तबरेज खान
आज बंगाल जल रहा है, इससे पहले जम्मू में कठुआ रेप-हत्याकांड, यूपी में उन्नाव बलात्कार-हत्याकांड, बिहार के मुजफ्फरपुर का बलात्कार कांड, मणिपुर की हृदयविदारक महिला उत्पीड़न जैसे अनेक घटनाएं आपको विचलित तो जरुर करती हैं लेकिन उसकी पुनर्वृति जारी है जो बेहद अफसोसनाक और दुखद है. आरजी कर अस्पताल में रेप और हत्या की शिकार हुई 31 वर्षीय ट्रेनी डॉक्टर भी किसी की बेटी थी, किसी की दुलारी थी, उसके भी सपने थे. वह सेवाभाव से अपना कर्तव्य निभा रही थी, वह बहुत सुन्दर थी, बहुत तेज थी. क्या यही वह कारण रहे होंगे जिससे उसके साथ बालात्कार हुआ और उसके बाद उसकी निर्मम हत्या कर दी गई? शायद नहीं, बल्कि वह एक वहशीपन की शिकार हुई, उस मानसिकता की बलि चढ़ी जिसे हमारे समाज ने पैदा किया है!
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भारत एक धर्म प्रधान सांस्कृतिक देश है, इसकी विरासत की विशालता अतुलनीय है. आदि-अनादि काल से ही यहाँ महिलाओं को बराबर का भागीदार माना गया है और समाज की नजर में महिलाएं सदा ही आदर और सम्मान की हकदार भी रही हैं. वहीं, महिलाएं प्राचीन काल से ही भारत की संस्कृति और समाज का अभिन्न अंग भी रही हैं. हालांकि, भारत में महिलाओं की स्थिति हमेशा से बहस और चिंता का विषय रही है. हाल के वर्षों में हुई प्रगति के बावजूद, भारत में महिलाओं को आज भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. हाल के वर्षों में, महिलाओं को सशक्त बनाने के भारत के प्रयासों में कई सकारात्मक विकास हुए हैं. सरकार ने महिलाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक अवसरों में सुधार लाने के उद्देश्य से कई कार्यक्रम और नीतियां लागू की हैं. कार्य बल में भाग लेने वाली महिलाओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और महिलाओं ने राजनीति, व्यवसाय और मनोरंजन सहित विभिन्न क्षेत्रों में उच्च स्थान हासिल किए हैं. इन उपलब्धियों के बावजूद, भारत में महिलाओं को अभी भी महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. लैंगिक भेदभाव, महिलाओं के खिलाफ हिंसा और असमान वेतन प्रमुख मुद्दे बने हुए हैं. कन्या भ्रूण हत्या और शिशु हत्या, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बनी हुई है. जबकि वर्तमान में महिलाओं की सुरक्षा एक सबसे संजीदा एवं महत्वपूर्ण प्रश्न बनकर सामने खड़ा है. इसकी बानगी के तौर पर यहां हर साल यौन उत्पीड़न, बलात्कार और बर्बरता की सारी सीमाएं लांघते कई उदाहरण मिल जाते हैं.
आप सभी जानते हैं कि 2012 में दिल्ली की 23 वर्षीय छात्रा ज्योति सिंह के साथ हुए घातक सामूहिक बलात्कार और हत्या ने देश भर में विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया और भारत में महिला सुरक्षा पर सवाल खड़ा कर दिया. उसके बाद देश भर से महिलाओं की सुरक्षा के लिए कठोर और कारगर कदम उठाने की मांग उठी थी. लेकिन जब तक इस आसुरी मनोवृत्ति-विकृति को पूरी तरह नष्ट नहीं किया जाता तब तक स्त्री एक इस्तेमाल की वस्तु बनी रहेगी. यही कारण है कि आज बंगाल जल रहा है, इससे पहले जम्मू में कठुआ रेप-हत्याकांड, यूपी में उन्नाव बलात्कार-हत्याकांड, बिहार के मुजफ्फरपुर का बलात्कार कांड, मणिपुर की हृदयविदारक महिला उत्पीड़न जैसे अनेक घटनाएं आपको विचलित तो जरुर करती हैं लेकिन उसकी पुनर्वृति जारी है जो बेहद अफसोसनाक और दुखद है. आरजी कर अस्पताल में रेप और हत्या की शिकार हुई 31 वर्षीय ट्रेनी डॉक्टर भी किसी की बेटी थी, किसी की दुलारी थी, उसके भी सपने थे. वह सेवाभाव से अपना कर्तव्य निभा रही थी, वह बहुत सुन्दर थी, बहुत तेज थी. क्या यही वह कारण रहे होंगे जिससे उसके साथ बालात्कार हुआ और उसके बाद उसकी निर्मम हत्या कर दी गई? शायद नहीं, बल्कि वह एक वहशीपन की शिकार हुई, उस मानसिकता की बलि चढ़ी जिसे हमारे समाज ने पैदा किया है!
जांच की चुनौतियां
आज देश के हर कोने में इस तरह की निर्मम और जघन्य घटना देखने-सुनने को मिल रही है. अभी कुछ महीने पहले मणिपुर जल रहा था, बिहार के मुजफ्फरपुर में महिला छात्रावास की निर्मम घटना भला कोई कैसे भूल सकता है? तात्पर्य यह कि ऐसी घटनाएं हो ही क्यों रही है? इसे कैसे रोका जा सकता है- एक गंभीर विचार का विषय है? दिल्ली में निर्भया बलात्कार और हत्या के बाद सरकारी कदमों से देश के लोगों में एक भरोसा जगा था कि आने वाले दिनों में ऐसी घटनाएं शायद न हो लेकिन हो रहा है इसके उलट! यही कारण है कि कोलकाता में होनहार महिला डॉक्टर से रेप के बाद हत्या मामले को लेकर पूरा देश गुस्से हैं. हर कोई आरोपियों के लिए सख्त से सख्त सजा की मांग कर रहा है. लेकिन अक्सर देखा गया है कि रेप के मामले में आरोपियों को सजा मिलते-मिलते काफी लंबा अरसा बीत जाता है. जांच में देरी के चलते सालों तक मुकदमा चलता है. लंबी कानूनी प्रक्रिया का फायदा आरोपियों को मिलता है. कई बार देखा गया है कि मुकदमा पूरा होने के बावजूद आरोपियों को सजा नहीं मिलती और वह आसानी से बरी हो जाते हैं. 2023 में लगभग 49,000 रेप के मामलों की जांच पुलिस को सौंपी गई थी, लेकिन केवल 26,000 मामलों में ही चार्जशीट दायर की गई. यह संख्या 2022 में दर्ज घटनाओं की संख्या से भी कम थी. रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में रेप के लगभग 32,000 मामले पुलिस में दर्ज किए गए थे. हालांकि, पिछले वर्षों से लंबित 13,000 से अधिक मामले पहले से ही विचाराधीन थे, जिससे पुलिस पर लगभग 45,000 मामलों की जांच का बोझ था. लेकिन दोषियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के मामले में, 2023 में केवल लगभग 26,000 मामलों में ही चार्जशीट दायर की गई. यह उन मामलों का 60% से भी कम था जिनकी उन्हें जांच करनी थी और 2022 में दर्ज घटनाओं की संख्या से भी कम थी. यह समस्या केवल रेप केस तक ही सीमित नहीं है, बल्कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों की सभी 11 श्रेणियों में देखी गई है जिसका विश्लेषण किया गया है. यह दशार्ता है कि भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए प्रभावी कानून और न्यायिक प्रक्रियाओं की सख्त आवश्यकता है.
पुरुषवादी मानसिकता
हमारे समाज की संरचना ही कुछ ऐसी है या समय के बदलाव ने इसे इतना संकुचित कर दिया है कि यह दिनों दिन अधोगामी प्रवृति की ओर प्रयाण कर रहा है. इसके दो स्तम्भ है लिंग और जाति. लिंग और जाति भेदभाव भुलाकर समाज के हाशिए पर रहने वाली महिलाओं को यौन हिंसा से सबसे अधिक प्रभावित और छिन्न भिन्न करते हैं. आपराधिक न्याय प्रणाली अपराधियों पर मुकदमा चलाने और उन्हें दोषी ठहराने दोनों के लिए संघर्ष करती है. ऐसी प्रथाएं जो लिंग मानदंडों के प्रति दृष्टिकोण बदलने में सबसे प्रभावी हैं, पुरुषों पर विशेष ध्यान देने के साथ दोनों लिंगों को लक्षित करती हैं. ऐसा प्रमुखत: देखा जाता है कि प्रमुख जातियों के पुरुष अक्सर दमनकारी लिंग और जाति पदानुक्रम को मजबूत करने के लिए यौन हिंसा को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं. भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की निरंतरता भारतीय संस्कृति में व्याप्त लैंगिक भेदभाव और पितृसत्ता की गहरी जड़ों में निहित है. यह चक्र बचपन से शुरू होता है, जहां युवा लड़कियों को अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में शिक्षा तक असमान पहुंच का सामना करना पड़ता है. यही आगे चलकर एक दोहरे चरित्र और अलगाव की वजह बनता है जो दोनों लिंगों के प्रति एक नफरती अवगुण को जन्म देता है, जो मूलत: एक विकृति या यों कहे मनोविकार को गंभीर और खतरनाक बना देता है.
राजनीतिक रस्साकशी
हमारे देश के दुर्भाग्य है कि जब कोई ऐसी शर्मनाक और वीभत्स घटना घटती है तो जिसे धर्म, क्षेत्र, जाति या समुदाय विशेष से जोड़कर उसकी दुरुहता को और अधिक जटिल और असाध्य बना दिया जाता है. इसमें तमाम राजनीतिक दलों की भूमिका अहम हो जाती है. इन घटनाओं को कुछ ऐसे प्रस्तुत किय जाता है मानो यह कुछ वगीर्कृत किस्म या यों कहें किसी खास प्रकार के प्रयोजन के तहत किया या कराया गया लगता है. जबकि सच्चाई बिल्कुल ही भिन्न होती है. देश की तमाम राजनीतिक पार्टियों को ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर पूरी गंभीरता से काम करना चाहिए जिससे देश का माहौल खराब न हो. इसे किसी भी स्तर पर राजनीतिक मसला नहीं बनने देना चाहिए. मिसाल के तौर पर कठुआ जिले में आठ साल की मुस्लिम लड़की के साथ वीभत्स बलात्कार और हत्या को भारत में अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों के बीच डर पैदा करने के लिए यौन उत्पीड़न को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने का मुद्दा बना दिया गया. वहीं यूपी के उन्नाव में दलित बच्ची की बलात्कार और हत्या की घटना को सवर्णों और भाजपा सरकार की साजिश बताया जाने लगा, जबकि मणिपुर की हृदय विदारक घटना को कूकी और मैतियों के बीच वैमनस्य का आधार बना दिया गया. आज जब पश्चिम बंगाल में कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में स्नातकोत्तर चिकित्सक के साथ जघन्य बलात्कार और हत्या के मामले को भी राजनीति का अखाड़ा बना दिया गया है.
निष्कर्ष
आप सोचिये जो दुखद घटना घटी उसके विरोध स्वरूप 9 अगस्त को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ बलात्कार-हत्या के बाद व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ. शुरू में स्वाभाविक विरोध प्रदर्शन ने अब राजनीतिक मोड़ ले लिया है और विपक्षी दल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. किसी भी स्तर पर यह स्वस्थ राजनीतिक परंपरा का सूचक नहीं है बल्कि ऐसी घटनाओं को लेकर सभी राजनीतिक दलों को दलगत भावना से ऊपर उठकर काम करना चाहिए ताकि समाज के सभी वर्गों में आत्मविश्वास पैदा हो सके और वे इन घटनाओं को लेकर आगे आये और पूरा समाज जागरूक हो सके. सरकार को भी कुछ ऐसा करना चाहिए ताकि सभी को विश्वास हो सके कि दोषियों को सख्त सजा जरूर मिलेगी. ताकि विरोध प्रदर्शनों से बहका जा सके और सरकारी संपत्तियों और समय का दुरुपयोग न हो सके और आप जनता को कोई असुविधा भी न होने पाए. जबकि इस विरोध के दौरान अस्पताल में डॉक्टरों के हड़ताल पर जाने के बाद से 23 लोगों की मौत हो गई है. हाल के वर्षों में भारत में महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है. अब तक हासिल की गई उपलब्धियों को पहचानना और महिलाओं के लिए अधिक न्यायसंगत और निष्पक्ष समाज की दिशा में काम करना जारी रखना आवश्यक है. भारत में महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करके और लैंगिक समानता को बढ़ावा देकर, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि महिलाएं जीवन के सभी पहलुओं में पूरी तरह से भाग ले सकें और देश के विकास में योगदान दे सकें.