ललित गर्ग
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में पाकिस्तान सरकार की तानाशाही, उदासीनता, उपेक्षा एवं दोगली नीतियों के कारण हालात बेकाबू, अराजक एवं हिंसक हो गये हैं। जीवन निर्वाह की जरूरतों को पूरा न कर पाने से जनता में भारी आक्रोश एवं सरकार के खिलाफ नाराजगी चरम सीमा पर पहुंच गयी है। गेहूं के आटे और बिजली की ऊंची कीमतों के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन चल रहा है। प्रदर्शनकारियों एवं सुरक्षा बलों के बीच हिंसक झड़पों में एक पुलिस अधिकारी की मौत हो गयी जबकि 100 से अधिक लोग घायल हो गए। घायलों में अधिकतर पुलिसकर्मी हैं। पीओके के लोग पाकिस्तान सरकार की नाकामी के खिलाफ सड़कों पर हैं। पाकिस्तान को पीओके के हाथ से निकल जाने का डर सताने लगा था। पीओके की आवाज दबाने के लिए पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार ने चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल को तैनात किया है एवं आन्दोलनकारियों को दबाने की दमनकारी कोशिशें की जा रही है। पीओके के बगावती तेवर देख पाकिस्तान के हाथ-पांव फूल गये हैं।
दरअसल, अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान के कब्जे के बाद से ही पीओके लगातार सरकार की उपेक्षा, उत्पीडन एवं उदासीनता झेल रहा है। पाकिस्तान की सरकार ने पीओके का इस्तेमाल भारत में अशांति, आतंक एवं हिंसा फैलाने के लिये किया है, वह पीओके के माध्यम से कश्मीर को हडपने की हर संभव कोशिश करता रहा है, लेकिन वहां के निवासियों की जरूरतों पर कभी ध्यान नहीं किया। यूं तो अभी समूचे पाकिस्तान के हालात बद से बदतर हैं, गरीबी, महंगाई एवं आर्थिक दिवालियापन से घिरा है, दुनियाभर से आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिये झोली लिये घूम रहा पाकिस्तान भारत में अशांति एवं आतंक फैलाने से बाज नहीं आ रहा है। दरअसल, पाकिस्तानी कमरतोड़ महंगाई एवं जनसुविधाओं से जूझ रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 3 अरब डॉलर के कर्ज की मंजूरी देते समय कड़ी शर्तों लगाई थीं, जिसके कारण स्थिति और खराब हो गई है। बिजली दरों में बढ़ोतरी से दिक्कतें बढ़ गई हैं और पाकिस्तान में लोग सड़कों पर उतरने को मजबूर हो गए हैं। इन्हीं जर्जर एवं जटिल हालातों के बीच पीओके के हालात पाकिस्तान के लिये नया सिर दर्द बन गया है। पाकिस्तान के सुरक्षा बल प्रदर्शनकारियों के मुजफराबाद मार्च को दबाने की जितनी कोशिश कर रहे हैं, विरोध प्रदर्शन उतना ही उग्र हो रहा है।
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पीओके की अवामी एक्शन कमेटी के मार्च और धरने के आह्वान के बाद बेकाबू होते हालात 1955 के अवज्ञा आंदोलन की यादें ताजा कर रहे हैं, जब पीओके के लोगों और पाकिस्तानी फौज में सीधा टकराव हुआ था। अब फिर पीओके के लोगों के उबलते गुस्से ने पाकिस्तानी हुकूमत के माथे पर बल बढ़ा दिए हैं, समस्या को अनियंत्रित एवं अनिश्चित हालात में पहुंचा दिया है। पीओके के सबसे उत्तरी इलाके गिलगित बाल्टिस्तान के लोग पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तान के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।
प्रदर्शनकारी भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के साथ मिलाए जाने की मांग कर रहे हैं। पीओके में आजादी के नारे लगने एवं उसे लद्दाख के साथ मिलाए जाने की मांग के बाद शहबाज शरीफ सरकार और पाकिस्तानी सेना दोनों सकते में है। पाकिस्तान के अत्याचार के खिलाफ पीओकी की जनता जिस तरह खड़ी हो गई, उसने पाकिस्तानी नीति निमार्ताओं को तनाव में ला दिया है। हजारों की संख्या में कश्मीरी लोग पीओके में जगह-जगह सड़कों पर उतर आए तो पाकिस्तान को पीओके के हाथ से निकल जाने का डर सताने लगा है। पीओके में विरोध को दबाने के लिए पाकिस्तानी दमन चक्र शुरू हो गया है। इसमें पाकिस्तान रेंजर्स और फ्रंटियर कोर को भी लगाया गया है। पीओके के सभी 10 जिलों में इंटरनेट और मोबाइल सेवाएं बंद कर दी गई हैं। भाजपा की मोदी सरकार के मुख्य एजेंडे में पीओके को पाकिस्तान से मुक्त कराकर भारत में शामिल करना पहले से निश्चित है। पीओके का ताजा संघर्ष एवं आन्दोलन भाजपा की राह को निश्चित ही आसान करेंगी।
दोगली नीतियों के चलते पीओके के प्राकृतिक संसाधनों का पाकिस्तान खुलकर दोहन करता रहा, जबकि वहां के लोग ईंधन, बिजली, शिक्षा, चिकित्सा और जरूरी बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझते रहे। पीओके के लोगों ने मई 2023 में बिजली की ऊंची दरों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था, जो एक साल बाद अब उग्र रूप ले चुका है। आंदोलन से काफी पहले पीओके के लोगों का भारत के प्रति झुकाव समय-समय पर मुखर होता रहा है। पाकिस्तान की राजनीति की दूषित हवाओं ने पीओके की चेतना एवं सोच को आन्दोलनकारी बना दिया है। सत्ता के गलियारों में स्वार्थों की धमाचौकड़ी देखकर वहां के लोग समझ गये कि उनका शोषण एवं उत्पीडन ही हो रहा है।
यही कारण है कि पिछले साल पीओके और गिलगित के लोगों ने पाकिस्तान की भेदभाव वाली नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान अपने इलाकों को भारत के साथ मिलाने को ही अपने हित एवं शांतिपूर्ण जीवन के अनुरूप मानने लगे हैं। इसके लिये किये गये तब के प्रदर्शन के सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में वहां के लोग ह्यआर-पार जोड़ दो, करगिल को खोल दोह्ण जैसे नारे लगाते नजर आए थे। वहीं, देश भर में गेहूं के आटे की कमी, बलूचिस्तान में उग्रवाद, अफगानिस्तान के साथ सीमा संघर्ष, पाकिस्तानी तालिबान द्वारा हमलों और एक गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के साथ, पीओके में लोगों ने काफी कड़वे अनुभव किये हैं। निर्वासित पीओके नेता, शौकत अली कश्मीरी भी पीओके में लोगों के सामने आने वाली कठिनाइयों को उजागर करने के लिए दिसंबर से विभिन्न देशों में बैठकें कर रहे हैं।उन्होंने हाल ही में जिनेवा में समाचार एजेंसी एएनआई से कहा कि पाकिस्तान ने 1948 से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया है लेकिन बदले में पीओके में लोगों को बेरोजगारी और निर्वासन मिला। अधिकांश लोगों को चिकित्सा सुविधा नहीं होने के कारण बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है।
पीओके के लोग चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) का भी विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि गलियारे की आड़ में उनकी जमीन का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए किया जाएगा और भारत के जवाबी हमले उन्हें झेलने पड़ेंगे। चूकि भारत अब पहले वाला भारत नहीं रहा, उसकी सैन्य ताकत का मुकाबला करना पाकिस्तान के लिये संभव नहीं रहा है, इसलिये बिना मतलब भारत के आक्रमण को झेलने से स्वयं को बचाने के लिये पीओके के लोग भारत में विलय को ही उचित मानते हैं। पीओके में विरोध प्रदर्शन के दौरान जिस तरह भारतीय तिरंगा लहराया जा रहा है और भारत में विलय के स्वर उठ रहे हैं, उससे भविष्य में इस विवादित क्षेत्र पर निर्णायक पटकथा लिखे जाने के आसार नजर आ रहे हैं। भारत को पीओके के घटनाक्रम पर नजर बनाए रखने की जरूरत है, ताकि इससे हमारे सुरक्षा हितों पर प्रतिकूल असर न पड़े एवं भविष्य की नीतियों का निर्धारण करने में सुविधा रहे।