विवेक शुक्ला
मदर डेयरी को किसी के परिचय की जरूरत नहीं है। दूध के मतलब दिल्ली में मदर डेयरी ही माना जाता है। दिल्ली में मदर डेयरी बूथ की शुरूआत 4 नवंबर 1974 को हुई थी, आज यह अपनी 50वीं वर्षगांठ मन रहा है सबसे पहले दो बूथ आर।के। पुरम सेक्टर 4 और डिफेंस कॉलोनी में खोले गए थे। आधे दशक में, मदर डेयरी राष्ट्रीय राजधानी की प्रमुख दूध आपूर्तिकर्ता बन गई और पूरे देश में एक विश्वसनीय ब्रांड बन चूका है।
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इंद्रप्रस्थ एक्सटेंशन में मदर डेयरी प्लांट के निर्माण 1972 में शुरू हुआ था, निर्माण के बाद से यह प्लांट सफलतापूर्वक दूध उत्पादन का कार्य कर रहा है।मदर डेयरी से पहले 1950 के दशक में दिल्ली के राजेंद्र नगर में एक डिपो से दिल्ली दूध आपूर्ति योजना के तहत दूध का वितरण होता था। डीएमएस और मदर डेयरी से पहले, दिल्ली का दूध केवेंटर्स से आता था, जिसे 1924 में स्वीडन के डेयरी टेक्नोलॉजिस्ट एडवर्ड केवेंटर्स ने स्थापित किया था।
जब से मदर डेयरी की शुरआत दिल्ली के हुई तब से इसने पीछे मुड़कर नहीं देखा बल्कि धीरे-धीरे सफलता के ओर अग्रसर है। उस समय वेंडिंग मशीन से दूध खरीदने की बात लोगों के लिए बिलकुल नई थी, और इससे लोगों में काफी उत्सुकता पैदा हुई। लोगों के लिए उस समय, सिर्फ़ एक सिक्का डालकर दूध मिलने की बात सोचना भी मुश्किल था। आज, पचास साल बाद, पूरे शहर में मदर डेयरी के बूथ हर कोने पर नजर आ जायेंगे और यह ब्रांड लोगों की रोजमर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुका हैं।
श्वेत क्रांति (वाइट रेवॉल्शन)
1960 और 1970 के दशक में अमूल ब्रांड देश में पहले से ही एक भरोसेमंद ब्रांड था, उस समय भारत सरकार ने देश में दूध की कमी को दूर करने की कोशिश की। तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने डॉ। कुरियन से पूरे देश में आनंद मॉडल को लागू करने को कहा। डॉ। कुरियन ने ‘ऑपरेशन फ्लड प्रोग्राम’ शुरू किया, जिसने भारत में ‘श्वेत क्रांति’ की शुरूआत की। 1964 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड का गठन किया गया। दिल्ली में जगह-जगह मदर डेयरी के बूथ खुलने से दूध की कमी खत्म हो गई। एंग्लो अरेबिक स्कूल के पूर्व शिक्षक मकसूद अहमद कहते हैं, ‘मदर डेयरी की वजह से दिल्ली को दूध की कमी का सामना कभी नहीं करना पड़ा।’
बचपन की यादें
वरिष्ठ फोटो जर्नलिस्ट कमलजीत सिंह कहते हैं, ‘मुझे याद है जब मदर डेयरी की जगह पर पहले किसान सब्जियाँ उगाते थे।’ बचपन से पांडव नगर में रहने वाले सिंह ने मदर डेयरी के बदलते रूप को देखा है। इंद्रप्रस्थ एक्सटेंशन में हाउसिंग सोसाइटी बनने से पहले, 1972 में मदर डेयरी प्लांट का निर्माण शुरू हुआ। तब से ब्रांड ने दूध के अलावा मक्खन, दही और आइसक्रीम जैसे कई अन्य उत्पाद भी लॉन्च किए हैं। आज मदर डेयरी प्रतिदिन 3।2 मिलियन लीटर से अधिक दूध की आपूर्ति करता है
हर मोहल्ले में एक पहचान
आज मदर डेयरी दिल्ली में एक पहचान बन गया है। प्रभातम विज्ञापन एजेंसी के मुख्य प्रबंध निदेशक दिनेश गुप्ता कहते हैं, ह्लमदर डेयरी सिर्फ़ दूध खरीदने की जगह नहीं है, यह लोगों के दिलों में एक खास जगह बना चुकी है।ह्व गुप्ता बताते हैं कि ह्लमदरह्व शब्द जानबूझकर चुना गया था, क्योंकि यह शुद्धता और देखभाल का प्रतीक है। यह भावनात्मक जुड़ाव उपभोक्ताओं के साथ मदर डेयरी के रिश्ते को मजबूत करता है।
डीएमएस
मदर डेयरी से पहले, डीएमएस शहर में दूध की आपूर्ति करता थी। डीएमएस की शुरूआत 1 नवंबर 1959 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ। राजेंद्र प्रसाद ने की थी। डीएमएस के कर्मचारी शादीपुर गाँव में रहते थे और शहर भर में बूथों के माध्यम से बोतलों में दूध बेचते थे। आर।के। पुरम में रहने वाले संपादक एजे फिलिप याद करते हैं कि 1970 के दशक की शुरूआत में डीएमएस का दूध सरकारी फ्लैटों में राशन की तरह बाँटा जाता था।
उन्होंने आगे कहा, ‘कुछ लोग अपनी जावा मोटरसाइकिलों के दोनों तरफ दूध के बड़े एल्यूमीनियम जार ले जाते थे।’ जनपथ मार्केट में बैंक ऑफ़ बड़ौदा बिल्डिंग के पीछे आपको अभी भी एक डीएमएस बूथ नजर आ जाएगा। एक राजेंद्र प्रसाद रोड पर भी है।
केवेंटर्स: भूली हुई विरासत
दिल्ली में अबसे पहले दूध के वितरण की शुरूआत स्वीडिश डेयरी टेक्नोलॉजिस्ट एडवर्ड केवेंटर्स द्वारा 1924 में किया गया था। चाणक्यपुरी में केवेंटर्स का मुख्य प्लांट था, जिसे 70 के दशक में बंद कर दिया गया। आज भी, केवेंटर्स लेन नाम की एक सड़क दिल्ली में मौजूद है, लेकिन वर्तमान केवेंटर्स ब्रांड का पुराने डेयरी से कोई संबंध नहीं है।
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मदर डेयरी अपनी 50वीं वर्षगांठ मना रही है, जो दिल्ली के निवासियों के इस ब्रांड पर भरोसे का प्रतीक है। एक समय सिक्के से चलने वाली वेंडिंग मशीन से शुरू होकर, यह अब एक घरेलू नाम बन चुका है।