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    भारत में हृदय रोग का बढ़ता संकट और जागरूकता की जरूरत
    सेहत

    भारत में हृदय रोग का बढ़ता संकट और जागरूकता की जरूरत

    Vijay GargBy Vijay GargOctober 28, 2024Updated:October 28, 2024No Comments6 Mins Read
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    विजय गर्ग

    भारत में हृदय रोग जन स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्या बन गया है और इस रोग के कारण मरने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि बढ़ते शहरीकरण, सुस्त जीवन शैली, गलत खानपान, शारीरिक श्रम के अभाव और तनाव के कारण हृदय रोग के मामले बढ़ रहे हैं। दो दशक में हृदय रोगों के मामले काफी बढ़े हैं। हाल के वर्षों में युवाओं में इसका असर बढ़ा है। विवाह समारोहों में नाचते-गाते युवाओं की अचानक मौत हर किसी को चिंता में डाल रही है।

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    हाल में जारी एक रपट में भी जो तथ्य सामने आए हैं, उससे हमारे देश में हृदय रोग की गंभीरता का पता चलता है। ‘एवरी बीट काउंट्स’ अर्थात ‘प्रत्येक धड़कन मायने रखती है’ नामक इस रपट के मुताबिक दिल का दौरा पड़ने से दुनिया में जितने लोग मरते हैं, उनमें से बीस फीसद मौत अकेले भारत में होती है। भारत में हृदय रोगों से मृत्यु दर काफी ज्यादा है। हमारे देश के ग्रामीण इलाकों के मुकाबले शहरों में मृत्यु दर अधिक है। । ग्रामीण क्षेत्रों में में हृदय रोग से हर एक लाख में से दो सौ लोग मर जाते हैं, जबकि शहरों में हर एक लाख लोगों में से 450 की मौत होती है। । रपट में यह भी बताया गया है कि भारत में होने वाली कुल मौत में 24.5 फीसद मृत्यु हृदय संबंधी बीमारियों की वजह से होती है। बंगाल और पंजाब में तो स्थिति और गंभीर है। इन राज्यों में हृदय रोगों के कारण 35 फीसद से ज्यादा लोगों को जिंदगी गंवानी पड़ रही है।

    देश में हृदय रोग की गंभीरता को दर्शाने वाली इस रपट से पहले भी ऐसे शोध और अध्ययन सामने आ चुके हैं, जिनसे दिल पर बढ़ रहे संकट के बारे में पता चलता है। इसी साल अगस्त में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) और दिल्ली एम्स के साझा चिकित्सा अध्ययन में भी हृदय रोग के बढ़ते खतरे के बारे में बताया गया है। इसमें बताया गया है कि आगामी दस वर्षों यानी 2034 तक देश की पंद्रह फीसद आबादी को हृदय रोगों का जोखिम है।

    विश्व स्वास्थ्य संगठन और हृदय रोग को लेकर शोध एवं अनुसंधान करने वाले दुनिया के बड़े संस्थान हृदय रोग के बारे में समय-समय पर रपट जारी करते रहते हैं। ऐसी रपटें जन साधारण को हृदय रोगों के प्रति सजग करने के लिए होती हैं। पिछले साल ‘वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन’ की एक रपट में बताया गया था कि हृदय रोग विश्व में होने वाली मौत का प्रमुख कारण है। इस रोग से विश्व में वर्ष 1990 में जहां 1.21 करोड़ लोगों की मौत हुई, वहीं यह आंकड़ा 2021 में चढ कर 2.05 करोड़ हो गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रपट में भी दिल से जुड़ी बीमारियों को मौत का सबसे बड़ा कारण बताया गया है। इस रपट के अनुसार वर्ष 2019 में विश्व में 1.79 करोड़ लोगों की मौत हृदय संबंधी बीमारियों की वजह से हुई। यह गंभीर बात है कि एक जमाने में हृदय रोग बुजुर्गों में ही पाया जाता था, लेकिन अब यह युवाओं और बच्चों तक को अपना ग्रास बना रहा है। 30 से 40 वर्ष के लोगों में हृदय रोग का जोखिम तेजी से बढ़ रहा है।

    विशेषज्ञ खराब खानपान, शारीरिक निष्क्रियता, तंबाकू सेवन और ज्यादा शराब पीने को हृदय रोग और दौरे के सबसे व्यावहारिक जोखिम मानते हैं इसके लक्षण बढ़े हुए रक्तचाप, बढ़े हुए रक्त ग्लूकोज और अधिक वजन तथा मोटापे के रूप में नजर आ सकते हैं। चिकित्सकों का कहना है कि इन जोखिम कारकों को प्राथमिक देखभाल सुविधाओं में मापा जा सकता है और इनसे दिल के दौरे और अन्य जटिलताओं के बढ़ते जोखिम का संकेत मिलता है। चिकित्सकों का कहना है कि तंबाकू का सेवन बंद करने, आहार में नमक कम करने, अधिक फल एवं सब्जियां खाने, नियमित शारीरिक गतिविधि और शराब से बचने से हृदय रोग के जोखिम को कम किया जा सकता है, लेकिन लोग इस मामले में लापरवाह दिखाई पड़ते हैं। लोगों में जहां शराब पीने की लत बढ़ रही है, वहीं आरामतलब जिंदगी के प्रति रुझान भी बढ़ता रहा है। यही समस्या की जड़ है।

    चिकित्सक बताते हैं कि हृदय संबंधी जोखिम कम करने और दिल के दौरे रोकने के लिए उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हाई कोलेस्ट्रोल का उपचार जरूरी होता है, लेकिन इसके प्रति ज्यादातर लोग लापरवाह ही नजर आते हैं। यहां तक कि अक्सर लोग सीने में दर्द या बेचैनी, बाएं कंधे, कोहनी, जबड़े या पीठ में दर्द, सांस लेने में तकलीफ, उल्टी, चक्कर आने या बेहोशी और पसीना आने जैसे सामान्य लक्षणों को भी नजरअंदाज कर देते हैं। उच्च रक्तचाप या हाइपरटेंशन भी हृदय रोग की वजह हो सकता है, लेकिन हैरानी है कि लोग इसके प्रति भी जागरूक नहीं हैं।

    ‘इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च’ और ‘नेशनल सेंटर फार डिजीज इंफार्मेटिक्स एंड रिसर्च’ के एक राष्ट्रीय अध्ययन से पता चलता कि उच्च रक्तचाप से पीड़ित होने के बावजूद 70 फीसद से अधिक लोग इस बारे में नहीं जानते। यह अध्ययन 10,593 वयस्कों पर आधारित था, इनमें से 28.5 फीसद लोगों का रक्तचाप उच्च पाया गया। 27.9 फीसद लोगों को अपने उच्च रक्तचाप से ग्रस्त होने के बारे में पता था। जबकि 72.1 फीसद इससे अनजान थे। वहीं 14.5 फीसद का इलाज चल रहा था। सर्वेक्षण में शामिल 47.6 फीसद लोगों ने माना कि उन्होंने अपने जीवनकाल में कभी भी उच्च रक्तचाप की जांच नहीं करा रहे ।

    ‘वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन’ की एक रपट के मुताबिक, वर्ष 2010 की तुलना में 2025 तक हृदय रोगों से होने वाली समय पूर्व मृत्यु दर को 25 फीसद तक कम करने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करना कठिन लग रहा है। भारत में हृदय रोगों के प्रति जन जागरूकता लाने की आवश्यकता है। आम लोगों में हृदय रोग और उच्च रक्तचाप के प्रति जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ मधुमेह, मोटापा, धूम्रपान और शराब के सेवन के प्रति सजग करना भी जरूरी है।

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    इस मसले पर आई ताजा रपट में ग्रामीण क्षेत्र में शहरों के मुकाबले हृदय रोग से कम मौत होने की बात कही गई है। अलबत्ता, इससे पहले आइसीएमआर की रपट में भी ग्रामीण लोगों को हृदय रोगों का खतरा कम बताया गया है। इस रपट के मुताबिक शहरी आबादी में हृदय रोगों का गंभीर जोखिम सर्वाधिक पाया गया है। लगभग 17.5 फीसद शहरी आबादी में यह जोखिम मध्यम से गंभीर श्रेणी तक पाया गया, जो ग्रामीण आबादी में करीब 13.8 फीसद ही है। रपट में गांवों या छोटे कस्बों में लगभग 86.2 फीसद लोगों को हृदय संबंधी रोगों के जोखिम से दूर माना गया है। अगर गांव के लोगों में यह बीमारी कम हैं, तो यकीनन इसकी वजह उनकी सक्रिय जीवन शैली, कड़ी मेहनत और अनुकूल आहार ही है। हर किसी को इसका अनुसरण करना चाहिए।

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    Vijay Garg
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