रवाई कर सकता है। इसके लिए प्रशासन की तरफ से कब्जा करने वाले व्यक्ति या संस्था को संपत्ति को खाली करने के लिए नोटिस भेजा जाता है। दूसरी तरफ से जवाब न मिलने की दशा में या देय समय में संपत्ति खाली नहीं करने के बाद प्रशासन बुलडोजर से ध्वस्तीकरण कर सकता है। उत्तर प्रदेश रेगुलेशन बिल्डिंग आॅपरेशन अधिनियम 1958 के प्रावधानों के तहत प्रशासन कब्जा खाली करने के लिए कब्जेदार व्यक्ति, संस्था को नोटिस भेजती है। एक्ट का सेक्शन- 10 के मुताबिक, कब्जेदार को नोटिस का जवाब 2 महीने के अंदर देना होता है। हालांकि यह संबंधित प्राधिकरण के ऊपर है कि उसे जवाब कितने दिनों में चाहिए।

    (इ) उफढउ के तहत भी प्रशासन कर सकता है कार्रवाई
    भारतीय दंड विधान संहिता के अनुसार अगर कोई अपराधी जुर्म करने के बाद फरार है, तो सबसे पहले उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया जाता है। वारंट जारी होने के बाद भी अपराधी ने अगर आत्मसमर्पण नहीं किया है, तो उफढउ के नियमों के तहत उसकी संपत्ति को कुर्क किया जा सकता है। दंड प्रक्रिया संहिता (उफढउ) की धारा- 83 के तहत प्रशासन केवल अपराधी की संपत्ति को कुर्क कर सकता है। वहीं यह धारा अधिकार कतई नहीं देता कि प्रशासन उस घर को ही विनष्ट कर दे, ऐसा करना उस व्यक्ति या संस्था के मूल अधिकारों का उल्लंघन होगा जो आगे भरपाई का पूरा हकदार होगा।      

    (उ) निर्माण का नक्शा ना पास होने की दशा में
    अगर आपने अपने निर्माण का नक्शा संबंधित प्राधिकरण या अधिकारी से पास नहीं कराया है, तो ऐसी स्थिति में भी बुलडोजर की कार्रवाई संभावित है। आपके निर्माण के नक्शे को पास करने के लिए अलग-अलग निकाय की व्यवस्था की गई है। अगर आपका निर्माण महानगर में है, तो आपको महानगर के विकास प्राधिकरण से नक्शा पास कराना होता है। वहीं, अगर आप नगरपालिका में कोई निर्माण करवा रहे हैं, तो आपको पहले उपजिलाधिकारी से अपने निर्माण का नियत नक्शा पास कराना चाहिए। यह एक नियम है लेकिन भारत जैसे विशाल देश में इन कानूनों की कितनी अहमियत होती है और कैसे इसे अमलीजामा पहनाया जाता है सर्वविदित है- यहीं वह आधार है जिसकी आड़ में सरकारी बुल्डोजर गरजते रहते हैं, जिस पर देश की सर्वोच्च अदालत ने गंभीर टिपण्णी की है।     

    अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत का अभियान
    देश में हो रहे बुलडोजर की कार्रवाई पर धीरे-धीरे ही सही अंतरराष्ट्रीय जगत में भी इसके विरोध में आवाज उठनी शुरू हो गई है। हालिया ही अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार द्वारा जारी की गई दो सहायक रिपोर्ट में भारत में मुस्लिमों के घरों, व्यवसायों और पूजा स्थलों के व्यापक अवैध विध्वंस के लिए बुलडोजर और अन्य मशीनों के उपयोग को तुरंत रोकना की अपील की गई है। ये दोनों रिपोर्टें- 1. ‘अगर आप बोले, तो आपका घर ध्वस्त कर दिया जायेगा:, 2. ‘भारत में बुल्डोजर अन्याय और जिम्मेदारी की खोज’ में साफ-साफ कहा गया है कि कम से कम पांच राज्यों में मुस्लिम संपत्तियों के दंडात्मक विध्वंस का दस्तावेजीकरण करती हैं, जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ नफरत के अभियान के रूप में खउइ-ब्रांड के बुलडोजर या खुदाई करने वाली मशीनों का व्यापक रूप से उपयोग किया गया है। ये विध्वंस व्यापक निर्दयता के साथ किए जाते हैं, जैसा कि मुंबई में राम मंदिर रैली के बाद मीरारोड में हुए विध्वंस से स्पष्ट था, जिसके बाद वहां व्यापक हिंसा भड़क उठी थी। यह रिपोर्ट मांग करती है कि भारत सरकार और राज्य सरकारों तुरंत लोगों के घरों को विध्वंस करने की व्यावहारिक नीति को रोके और यह सुनिश्चित करे कि किसी को भी जबरदस्ती बेघर होने नहीं दिया जायेगा। उन्हें विध्वंस से प्रभावित सभी लोगों को उचित मुआवजा भी प्रदान करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन उल्लंघनों के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाए।

    अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन की महासचिव एग्नेस कलामार्ड कहते हैं-‘भारतीय अधिकारियों द्वारा मुस्लिम संपत्तियों का अवैध विध्वंस, जिसे राजनीतिक नेताओं और मीडिया द्वारा ‘बुलडोजर न्याय’ के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, क्रूर और भयावह है। इस प्रकार का विस्थापन और संपत्ति की हानि गहरी अन्यायपूर्ण, अवैध और भेदभावपूर्ण है। ये परिवारों को नष्ट कर रहे हैं और इसे तुरंत रोकना चाहिए। आगे कहते हैं-‘अधिकारियों ने बार-बार कानून के शासन को कमजोर किया है, नफरत, उत्पीड़न, हिंसा और बुलडोजरों के हथियार के रूप में लक्षित अभियानों के माध्यम से घरों, व्यवसायों या पूजा स्थलों को नष्ट किया है। इन मानवाधिकारों के उल्लंघनों को तुरंत संबोधित करने की आवश्यकता है।’

    बुलडोजर राज- बेघर होते लोग
    देश के कई राज्य बुल्डोजर राजनीति के दंश को झेल रहे हैं। इस आफत रूपी कार्रवाई में अधिकांश रूप से अल्पसंख्यकों को ही निशाने बनाया जाता है। व्यक्तिगत अपराधियों के घरों पर चले बुल्डोजर की बात छोड़ ही दीजिये, कई मौकों पर बड़ी-बड़ी बसावटें भी उजाड़ दी गई है। लखनऊ के अकबरनगर का दर्दनाक हादसा सभी को आंसू बहाने पर विवश कर देता है। 19 जून को, लखनऊ के अकबरनगर में एक बड़े निष्कासन अभियान में, राज्य सरकार ने लगभग 1,800 संरचनाओं को ध्वस्त किया, जिसमें 1,169 घर और 101 व्यावसायिक प्रतिष्ठान शामिल हैं। भाजपा सरकार इस क्षेत्र को कुकरैल रिवरफ्रंट में विकसित करने की योजना बना रही है, जिससे इसे एक ईकोटूरिज्म केंद्र में बदल दिया जाएगा। कई निवासी वहां दशकों से रह रहे हैं, कुछ का दावा है कि वे वहां विकास प्राधिकरण के गठन से पहले से रह रहे थे। यह कैसा विकास है जिसके लिए दशकों से रह रहे परिवारों को विकास के नाम पर कुछ घंटों में बेघर कर दिया जाता है? यहीं कहनी गुजरात में सोमनाथ के पीछे बने सैकड़ों घरों और दर्जनों प्रार्थना स्थानों को एक ही रात समूल नष्ट कर दिए जाने के मामले में दुहराई गई। खासकर मुसलमानों और अधिकांशत: हाशिये पर मौजूद समूहों को नारकीय जीवन जीने पर अभिशप्त कर दिया जाता है। लखनऊ अकबरनगर में दशकों से रह रहे एक निवासी विष्णु कश्यप (काल्पनिक नाम) नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘हमारे घरों को ध्वस्त कर दिया गया, और अब सरकार यहां एक रिवरफ्रंट बनाएगी। आप बताएं, क्या अधिक महत्वपूर्ण है, एक गरीब व्यक्ति का घर या एक रिवरफ्रंट? जबकि हमारा परिवार नगर निगम के बनने से पहले से ही यहां रह रहा है?’  वहीं, सरकार का दावा है कि ये संरचनाएं अतिक्रमण हैं। एक प्रवक्ता ने कहा कि यह क्षेत्र अतिक्रमित था, जो नदी को ढकता है, जिसके कारण नदी पर भूमाफिया और रोहिंग्या तथा बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा अवैध निर्माण हो गए हैं। यह कहना अपने-आप में कितना हास्यास्पद है कि एक सरकार के होते हुए कैसे इतनी बड़ी बसावट बसी, क्यों बसने दिया गया, अगर ऐसा हुआ तो दोषी कौन है, उसे दंडित क्यों नहीं किया जाना चाहिए? इस प्रश्न का जवाब सरकार को जरूर देना चाहिए। आंकड़े बताते हैं कि पिछले दो सालों में ही तकरीबन 1,70,000 घरों का विध्वंस कर दिया गया तथा लगभग 8,38,000 लोग बेघर हो गए और खुल्ले आसमान के निचे जीने पर मजबूर हैं।

    स्वामित्व धारकों के अधिकार
    अगर सरकार अचानक इस तरह की कोई कार्रवाई करती है को इसके बचाव में घर मालिकों और इन संस्थानों के मालिकों को भी कुछ अधिकार होते हैं जिसका उपयोग समय रहते किया जा सकता है। जैसे- कारण बताओ नोटिस मिलने के 30 दिन के अंदर उसे विकास प्राधिकरण के चेयरमैन के साथ अपील करनी होगी। अपील के बाद अगर चेयरमैन को लगता है कि आदेश में बदलाव होना चाहिए तो वो ऐसा कर सकते हैं। या उसे रद्द भी कर सकते हैं। हर हाल में चेयरमैन का फैसला अंतिम माना जाएगा। इसके बाद वही होगा जो चेयरमैन को सही लगेगा। वहीं, इन प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद आप कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। यहीं कारण है कि देशभर में चल रहे अवैध बुलडोजर एक्शन के खिलाफ जमीयत उलेमा ए हिंद की याचिका पर सुप्रीम कोर्टने आज सुनवाई करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया है।
    सुप्रीम कोर्ट का अहम निर्णय
    देश भर में हो रहे बुल्डोजर कारवाई पर आखिरकार सुप्रीम हथौड़ा चल ही गया। देश की सर्वोच्च अदालत ने सुनवाई में सभी पक्षों को सुनने के बाद यह साफ कर दिया है कि बुल्डोजर की अमानवीय कार्यवाई किसी भी सूरत में उचित नहीं है बल्कि यह पूरी तरह बर्बर समाज द्वारा बर्बरता से किया गया कुकृत्य है। देश की सर्वोच्च अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि देश भर में तोड़फोड़ पर गाइडलाइन बनाएंगे, तबतक बुलडोजर पर अंतरिम रोक वाला फैसला जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निदेर्शों का उल्लंघन अदालत की अवमानना माना जाएगा। अगर तोड़फोड़ अवैध पाई गई तो संपत्ति को वापस करना होगा। इस मामले की सुनवाई जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की बेंच कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं, हम सब नागरिकों के लिए गाइडलाइन जारी करेंगे। अवैध निर्माण हिंदू, मुस्लिम कोई भी कर सकता है। हमारे निर्देश सभी के लिए होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म या समुदाय के हों।

    इसे भी पढ़ें ⇒आरईसी के सीएमडी विवेक कुमार देवांगन का दृष्टिकोण: सरकार की ऊर्जा योजनाएं और भविष्य

    बेशक, अतिक्रमण के लिए हमने कहा है कि अगर यह सार्वजनिक सड़क या फुटपाथ या जल निकाय या रेलवे लाइन क्षेत्र पर है, तो हमने स्पष्ट कर दिया है। अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना है, चाहे वह गुरुद्वारा हो या दरगाह या मंदिर, यह सार्वजनिक बाधा नहीं बन सकती। जस्टिस गवई ने कहा कि चाहे मंदिर हो, दरगाह हो, उसे जाना ही होगा क्योंकि ⁠सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है। इस केस की सुनवाई में यूपी, एमपी और राजस्थान की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान आज पूछा कि क्या दोषी करार देने पर भी किसी की संपत्ति तोड़ी जा सकती है? जिस पर एसजी तुषार ने कहा कि नहीं, यहां तक कि हत्या, रेप और आतंक के केस के आधार पर भी नहीं।

    अत: सरकार ने भी माना है कि अभी तक जो भी कारवाई हुई है कुछेक को छोड़ दे, तो सभी करवाईयां गलत थी। अत: अब एक बेहतर उमिंद की आस जगी है। लेकिन उनका क्या जिनका सबकुछ उजाड़ गया, क्या सर्वोच्च अदालत उनके गहरे घावों पर भी मरहम भर ही लगाएगा या उन्हें भी एक भारतीय नागरिक की तरह पुन: सम्मान के साथ जीने और बसर के लिए पुन: घर मिलेंगे? हम उमीद करते है कि सर्वोच्च अदालत उन्हें निश्चित ही निराश नहीं करेगी।

    #bulldozer #bulldozer baba #Democracy #government #hindu #muslims #peace #politics #religions #republic #society #Supreme Court #UP #yogiadityanath
    Share. Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Md Asif Raza
    • Website

    I am working as a Creative Designer and also manage social media platform.

    Related Posts

    राष्ट्रीय सेवा योजना के सात दिवसीय विशेष शिविर का समापन

    April 28, 2025

    विवाद के समय बीजेपी क्यों छोड़ देती है अपने नेताओं का साथ

    April 24, 2025

    क्या है देश के अपमान की परिभाषा

    April 24, 2025

    Comments are closed.

    Don't Miss
    कॉर्पोरेट

    REC को वित्त वर्ष 2025 में ₹15,713 करोड़ का रिकॉर्ड शुद्ध लाभ

    By Uday SarvodayaMay 8, 20250

    नई दिल्ली, 8 मई 2025: सरकारी स्वामित्व वाली आरईसी लिमिटेड ने वित्त वर्ष 2024-25 के…

    देश में ऑनलाइन लूडो के बढ़ते खतरे पर कैसे लगेगी लगाम

    May 7, 2025

    इन्हें अपराध से नहीं बल्कि अपराधी के धर्म से नफ़रत है

    May 7, 2025

    मीट इन इंडिया कॉन्क्लेव रहेगी खास, 55 देशों के टूअर ऑपरेटर्स करेंगे शिरकत

    April 29, 2025
    Popular News

    2000 रुपये के नोट एक्सचेंज नियमों में बदलाव: अब तक बचे हुए नोट बदलने का समय बढ़ा, जानिए नए निर्देश

    January 8, 2024

    समय तय करेगा अयोध्या धाम किसको देगा फायदा कौन उठायेगा नुकसान

    January 1, 2024

    अति की हार

    June 6, 2024
    Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
    • Home
    • About Us
    • Privacy Policy
    • Terms & Conditions
    • Contact Us
    © 2025 Powered by NM Media Solutions

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.