Close Menu
Uday Sarvodaya
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Uday Sarvodaya
    • राजनीति
    • समाज
    • शख़्सियत
    • शिक्षा
    • सेहत
    • टूरिज्म
    • कॉर्पोरेट
    • साहित्य
    • Video
    • eMagazine
    Uday Sarvodaya
    समाज और देश के लिए अमूल्य निधि और धरोहर हैं बुजुर्ग
    समाज

    समाज और देश के लिए अमूल्य निधि और धरोहर हैं बुजुर्ग

    Md Asif RazaBy Md Asif RazaDecember 9, 2024No Comments7 Mins Read
    Share
    Facebook Twitter LinkedIn Pinterest Email

    सुनील कुमार महला

    पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण भारतीय सामाजिक परिवेश में अनेक आमूलचूल परिवर्तन आए हैं। आज हमारे सामाजिक, नैतिक मूल्य बदल गये हैं। हमारी संस्कृति, हमारे संस्कार आज शनै:शनै: पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति के रंग में रंग रहे हैं। आधुनिकता का रंग हम सभी पर आज हावी हो गया है। समय,काल और परिस्थितियों के अनुसार आज हमारी युवा पीढ़ी की सोच में भी आमूल-चूल परिवर्तन आए हैं। बढ़ती महंगाई, बढ़ती जनसंख्या, औधोगिकीकरण, तकनीकी विकास ने समाज को किसी न किसी रूप में प्रभावित किया है। भारतीय समाज में आज एकल परिवार का कंसेप्ट जन्म ले चुका है और संयुक्त परिवार का कंसेप्ट धीरे-धीरे कम होता चला जा रहा है। आज व्यक्ति स्वयं, अपने बच्चों और पत्नी तक ही सीमित रह गया है। आज हम आधुनिकता, शहरीकरण और भौतिकवादी दृष्टिकोण में फंसकर हमारी सनातन संस्कृति, संस्कारों को लगातार भुलाते चले जा रहे हैं। आज हम अपने बच्चों में बड़ों-बुजुर्गों के प्रति आदर और सम्मान की भावना को जागृत करने में असमर्थ दिख रहे हैं और आज हमारे बुजुर्ग आज एकाकी जीवन जीने को मजबूर हैं।

    इसे भी पढ़ें=बैन ड्रग्स के लिए युवाओं में बढ़ती तलब

    यह विडंबना ही है कि धरती पर भगवान का रूप कहे जाने वाले माँ-बाप को आज अपने बच्चों के होते हुए दर-दर भटकना पड़ता है। कई बार तो माँ-बाप अपनी संतान के सामने इतने असहाय हो जाते हैं कि थक-हारकर वे अपनी जीवनलीला ही समाप्त कर लेते हैं। आज समाज में वृद्धों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। आज जगह-जगह वृद्धाश्रम खोले जा रहे हैं ? आखिर हमारे देश में क्यों इनको आज खोले जाने की जरूरत पड़ रही है ? यहां यह बात हमें निश्चित ही यह सोचने पर मज़बूर करती है कि क्या हमारे माता-पिता की ज़िम्मेदारी सरकार की है; हमारा उनके प्रति कोई उत्तरदायित्व या जिम्मेदारी नहीं है ? क्यों आधुनिकता, पाश्चात्य संस्कृति की अंधी दौड़ में भागते हुए हम अपने संस्कारों , कर्तव्यों, आदर्शों व जिम्मेदारियों को लगातार भूलते जा रहे हैं ? जब उन्होंने कभी हमें अकेला नहीं छोड़ा, हमारा साथ नहीं छोड़ा, तो हम इतने स्वार्थी कैसे हो जाते हैं कि बिना कुछ सोचे- विचारे नि:सहाय अवस्था में उन्हें अकेले छोड़कर चले जाते हैं।

    जबकि हम सब यह बात जानते हैं कि वृद्धावस्था में बुजुर्गों को कई प्रकार की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, 2031 तक इस देश में 194 मिलियन वरिष्ठ नागरिक हो जाएँगे।आंकड़ों की बात करें तो ‘हेल्पएज इंडिया’ एनजीओ द्वारा किये गए एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण से पता चला कि कम से कम 47 प्रतिशत वृद्धजन अपने परिवारों पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं और 34 फीसदी पेंशन एवं सरकारी नकद हस्तांतरण पर निर्भर हैं। पहले संयुक्त परिवार ज्यादा होते थे, एकल परिवार कम। संयुक्त परिवारों में बुजुर्गों की अहमियत ज्यादा थी, उनका स्थान सर्वोपरि था। यह विडंबना ही है कि आज हम भूल चुके हैं कि बुजुर्गों का सम्मान ही हमारी संस्कृति का परिचायक है। बच्चे के लिए पहले गुरु उसके माता-पिता होते हैं।दादा-दादी व नाना-नानी बच्चों को संस्कार-संस्कृति की सीख देते हैं, लेकिन यह हमारे समाज की विडंबना ही है कि आज वृद्धावस्था में हमारे वृद्ध/बुजुर्ग कुंठा में जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं। बुजुर्गों का आज समाज में वह मान-सम्मान नहीं होता जो आज से तीस-पैंतीस बरस पहले होता था। वर्चुअल वर्ल्ड में फंसीं हमारी युवा पीढ़ी बुजुर्गों का आदर-सत्कार, मान-सम्मान करना जैसे भूल सी गई है। उम्र की ढ़लती सांझ में आज हमारे बुजुर्गों को अनेक उपेक्षाओं का शिकार होना पड़ता है, लेकिन युवा पीढ़ी को यह याद रखना चाहिए कि एक दिन बूढ़ा सभी को होना है। अंग्रेजी कवि अलेक्जेंडर पोप कहते हैं -‘ वीं थिंक अवर फादर्स फूल्स, सो वाइज वी ग्रो। अवर वाइजर सन्स, नो डाउट विल थिंक अस सो।’ मतलब यह है कि आज प्रत्येक पीढ़ी यह मानती है कि वह पिछली पीढ़ी से अधिक बुद्धिमान है। यह दर्शाता है कि कैसे युवा अक्सर अपने बुजुर्गों को बूढ़ा और मूर्ख समझते हैं, लेकिन जब वे बड़े हो जाते हैं तो उनके अपने बच्चे भी उन्हें उसी तरह से देखते हैं। आज युवा पीढ़ी अहंकार में डूबीं है और उसकी आम सोच यह है कि वह कभी बूढ़ी नहीं होगी।वास्तव में यह हमारी युवा पीढ़ी के पीढ़ीगत अहंकार को ही कहीं न कहीं रेखांकित करता है, लेकिन युवा पीढ़ी को यह पता होना चाहिए कि बुजुर्ग अनुभवों का खजाना होते हैं। बुज़ुर्ग हमारे परिवार, हमारे समाज की असली रीढ़ होते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि बुजुर्गों के पास जीवन का व्यापक दृष्टिकोण होता है और उन्होंने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे होते हैं और वे जानते हैं कि कठिन समय में कैसे सामंजस्य बिठाना है। उनकी सलाह और अनुभव से परिवार के सदस्य जीवन की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होते हैं।

    युवा पीढ़ी को यह याद रखना चाहिए कि ये बुजुर्ग ही हैं जो हमें समाज में एक बेहतर इंसान बनना सिखाते हैं और वे आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत हैं। बुजुर्गों ने हमें बहुत कुछ दिया है-उनकी अंतर्दृष्टि, उनका धैर्य, उनका स्नेह, उनके आशीर्वाद की छत्रछाया में ही हम इस जीवन रूपी संसार में उनसे बहुत कुछ सीखते हुए निरंतर आगे बढ़ते हैं। सच तो यह है कि बुजुर्ग हमारे समाज की धरोहर हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि बुजुर्ग ही हमारे परिवार की मजबूत नींव, आधारशिला होते हैं, जो अपने अनुभव, ज्ञान और परंपराओं के साथ परिवार को मजबूत बनाते हैं। उनके पास जीवन के विभिन्न क्षेत्रों का व्यापक अनुभव होता है, जो उन्हें परिवार के अन्य सदस्यों के लिए मार्गदर्शक और सलाहकार बनाता है। बुजुर्ग हमारी संस्कृति और परंपराओं का संवाहक होते हैं जो अपने अनुभव और ज्ञान के माध्यम से नई पीढ़ी को सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों से परिचित कराते हैं। परिवार में किसी दिक्कत, परेशानी, दुविधा,संकट के समय बुजुर्गों से ही हमें नैतिक और भावनात्मक समर्थन मिलता है और हम जीवन रूपी मार्ग पर सही से चल पाते हैं। बुजुर्ग परिवार में एकता और समरसता का वातावरण बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं। परिवार के वित्तीय मामलों में भी हमारे बुजुर्ग हमें व्यापक मार्गदर्शन और सलाह प्रदान करते हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि बुजुर्गों के लिये गरिमा भरे जीवन को सुनिश्चित करने के लिये कानून में कई तरह के प्रावधान हैं। जिनमें एक कानून ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण कानून 2007 है, जो विशेष रूप से संतानों द्वारा सताए जा रहे बुजुर्गों के लिये बनाया गया है। इसके तहत बच्चों/रिश्तेदारों के लिये माता-पिता/वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल करना, उनके स्वास्थ्य, उनके रहने-खाने जैसी बुनियादी ज़रूरतों की व्यवस्था करना अनिवार्य है।

    इसे भी पढ़ें=आर्टिफिशियल इंटैलीजैंस’ टैक्नोलॉजी के दो पहलू

    आज सरकार द्वारा अन्य बहुत से कानून भी हैं जो बुजुर्गों की रक्षा-सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं, लेकिन आज भी भारत में बहुत से बुजुर्ग अक्सर लोक-लिहाज के डर से अपने बच्चों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने से हिचकते हैं। उन्हें यह लगता है कि अगर वे अपने ही बच्चों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेंगे तो परिवार का नाम खराब होगा; जमाना क्या कहेगा; बच्चे हमेशा के लिए उनसे दूर हो जाएँगे इत्यादि इत्यादि। वहीं, कुछ ज़ागरूकता की कमी के चलते चुपचाप बच्चों द्वारा किए जा रहे दुर्व्यवहार को सहते रहते हैं। अंत में, मैं यही कहूंगा कि बुजुर्गों का परिवार में, समाज में, इस देश में होना सिर्फ एक आवश्यकता ही नहीं है, बल्कि बुजुर्ग हम सभी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण संपत्ति हैं, वैभव हैं। बुजुर्ग बोझ नहीं है, अपितु अनुभव का विशाल खजाना हैं, परिवार के लिए बड़ा संबल और ताकत हैं। युवा पीढ़ी को यह चाहिए कि वे बुजुर्गों को वृद्धावस्था में वृद्धाश्रम में भटकने के लिए मजबूर नहीं करें, क्यों कि एक दिन बूढ़ा सभी को होना है। जिन मां-बाप ने हमें पाला-पोसा है, वे हमारे लिए आखिर बोझ कैसे हो सकते हैं ? हमें यह चाहिए कि हम बुजुर्गों को वृद्धाश्रमों में अलग-थलग करने की बजाय उन्हें समाज की मुख्यधारा में आत्मसात करें, उन्हें पूरा मान-सम्मान और आदर-सत्कार दें। आज बुजुर्गों को भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक संबल देने के साथ ही उनका साथ दिए जाने की आवश्यकता बहुत ही महत्ती है। युवा पीढ़ी को यह अपने जेहन में रखना चाहिए कि उनकी उपस्थिति मात्र से परिवार को एक सशक्त और स्थिर आधार मिलता है, संबल और प्रोत्साहन मिलता है। युवा पीढ़ी को यह याद रखना चाहिए कि बुजुर्गों के योगदान से ही परिवार का सामाजिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक ढांचा हमेशा मजबूत बना रहता है और परिवार हमेशा उन्नयन और प्रगति की ओर अग्रसर होता रहता है।

    #CulturalChange #ElderlyCare #FamilyStructure #IndianCulture #JointFamily #Modernity #NuclearFamily #RespectForElders #SocialIssues #WesternInfluence
    Share. Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Md Asif Raza
    • Website

    I am working as a Creative Designer and also manage social media platform.

    Related Posts

    देश में ऑनलाइन लूडो के बढ़ते खतरे पर कैसे लगेगी लगाम

    May 7, 2025

    इन्हें अपराध से नहीं बल्कि अपराधी के धर्म से नफ़रत है

    May 7, 2025

    भारत के लिये स्थाई सिरदर्द बन चुका आतंक पोषक पाकिस्तान

    April 28, 2025

    Comments are closed.

    Don't Miss
    कॉर्पोरेट

    REC को वित्त वर्ष 2025 में ₹15,713 करोड़ का रिकॉर्ड शुद्ध लाभ

    By Uday SarvodayaMay 8, 20250

    नई दिल्ली, 8 मई 2025: सरकारी स्वामित्व वाली आरईसी लिमिटेड ने वित्त वर्ष 2024-25 के…

    देश में ऑनलाइन लूडो के बढ़ते खतरे पर कैसे लगेगी लगाम

    May 7, 2025

    इन्हें अपराध से नहीं बल्कि अपराधी के धर्म से नफ़रत है

    May 7, 2025

    मीट इन इंडिया कॉन्क्लेव रहेगी खास, 55 देशों के टूअर ऑपरेटर्स करेंगे शिरकत

    April 29, 2025
    Popular News

    2000 रुपये के नोट एक्सचेंज नियमों में बदलाव: अब तक बचे हुए नोट बदलने का समय बढ़ा, जानिए नए निर्देश

    January 8, 2024

    समय तय करेगा अयोध्या धाम किसको देगा फायदा कौन उठायेगा नुकसान

    January 1, 2024

    अति की हार

    June 6, 2024
    Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
    • Home
    • About Us
    • Privacy Policy
    • Terms & Conditions
    • Contact Us
    © 2025 Powered by NM Media Solutions

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.