हुसैन ताबिश
अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव के नतीजे सामने आ गए हैं। बड़बोला, भ्रष्टाचार और व्यभिचार के केस में फंसे ट्रम्प दोबारा अमेरिका के राष्ट्रपति बन जाएंगे। ड्रेमोक्रेट कमला हैरिस काफी मतों से उनके पीछे रह गई। यहाँ कमला हैरिस के चुनाव के राष्ट्रपति नहीं बनने के पीछे दो मत हो सकते हैं। या तो उनके भारतीय मूल की होने की वजह से अमेरिकन ने उनपर भरोसा नहीं किया, जैसे 2004 के आम चुनावों में भारत में सोनिया गाँधी को विदेशी मूल का बताकर उनकी ही पार्टी के लोगों ने उनके प्रधानमंत्री पद की दावेदारी का विरोध किया था। या फिर कमला हैरिस का महिला समझकर नकार दिया गया। इससे यह साफ़ हो जाता है कि अमेरिकी अवाम भी लैंगिक भेदभाव और पितृसत्तातमक सोच की शिकार है, जो किसी महिला को राष्ट्रपति के ओहदे पर बर्दाश्त नहीं कर पाती है। ऐसे में तो यही लगता है कि हम भारतीय अमेरिकन से ज्यादा प्रोग्रेसिव हैं।
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अमेरिका लम्बे अरसे से पूरी दुनिया के लिए एक आर्थिक और सैन्य महाशक्ति बन हुआ है। दुनियाभर के देश और लोग अमेरिकन लोकंत्रत और वहां की सियासी निजाम की दुहाई देते हैं। उसकी मिसाल पेश करते हैं। लेकिन अमेरिका के पिछले 235 सालों के इतिहास में राष्ट्रपति जैसे ओहदे पर किसी महिला के अब तक विराजमान न होने पर अमेरिकन लिगेसी पर कई तरह के सवाल खड़े करता है।
अमेरिका में 1788-89 में पहली बार राष्ट्रपति के लिए चुनाव हुआ था। पहली बार यहाँ कोई महिला विक्टोरिया वुडहुल ने 1872 में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ा था।
आखिरी बार 2016 में पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की बीवी हिलेरी क्लिंटन ने भी राष्ट्रपति पद के लिए फाइट किया था, लेकिन वो डोनाल्ड ट्रंप से चुनाव हार गईं। यानी अमेरिका में 235 सालों के संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में आजतक कोई महिला राष्ट्रपति नहीं बन सकी है।हालांकि, राष्ट्रपति पद को छोड़ दें तो अमेरिका में कई उच्च पदों को महिलाएं संभाल चुकी हैं। संसद के दोनों सदनों में भी महिलाओं की अच्छी-खासी मौजूदगी रहती है, लेकिन राष्ट्रपति के मामले में अमेरिका का रिकॉर्ड बेहद ख़राब है।
अमेरिका के बरअक्स, अगर हम भारत की बात करें तो भारतीय 1966 में ही इंदिरा गांधी को देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बना चुके हैं। इंदिरा गांधी 1984 में हत्या से पहले तीन बार भारत की प्रधानमंत्री रहीं। इंदिरा गांधी का आकलन विश्लेषक और इतिहासकार भारत के सबसे ताकतवर पीएम के रूप में करते हैं। भारत में हम दो-दो राष्ट्रपति ( प्रतिभा देवी सिंह पाटिल और द्रोपदी मुर्मू) बना चुके हैं, भले ही इनके पीछे की राजनीतिक परिस्थितियां कुछ भी रही हो।
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इस मामले हमारा पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान भी भारत के समकक्ष दिखता है, जिसने पाकिस्तान में 1988 में बेनजीर भुट्टो के रूप में पहली प्रधानमंत्री को स्वीकार किया। वह किसी मुस्लिम बहुल राष्ट्र की पहली महिला नेता बनीं थी। इसके बात भारत के एक और पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में भी पाकिस्तान के बाद 1991 से 96 और 2001 से 2006 तक खालिदा जिया ने महिला प्रधानमंत्री के ओहदे पर पहुंची। बाद में दूसरी महिला शेख हसीना भी इस पद पर पहुंची। भारत के एक तीसरे पड़ोसी देश श्रीलंका में भी 1960 में सिरीमावो भंडारनायके ने देश की प्रधानमंत्री बनकर पुरुषों के एकाधिकार को चुनौती दी। भंडारनायके दुनिया में किसी भी देश की प्रमुख के रूप में चुनी जाने वाली पहली महिला थीं।