शहाब तनवीर शब्बू
जन सुराज ने तरारी और बेलागंज विधानसभा क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बदल दिया है।जन सुराज के सुप्रीमो प्रशांत किशोर ने आज आरा में अपने उम्मीदवारों के संबंध में बताया कि तरारी से अब रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जेनरल एसके सिंह की जगह किरण सिंह उम्मीदवार होंगी।जबकि बेलागंज में प्रोफेसर खिलाफत हुसैन की जगह मोहम्मद अमजद चुनाव लड़ेंगे।बताया जाता है कि कुछ तकनीकी कारणों से उम्मीदवारों को पीके ने बदला है।अब देखना है कि भाजपा और सीपीआई (एमएल) के सामने पीके के उम्मीदवार कौन सा करिश्मा कर पाएंगे।
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मेरे पत्रकार मित्र सेराज अनवर का कहना हे कि काहे का रणनीतिकार? बेलागंज और तरारी से उम्मीदवार बदलना पड़ा पीके के नाम से प्रसिद्ध प्रशान्त किशोर को अब आटा-दाल का भाव मालूम पड़ रहा है।पहले तो दूसरे की दुकान से काम चला रहे थे जब ख़ुद राजनीति करने उतरे तो मालूम पड़ गया ‘रणनीति’और ‘राजनीति’में कितना अंतर है। बिहार की मिट्टी ऐसी है कि चाय की दुकान पर हराने-जिताने के लिए लोग रणनीति बुन लेते हैं।लेकिन राजनीति में वे ज़ीरो होते हैं।वही हाल प्रशान्त किशोर का इस उपचुनाव में हो रहा है।इसको कहते हैं सिर मुंडाते ओला पड़ना।पार्टी बनाने के बाद प्रशांत किशोर का यह पहला चुनाव है और पहले ही चुनाव में उनकी इस क़दर फ़ज़ीहत होगी किसी ने सोचा भी नहीं था।बेलागंज में तो घिना गए।कभी मोहम्मद अमजद,कभी ख़िलाफ़त।चुनाव को मज़ाक़ बना कर रख दिया।
मेरी जितनी राजनीतिक समझ है लिखता रहा हूं राजनीतिक दल किसी कम्पनी से नहीं चलाया जा सकता।उनसे सर्वे वग़ैरा का काम लिया जा सकता है।उन्हें वालंटियर्स बनाया जा सकता है।गेट पर खड़ा कराया जा सकता है।उनसे राजनीतिक राय नहीं ली जा सकती।प्रशांत अभी भी आइपैक पर डिपेंडेंट हैं ।अभी और फ़ज़ीहत होनी बाक़ी है।जो आइपैक कह रहा है पीके वह सुन रहे हैं। तरारी से पूर्व लेफ़्टिनेंट जनरल एसके सिंह का नाम आइपैक ने ही सुझाया था।लेकिन यह नहीं बताया कि लेफ़्टिनेंट साहब का बिहार की वोटर लिस्ट में नाम ही नहीं है।जब प्रशांत को पता चला तो उनके पांव तले ज़मीन खिसक गयी।पीके ने लेफ़्टिनेंट जनरल साहब के लिए पटना में इक्स्क्लूसिव प्रेस कॉन्फ़्रेन्स किया था।उनका ख़ूब गुणगान किया गया मानो उनसे क़ाबिल बिहार में कोई और है ही नहीं।कितने क़ाबिल निकले कि उन्हें यह तक मालूम नहीं राज्य का चुनाव लड़ने के लिए उसी प्रदेश की वोटर लिस्ट में उम्मीदवार का नाम होना लाज़िमी है।एसके सिंह को पीके ने तरारी का बेटा बताया था हालांकि उनकी उम्र चुनाव लड़ने की भी नहीं थी।70-75 साल में कोई पहला चुनाव लड़ता है ?जनरल साहब तरारी के ऐसे बेटे हैं जो वोट डालने बिहार नहीं आते।तरारी से अपना नाम कटा कर नोएडा की वोटर लिस्ट में डलवा लिया था।और रणनीतिकार साहब को पता ही नहीं था उनके तनखहिया लड़कों ने भी नहीं बताया उन्हें।फ़ज़ीहत तो बेचारे प्रशानंत किशोर को ही झेलनी पड़ रही है।अब जा कर तरारी से जन सुराज ने किरण सिंह को उम्मीदवार बनाया है।
पार्टी राजनीतिक कार्यकर्ताओं,नेताओं से चलती है।जन सुराज पार्टी में नेता-कार्यकर्ता हाशिये पर है।किसी भी प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में पूर्णमासी राम,सीता राम यादव,डॉ।मोनाज़िर हसन,अशफाक़ रहमान,देवेन्द्र प्रसाद यादव,मसीह उद्दीन,रामबली सिंह,आनंद मिश्रा,विनीता विजय आदि को नहीं बैठाया जाता है।ऐसा प्रतीत होता है प्रशानंत किशोर ख़ुद माइक छोड़ना ही नहीं चाहते? या ख़ुद अकेला लीडर बनना चाहते हैं।पार्टी विचारधारा से चलती है।बदलते बिहार का सपना साकार करने जो भी लोग आये वह जन सुराज की विचारधारा से जुड़े हैं आइपैक वाले नहीं।यह पीके को समझना होगा।अन्यथा तरारी और बेला में चुनाव से पूर्व जो हस्र हुआ है उससे भी बुरा गत होगा।
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बेलागंज में क्या तमाशा हुआ सबने देखा ,जनता की पसंद मोहम्मद अमजद थे।लेकिन पीके ने अपनी ज़िद की वजह से प्रो।ख़िलाफ़त हुसैन को उम्मीदवार घोषित कर दिया।प्रोफ़ेसर साहब भी कैसे आदमी हैं कि नौजवान नेतृत्व को आगे करने के बजाय ख़ुद चुनाव लड़ने की ज़िद कर बैठे।जबकि उनका बेटा मो।एकबाल जन सुराज में बहुत दिनों से है।प्रोफ़ेसर साहब ने अपनी तो फ़ज़ीहत की ही प्रशांत की भी दुर्गति करा दी।प्रशांत को जनता के आगे झुकना पड़ा।आख़िरकार अमजद को ही उम्मीदवार घोषित करना पड़ा।अमजद भी पहले हां फिर ना फिर हां करते रहे।उन पर अब कौन भरोसा करेगा।इसमें कोई दो राय नहीं प्रशांत बिहार की राजनीति में कोण बनाते दिख रहे हैं लेकिन उन्हें पहले आइपैक के त्रिकोण से निकलना होगा