पुस्तक समीक्षा: असगर वजाहत
किसी भी अच्छे लेखक की तरह हरि भटनागर अपने लेखन में सदा कुछ नया देते रहते हैं। वरिष्ठ और सम्मानित लेखक के लिए यह चुनौती भरा होता है कि वह आपको लगातार बदलता रहे। नई चुनौतियों से जूझता रहे। उसके समीक्षक और पाठक उसे सराहते रहें। हरि भटनागर का नया उपन्यास ‘दो गज जमीन’ इसका जीता जागता सबूत है। हरि भटनागर ने साहित्य की कई विधाओं में अच्छी रचनाएं दी हैं। विशेष रूप से उनका उपन्यास ‘एक थी मैना एक था कुम्हार’ चर्चा के केंद्र में रहा है। अपनी अन्य रचनाओं में भी वे फैंटेसी और यथार्थ के बीच आवाजाही करते रहे हैं जो अपने आप में एक काफी जोखिम भरा काम है । हम यह भी कह सकते हैं कि वे अपनी जमीन को पहचानने का काम करने की कोशिश में इधर उधर की पड़ताल करते हैं।‘दो गज जमीन’ सच्चाई के साथ सीधे साक्षात्कार का प्रमाण है। इस उपन्यास में वे साधारण जीवन की असाधारणता को बहुत सशक्त ढंग से बयान करते हैं। उपन्यास के केंद्रीय पात्र लाला के माध्यम से जीवन की परतें खुलनी शुरू होती हैं जो ऊपर से बहुत साधारण दिखाई देता है लेकिन उसकी हर परत के नीचे एक दूसरी परत नजर आती है और यह क्रम दूर तक जाता दिखाई देता है। जीवन के प्रति पुरानी सभ्यताओं का एक सोचा समझा, लम्बे अनुभव के बाद निकला एक नजरिया है जो उसे कम से कम यूरोपीय नजरिये से अलग करता है। यही अंतर हमें यह उस बिंदु तक ले जाता है जहां प्रेम और बौद्धिकता,आध्यात्मिकता और भौतिकता की बीच एक तीखा संवाद सुनाई देता है। ‘दो गज जमीन’ में यह संवाद लाला, पंडित आत्माराम, जाफर ,रामखेलावन के माध्यम से सुनाई देता है । उपन्यास पठनीय है और सच्चाई से बहुत करीब है। मानवीय संवेदना की गहराई और उसकी व्यापकता को लेखक ने बहुत सहजता से सामने रखा है। मुझे विश्वास है कि हिंदी जगत में इस उपन्यास का भी उसी तरह स्वागत किया जाएगा जैसे उनके पहले उपन्यास ‘एक थी मैना एक था कुम्हार’ का किया गया था।