शहाब तनवीर शब्बू
क्या वह ज़माना था जब परदेश में रह रहे पिया के खत का इंतजार उनकी बहुरियों (पत्नी)को बेसब्री से रहती थी.बूढ़े हड्डियों में जान खो चुके पिता को जहां पुत्र के कुशलक्षेम की आस रहती थी,वहीं दिल में ममता का सागर समेटे एक मां जिसका पुत्र जीविका हेतु परदेश चला गया हो उसके कुशल संदेश आने की आस उसे हर पल व्याकुल करती थी.ऐसे में खाकी ड्रेस पहने सिर पर खाकी टोपी, कंधे से लटका झोला व साइकिल पर सवार डाकिया जब गांव की गलियों से गुजरता तो उसकी साइकिल की घंटी की आवाज सुन लोग दौड़ते हुए घर से निकल पड़ते थे कहीं परदेश रह रहे उनके बेटे का संदेश तो नहीं आया .वहीं कई सावन में पिया से दूर रहने का दर्द दिल में लेकर घर में दुबकी बहुरिया भी झट से पर्दे की ओट में खड़ी होकर डाक बाबू को इस आस में निहारती थी कि अब तो दशहरा आ गया है,उसके पिया का संदेश भी आया होगा.
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कितना मोहक होता था वह पल जब महज चिठ्ठी के रूप में कागज के ऊपर लिखी चंद पंक्तियां हृदय को तृप्त कर देती थी.इसी आस में जब डाकिया छोटी सी लकड़ी के सहारे खड़ी कंपकंपाती बूढ़ी हड्डियों में जान खो बैठी मां के हाथ में खत थमाता तो मानों उनकी हड्डियों में जान आ गयी.बड़े प्यार से कह बैठती थी कि बेटा थोड़ा पढ़ के सुनाओ क्या संदेश भेजा है बेटे ने.इस हालत को देख एक मां की मनोदशा सबको द्रवित कर देती थी.शुभ संदेश पाकर सभी खुशी से उछल पड़ते थे.साथ ही समाज में सौहार्द कायम रखने में भी यह श्रेयष्कर था.इतिहास के पन्नों को उकेरा जाय तो बेबिलौन की खंडहर जहां एक प्रेमी अपनी प्रेमिका से मिलने बेबिलौन गया था.काफी इंतजार के बाद जब उसकी प्रेमिका उससे मिलने नहीं आई, तब प्रेमी ने अपनी दिल की भावनाओं को जमीन की फर्श पर ही लिखा.मैं तुमसे मिलने आया था, पर तुम नहीं मिली.इस संदेश को दुनिया का प्रथम प्रेम पत्र माना जाता है.इसके बाद सन 1539 में बक्सर के चौसा युद्ध में हुंमायू को हराने के बाद शेरशाह सूरी जब दिल्ली की गद्दी पर बैठा तो उसने पहली बार अपने शासन काल में डाक सेवा की शुरुआत कराई.1766 में पहली बार डाक सेवा प्रारंभ हुआ .वारेन हेस्टिंग्स ने कोलकाता में प्रथम डाक घर 1774 में स्थापित की थी.भारत में 1852 में पहली बार चिट्ठी पर डाक टिकट लगाने की शुरुआत हुई.
महारानी विक्टोरिया का चित्र वाला डाक टिकट एक अक्टूबर 1854 को जारी किया गया था.आगे चल कर 1969 में टोक्यो जापान में आयोजित सभा में कांग्रेस ने इसे विश्व डाक दिवस के रूप में घोषित किया.उस समय जब क्षेत्र में टेलीफोन सेवा नहीं थी,संचार के साधन सीमित थे तब पुराने शाहाबाद जिला के मुख्यालय आरा में 700 से 1000 चिठ्ठियां प्रतिदिन आती थी.अब बदलते परिवेश में जब हर हाथों ने मोबाइल के रूप में संचार व्यवस्था को धारण कर लिया है तब डाक सेवा महज सरकारी कार्यों तक सिमट कर रह गई है.लोग आधुनिक सुविधा से लैस तो जरूर हुए पर मॉडल जमाने के दौर में उनके रिश्ते सिमट कर रह गए हैं .साथ ही एक प्रेमी के जरिए अपनी प्रेयसी के लिए खत में लिखी जाने वाली नज़्म की चार पंक्तियों को चुरा लिया और इसके साथ ही चिट्ठी आयी है वाली आवाज़ भी कहीं गुम हो गयी।