अजय कुमार
लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जोड़ी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई दिशा दी है. इस सियासी गठबंधन ने बीजेपी को बहुमत का आंकड़ा प्राप्त करने से रोका, और मोदी सरकार को सहयोगी दलों के समर्थन पर निर्भर रहने पर मजबूर कर दिया. चुनाव परिणामों के बाद से, बीजेपी के बड़े नेता लगातार कांग्रेस और सपा गठबंधन के विघटन की भविष्यवाणी कर रहे हैं. हालांकि, यह जोड़ी न केवल चुनाव के दौरान बल्कि अब संसद में भी एक साथ नजर आ रही है. लोकसभा में राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच की केमिस्ट्री यह दशार्ती है कि यह साझेदारी लंबी चलने वाली है और बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है.
लोकसभा में बजट पर चर्चा के दौरान, राहुल गांधी ने बजट बनाने वाले 20 अधिकारियों में केवल एक अल्पसंख्यक और एक ओबीसी अधिकारी की उपस्थिति की ओर इशारा किया. इसके साथ ही, उन्होंने जातिगत जनगणना की मांग उठाई. राहुल गांधी के सवाल उठाने के अगले दिन, संसद में जाति के मुद्दे पर बीजेपी और विपक्ष के बीच तीखी बहस हुई. बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर ने कहा कि जातिगत जनगणना की बात वे कर रहे हैं जिनकी अपनी जाति का पता नहीं है. यह टिप्पणियां राहुल गांधी की तरफ इशारा करती थीं. राहुल गांधी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जो भी दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों की बात करता है, उसे गालियां ही मिलती हैं. उन्होंने महाभारत के अर्जुन की उपमा देते हुए कहा कि उन्हें जातिगत जनगणना का लक्ष्य स्पष्ट है और वे इसके लिए आलोचनाएं खुशी से स्वीकार करेंगे.
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अखिलेश यादव ने इस बहस में आक्रमक तरीके से दखल दिया. उन्होंने अनुराग ठाकुर पर चिल्लाते हुए पूछा कि आप किसी की जाति कैसे पूछ सकते हैं. अखिलेश ने कहा कि जब आप बड़े नेता और मंत्री हैं, तो जाति पूछने का अधिकार किसने दिया? उनकी यह आक्रमक प्रतिक्रिया और राहुल गांधी के समर्थन ने सियासी परिदृश्य को गरमा दिया. दोनों नेताओं की यह सियासी केमिस्ट्री चुनाव के दौरान और संसद में भी साफ नजर आ रही है. वे एक साथ बैठते हैं और हर मुद्दे पर सरकार को घेरते हैं, जिससे उनकी साझेदारी की मजबूती स्पष्ट होती है. अखिलेश यादव ने 18वीं लोकसभा सत्र के पहले दिन अपने अयोध्या से सांसद अवधेश प्रसाद को महत्व दिया, जबकि राहुल गांधी ने भी पूरे सत्र के दौरान अवधेश प्रसाद को मान्यता दी. राहुल गांधी के जन्मदिन पर अखिलेश यादव ने उन्हें बधाई दी, जिसे राहुल ने धन्यवाद के साथ स्वीकार किया. यह सियासी दोस्ती की गहराई को दशार्ता है और संकेत करता है कि यूपी के दो नेताओं की यह जोड़ी हिंदुस्तान की राजनीति में नई दिशा देने के लिए तैयार है. 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन ने केवल चुनावी सहयोग ही नहीं किया, बल्कि दोनों दलों के नेताओं और कार्यकतार्ओं के बीच एक बेहतर तालमेल भी स्थापित किया. अखिलेश यादव ने राहुल गांधी के समर्थन में कन्नौज में वोट मांगे, और राहुल गांधी ने रायबरेली में अखिलेश के लिए जनसभा की. 2017 में भले ही सपा-कांग्रेस का गठबंधन सफल नहीं रहा था, लेकिन 2024 में यह जोड़ी बीजेपी को कड़ी टक्कर देने में सफल रही.
उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से बीजेपी केवल 33 सीटें ही जीत सकी, जबकि सपा ने 37 और कांग्रेस ने 6 सीटें जीतीं. यह 2019 के लोकसभा चुनावों के विपरीत है, जहां बीजेपी 62 सीटों पर विजयी हुई थी. राहुल गांधी का संविधान और आरक्षण पर आधारित नैरेटिव और अखिलेश यादव का पीडीए फॉमूर्ला बीजेपी के सारे मंसूबों पर पानी फेरने में सफल रहा. राहुल और अखिलेश की केमिस्ट्री केवल चुनाव तक सीमित नहीं रही, बल्कि अब संसद में भी दिखाई दे रही है. वे एकजुट होकर मोदी सरकार को घेरने के साथ-साथ एक-दूसरे के लिए सियासी ढाल भी बन गए हैं. राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच तालमेल को पीएम मोदी और बीजेपी के कई बड़े नेता महसूस कर रहे हैं. पीएम मोदी ने पिछले संसद सत्र के दौरान कांग्रेस को निशाने पर रखा था, जिससे यह अंदाजा लगाया गया कि इंडिया गठबंधन के घटक दलों के बीच दरार डालने की रणनीति के तहत दांव चल रहे हैं. मोदी ने कहा था कि कांग्रेस जिस पार्टी के साथ गठबंधन करती है, उसी के वोट खा जाती है. उन्होंने राम गोपाल यादव से कहा था कि वह अपने भतीजे (अखिलेश) को समझाएं और उन्हें याद दिलाएं कि राजनीति में कदम रखते ही भतीजे के पीछे सीबीआई का फंदा लगाने वाले कौन थे. बीजेपी की बैठक में भूपेंद्र चौधरी ने भी कहा था कि सपा के वोटबैंक पर कांग्रेस की नजर है. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इंडिया गठबंधन की एकजुटता को तोड़ने की रणनीति के तहत ही पीएम मोदी ने यह टिप्पणियां कीं. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के सियासी आधार पर ही सपा की ताकत बनी है, जो कभी कांग्रेस का हुआ करता था. 90 के दशक के बाद कांग्रेस के कमजोर होने के कारण सपा मजबूत हुई. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश में लगा है. यूपी में कांग्रेस को सियासी संजीवनी मिली है और सपा को ताकत. अगर सपा और कांग्रेस इसी तरह 2027 के विधानसभा चुनाव में उतरती हैं, तो बीजेपी के लिए सियासी टेंशन बढ़ना लाजमी है. अखिलेश यादव ने कई सियासी प्रयोग किए हैं, लेकिन 2024 के चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन से उन्हें सफलता मिली है. राहुल गांधी ने संविधान और आरक्षण बचाने वाले नैरेटिव के साथ-साथ जातिगत जनगणना को मुद्दा बनाकर दलित, मुस्लिम और ओबीसी समाज के लोगों पर अपनी पकड़ मजबूत की है. इस प्रकार, गठबंधन कर चुनाव लड़ने का लाभ सपा और कांग्रेस दोनों को मिला है. अखिलेश यादव की रणनीति और कांग्रेस की मंशा अभी भी एक साथ चल रही हैं.
कांग्रेस का समर्थन लेकर, अखिलेश यादव 2027 में यूपी की सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं. इसके साथ ही, अखिलेश का लक्ष्य अपनी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार देना है. यूपी में सपा सबसे बड़ी पार्टी है और मुस्लिम वोट उनके पक्ष में लामबंद हैं, लेकिन महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में मुसलमानों का झुकाव कांग्रेस की तरफ है. यूपी में भी मुस्लिम वोट कांग्रेस की तरफ लौट रहा है. इस स्थिति में, कांग्रेस के साथ मिलकर अखिलेश यादव यूपी में बीजेपी से मुकाबला कर सकते हैं और अपनी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर ले जा सकते हैं. यदि सपा और कांग्रेस इसी तरह 2027 के विधानसभा चुनाव में साथ आती हैं, तो बीजेपी के लिए सियासी टेंशन बढ़ना निश्चित है.