सत्येन्द्र प्रकाश
आंधी से होड़ ले, गांधी के साथ चल,
जाति-दिल जोड़ ले, हाथ ले हाथ चल.
गांधी कहते सदा/ न कोई ऐसी अदा
हो उनके देश में/ कि साधू वेश में,
छिपा शैतान हो/ या कि ‘भगवान’ हो!
सबको गरिमा मिले, सबका सम्मान हो,
आधी दुनिया उठा, कदम-दर साथ चल. आंधी से …
गांधी का सपना था/ सोच ये अपना था—
आदमी-औरत में/ अमीरी-गुरबत में
न कोई भेद हो/ सबको ‘अधिकार’ हो
कि, सम-व्यवहार हो/ कर्म का ध्यान हो
शिक्षा अभिमान हो, बेटी उत्थान हो
दोनों पहिए सही (रख) उठाकर माथ चल. आंधी से …
कान बहरे ‘बड़े’, यही अफसोस है
अक्सर पिटता वही, जो कि निर्दोष है
अंधा -कानून है, झुंड का न्याय है
उसका साधन बनी, ‘दूजी-मां’ गाय है
बापू को याद कर, सबको दे मात चल. आंधी से …
ये गांधी का नहीं! ये किसका देश है?
भगत-अश्फाक का, कहां संदेश है?
वो भारत है कहां/ उसी की चाह है’
नजर गांधी की हो, सिर्फ चश्मा नहीं
डूब कर देखो तो, उसी में राह है’
‘सत्य का संग ले, ईमां के साथ चल. आंधी से…