सुधीर कुमार
सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी साधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आईआईटी धनबाद को अतुल कुमार नाम के इस छात्र को बीटेक, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में प्रवेश देने का आदेश है।मैं अदालत के आदेश का स्वागत करती हूं। अदालत ने आज हम जैसे गरीबों को खुशियां दी है। मेरे बेटे को प्रवेश की अनुमति देकर अदालत ने मुझे खुशी दी है, इसके लिए अदालत का मैं धन्यवाद करती हूं।ये शब्द हैं अतुल कुमार की मां रास देवी का। आज रास देवी के खुशी का ठिकाना नहीं था, बेटे को आईआईटी जैसे प्रसिद्ध संस्थान में नामांकन जो मिल गया था। जब उसे पता चला था कि उसके बेटे का नामांकन फीस कम होने के वजह से नहीं हुआ, वह काफी दुखी थी। लेकिन जैसे ही अदालत का आदेश आया उसकी बांछें खिल गईं।
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दरअसल हाल ही में घटित दो घटनाओं ने सरकारी व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है। पहली घटना है उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के अतुल कुमार के नामांकन की, जो आईआईटी जेईई का छात्र हैं। दूसरी घटना है उड़ीसा के नीट यूजी के छात्र शंकरसन के नामांकन की।
कहानी कुछ इस प्रकार है कि उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के एक छोटे से गांव टिटोरा निवासी दलित परिवार का एक लड़का अपने लगन और मेहनत से आईआईटी की परीक्षा पास करता है। मात्र 17,500 फीस समय से जमा नहीं करने के कारण अपनी सीट सरेंडर करता है। जब मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में आता है तो सर्वोच्च न्यायालय के तीन जजों के खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा ‘हम ऐसे प्रतिभाशाली युवक को अवसर से वंचित नहीं कर सकते। उसे मझधार में नहीं छोड़ा जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी साधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आईआईटी धनबाद को अतुल कुमार नाम के इस छात्र को इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के बीटेक पाठ्यक्रम में प्रवेश देने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 142 के तहत न्याय के हित में कोई भी आदेश पारित करने का अधिकार देता है। इस प्रकार इस कानून के तहत एक दलित बच्चे का करियर संवर जाता है।
अतुल कुमार एक बिहारी मजदूर का बेटा है उसके पिता मुजफ्फरनगर के टिटोरा गांव में मजदूरी कर अपना जीवन यापन करते हैं। उक्त दलित परिवार यहां गरीबी रेखा से नीचे के कैटेगरी में आता है। हालांकि अतुल कुमार का परिवार 17500 की व्यवस्था तो अंतिम समय तक कर लिया था लेकिन जब वह पैसा जमा करने गया तो अचानक कॉलेज की वेबसाइट लॉगआउट हो गई, नतीजा इसका नामांकन नहीं हो पाया और अतुल कुमार को कोर्ट जाना पड़ा। आपको बताते चलें की अतुल कुमार के माता-पिता ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग झारखंड के कानूनी सेवा प्रावधान प्राधिकरण में और मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए चीफ जस्टिस डिवाइस चंद्रचूड़ और जस्टिस जेनी पादरीवाल और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने या फैसला सुनाया।
यह तो कहानी थी उत्तर प्रदेश के अतुल कुमार की, एक दूसरी कहानी है, उड़ीसा के कंधमाल जिले के एक दूर दराज गांव मुनीगुडा के रहने वाले शंकरसन की। शंकरसन इसी वर्ष नीट यूजी के परीक्षा में अच्छा स्कोर ले आया। जिसकी बदौलत उसे तमिलनाडु के सरकारी मेडिकल कॉलेज, कुड्डालोर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में एमबीबीएस में दाखिले का ऑफर आया, लेकिन पैसों की कमी के कारण नामांकन नहीं हो पा रहा है। मेडिकल कॉलेज में एडमिशन की फीस 93,000 रुपए है। शंकरसन ने इस परीक्षा की तैयारी स्थानीय कोचिंग संस्थान एवं इंटरनेट के जरिए किया। इनके पिता माणिक मंडल और मां देवकी दोनों ही दिहाड़ी मजदूर हैं। माता-पिता दिहाड़ी मजदूर होने के कारण पैसा जुटाना में असमर्थ हैं। हालांकि शंकरसन की मां उड़ीसा सरकार सहित विभिन्न उपाय में लगी हुई है कि किसी तरह उसका नामांकन हो जाए।
उदय सर्वादय के लिए मीडिया संवाद में सुधीर कुमार से बात करते हुए अतुल कुमार ने बहुत बेबाकी से प्रश्नों के जवाब दिए प्रस्तुत है प्रमुख अंश –
आपने इंजीनियर बनने की तैयारी कब से शुरू की?
मैं बचपन से ही इंजीनियर बनना चाहता था। लेकिन कक्षा 9 में आकर मुझे लगा कि अब गंभीर तैयारी करने की जरूरत है। इस प्रकार मैंने कक्षा 9 से ही इस परीक्षा की तैयारी करना शुरू कर दिया था।
आपने यह तैयारी कैसे की? खुद से या किसी कोचिंग का सहारा लिया?
मैं स्थानीय कोचिंग संस्थान में प्रतिदिन लगभग 18 घंटे पढ़ाई करता था, पढ़ाई से मुझे केवल सोने और खाने के लिए ब्रेक मिलता था। कोचिंग क्लास के बाद इंटरनेट पर पढाई करता था।
छात्रों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे जो छात्र सफल न होने पर कई बार संस्थान और साथियों के दबाव में आकर आत्महत्या की सोच लेते हैं?
मैं डॉक्टर बीआर अंबेडकर को अपना आदर्श मानता हूं। ऐसी परिस्थितियों में किसी को आत्महत्या नहीं करनी चाहिए। यदि एक अवसर समाप्त होता है, तो दूसरा खुल जाता है। इसलिए हार नहीं मानना चाहिए।
इंजीनियरिंग की तैयारी करने वाले छात्रों का लक्ष्य होता है आईआईटी कॉलेज में जाना। लेकिन आईआईटी कॉलेज नहीं मिलने पर वह हताश हो जाते हैं। उनके लिए क्या संदेश देंगे?
यदि किसी ने आईआईटी में पढ़ने का सपना देखा है और वह बीटेक में प्रवेश पाने में असफल रहता है। उसके लिए मेरा सुझाव है वह किसी संस्थान से बीटेक करने के बाद आईआईटी से एमटेक करने की सोचे। अथवा पुन: प्रयास करे।
यह दोनों ही घटनाएं हमारे सरकारी व्यवस्था की पोल खोल रही है। केंद्र सरकार शिक्षा लोन को सरल और सुलभ बनाने की बड़े-बड़े वादा करती है। लेकिन सच्चाई ढाक के तीन पात की तरह है। ऐसा इसलिए है कि बैंक की प्रक्रिया जटिल है और उस प्रक्रिया में जब तक खरे नहीं उतरते तब तक उन्हें शिक्षा लोन नहीं दिया जाता। बहुत सारे बच्चों को देखा गया है कि लोन मिलता भी है तो सिर्फ कॉलेज फीस, लेकिन पढ़ाई के लिए क्या सिर्फ कॉलेज फीस का होना पर्याप्त है? उसके रहन-सहन का खर्चा, किताब कॉपी का खर्चा और भी बहुत सारे खर्चे होते हैं। वह एक गरीब छात्र कहां से लाए? यह बड़ा सवाल है।