विवेक शुक्ला
अब प्रकाश पर्व का माहौल बन चुका है। कुछ ही दिन के बाद सर्वत्र प्रकाश होगा। अगर कोई ये सोच रहा है कि दिवाली को सिर्फ हिन्दू ही मना रहे हैं, तो यह कहना सही नहीं होगा। दिवाली पर लाखों मुसलमान, ईसाई और यहूदी भी दीये जलाएंगे। दरगाह हजरत निजामुद्दीन औलिया को गुजरे करीब 25 साल से दिवाली पर रोशन किया जा रहा है। यहां शुरुआती वर्षों में, दिवाली पर फूलों से रंगोली बनाई जाती थी। बाद में, इधर दीये जलाने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। दरगाह को 2022 से धनतेरस पर भी रोशन किया जाने लगा है।
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मुंबई में हाजी अली दरगाह को भी रोशन किया जाता है। बिहार के छपरा में कई मुस्लिम परिवार हैं जो हर साल दिवाली का त्योहार मनाते हैं। दरअसल भारत एक ऐसा देश है जहाँ सभी धर्मों के लोग एक-दूसरे के साथ मिलजुल कर रहते हैं और त्योहारों को साथ मिलकर मनाते हैं। दिवाली, हिंदुओं का प्रमुख त्यौहार, भारत में अन्य धर्मों के लोगों द्वारा भी मनाया जाता है।
राजधानी में प्रोटेस्टेंट ईसाइयों से जुड़ी प्रमुख संस्था दिल्ली ब्रदरहुड हाउस (डीबीएस) दीपावली के अवसर पर 1925 में बने ‘ब्रदर्स हाउस को रोशन करती है। इधर रहते हैं गिरिजाघरों से जुड़े पादरी। ये राजधानी के अलग-अलग गिरिजाघरों से जुड़े हुए हैं। दि ब्रदरहुड ऑफ द एसेंडेड क्राइस्ट, जो 1877 में भारत में स्थापित हुआ था, का कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से संबंध है। अब इसे दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी कहते हैं। ये अपने दिल्ली-सोनीपत की सीमा पर संचालित सेंट स्टीफंस कैम्ब्रिज स्कूल में भी दिवाली पर लाइटिंग करते हैं। इधर रहने वाले सभी पादरी देश के अलग-अलग भागों से हैं। ये गिरिजाघरों में पादरी का काम देखने के अलावा वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर, स्कूल और दूसरे समाज सेवा के काम भी करते हैं। मूल रूप से तमिलनाडू के रहने वाले सोलोमन जॉर्ज कहते हैं, “हम भारत में रहते हुए दिवाली से कैसे दूर रह सकते हैं? यह असंभव है। दिवाली प्यार, भाईचारे का त्योहार है, और खुद को अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने का त्योहार है। ” डीबीएस ने ही देश के प्रख्यात सेंट स्टीफंस कॉलेज की स्थापना की थी। यहां पर रहने वाले पादर मानते हैं कि रोशनी के इस पर्व को खुशियों का पर्व भी कहा सकता है। दीपावली के आने से पहले ही सारे माहौल में प्रसन्नता छा जाती है।
मशहूर लेखक तथा मौलाना आजाद उर्दू यूनिवर्सिटी के पूर्व चांसलर फिरोज बख्त अहमद कहते है, “ दीपोत्सव तो अंधकार से प्रकाश की तरफ लेकर जाने वाला त्योहार है। अंधकार व्यापक है, रोशनी की अपेक्षा। क्योंकि अंधेरा अधिक काल तक रहता है, अधिक समय तक रहता है। दिन के पीछे भी अंधेरा है रात का। दिन के आगे भी अंधेरा है रात का।“ फिरोज बख्त अहमद भी दिवाली पर अपने घर और दफ्तर को दीयों से रोशन करते हैं। दिवाली में, मुस्लिम और ईसाई अपने हिंदू पड़ोसियों के साथ दीये जलाते हैं, मिठाइयां बांटते हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं।
यूं तो यहूदी धर्म को इजराईल के साथ जोड़कर देखा जाता है। पर भारत के मुंबई, केरल, दिल्ली वगैरह में बसे हुए यहूदी दिवाली को मनाते हैं। राजधानी का एकमात्र जूदेह हयम सिनगॉग में छोटी दिवाली और फिर दिवाली पर दीये जलाए जाएंगे। यह सारे उत्तर भारत में यहुदियां की एकमात्र सिनगॉग है। इसके रेब्बी एजिकिल आइजेक मालेकर मालेकर कहते बैं कि दिवाली पर जब अंधेरा घना होने लगेगा तो वे दीये जलाकर प्रकाश करेंगे। भारत के यहूदी मानते हैं कि वे भारत में रहकर आलोक पर्व से दूर नहीं रह सकते हैं। हम यहूदी हैं,पर हैं तो इसी भारत के।
भारत के सुप्रीम कोर्ट के करीब दरगाह मटका पीर में भी दिवाली पर दीपोत्सव होगा। दिवाली पर मटका पीर में आलोक सज्जा की पुरानी रिवायत है। हज़रत शेख़ अबूबकर तूसी हैदरी क़लन्दरी का उपनाम मटका पीर इसलिए पड़ा था क्योंकि वो अपने पास एक मटका रखते थे। वो मटके का पानी लोगों पिलाते तो लोगों के दुःख-दर्द दूर हो जाते। इसीलिए बाबा के दर्शनों के लिए लोगों की भीड़ लगने लगी। ये सिलसिला अब भी बदस्तूर जारी है।
उधर, इस्लामिक विद्वान इमाम उमेर इलियासी वायरल बुखार से पीड़ित होने के बावजूद आजकल अपने साथियों को बता रहे हैं कि इंडिया गेट के करीब स्थित गोल मस्जिद के बाहर दिवाली पर दीये किस तरह से जलाए जाएंगे। यह परंपरा, उनके पिता मौलाना जमील इलियासी ने 1960 के दशक में शुरू की थी। वे ऑल इंडिया इमाम कॉन्फ्रेंस के संस्थापक थे। वे साइकिल पर मिठाई के डिब्बे खरीद कर लाते थे ताकि दिवाली से पहले उन्हें अपने दोस्तों और मुलाजिमों को बांट दें। उन्हें इंडिया गेट का फकीर भी कहते थे। शायद इसलिए कि गोल मस्जिद इंडिया गेट से चंद कदमों की दूरी पर है।
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राजधानी दिल्ली में स्थित बिशप हाउस पर भी दिवाली पर आलोक सज्जा की जाएगी। क्या है बिशप हाउस? ये देश के प्रोटेस्टेंट ईसाई समाज के प्रमुख बिशप का मुख्यालय है। ये ही भारत है। भारत की सांस्कृतिक एकता और धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक है। मुस्लिम और ईसाई भी इस त्यौहार को मनाते हैं, जो दर्शाता है कि भारत में धर्म की सीमाएँ पार करके सभी एक साथ आ सकते हैं और त्यौहारों को एक-दूसरे के साथ मना सकते हैं। यह हमारे देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और हमारे लोगों के बीच आपसी प्रेम और सद्भाव का प्रमाण है।