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    हजारों बच्चों की आंखों की रौशनी बन गई टिफ्फनी
    मिसाल

    हजारों बच्चों की आंखों की रौशनी बन गई टिफ्फनी

    Chetan PalBy Chetan PalOctober 8, 2024No Comments3 Mins Read
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    तुम बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनो,
    तुम को अपने आप ही सहारा मिल जायेगा।
    कश्ती कोई डूबती पहुंचा दो किनारे पे,
    तुम को अपने आप ही किनारा मिल जायेगा।

    हरीकृष्ण : मशहूर गीतकार आनंद बख्शी द्वारा लिखे इस गीत में जीवन का एक पूरा दर्शन है, और इस गीत को वास्तव में साकार कर रही हैं टिफ्फनी बरार। जो खुद नेत्रहीन होते हुए भी कई दृष्टिहीनों को आज रास्ता दिखा रही हैं। यूं तो टिफ्फनी खुद भी दृष्टिहीन ही हैं, लेकिन वे अपनी लगन और कठिन परिश्रम के बल पर आज दूसरों को न सिर्फ चलना सिखा रही हैं, वरन उन्होंने और कई अन्य लोगों के जीवन को एक सही दिशा दी है। 26 वर्षीय टिफ्फनी एक अध्यापिका और मोटीवेशनल स्पीकर भी हैं पर वो देख नहीं सकती। अपने अंधत्व को मात देकर उसने अपनी एक पहचान बनायी है।

    इसे भी पढ़ें ⇒मोदी दशक में हिंदी सिनेमा

    अपने बचपन के दिनों के बारे में याद करते हुए टिफ्फनी बताती हैं कि पिता आर्मी में थे इस कारण उनकी पढ़ाई लिखाई दार्जिलिंग, दिल्ली, तिरुवनंतपुरम और वेलिंग्टन जैसे कई शहरो में हुई। टिफ्फनी को अपनी मां से बहुत लगाव था क्योंकि पिता जनरल बरार अधिकतर अपनी नौकरी के कारण ज्यादा व्यस्त रहते थे। इसलिये उसकी मां लेजली उसका खयाल रखती थी। टिफ्फनी अपनी मां से काफी प्रभावित थी। लेजली हमेशा गरीबों की मदद करती थी। अपनी मां से मिली हुयी इस प्रेरणा से उसने बड़ी होकर एक मिसाल कायम की। 12 साल की उम्र में टिफ्फनी ने अपनी मां को खो दिया। वो दिन उसने बड़े कठिनाईयों के साथ गुजारे। उसके पिता की नौकरी दिल्ली में थी पर उस बड़े शहर में वो जैसे खो गयी थी। वो अपनी जिन्दगी सरलता से जीना चाहती थी, इसलिये तिरुवनंतपुरम वापस चली गयी। उस शहर में उसने 11वीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी की और उसके बाद वेलिंग्टन में जाकर आगे की पढ़ाई की।

    स्कूल में उसे कभी भी ऐसी छोटी-छोटी चीजें नहीं सिखायी गयी थीं। उसे याद है कि वो और उसके जैसे अन्य नेत्रहीन लोग कपड़े भी ठीक तरह से पहन नहीं पाते थे। विनीता अक्का की वजह से उसे अहसास हुआ कि उसे भी अच्छे कपड़े पहनना चाहिये, अच्छा दिखना चाहिये और अपने छोटे-छोटे काम खुद करना चाहिये। और इसी सोच के साथ अपने आत्मनिर्भर होने के मार्ग पर वो चल पड़ी थी। टिफ्फनी खुद बाहर नहीं जा पाती थी। उसके साथ हमेशा कोई न कोई होता था। लोग हमेशा ‘ये नामुमकिन है’ और ‘उससे नहीं हो पायेगा’ – इस तरह उसके बारे में कहते थे। पर टिफ्फनी ने सबको गलत साबित कर दिखाया।

    नेत्रहीन और सामान्य व्यक्ति के बीच हमारे समाज में अभी भी मानसिक दुरी है। मैं ऐसा वातावरण निर्माण करना चाहती हूं, जिसमें अंधे लोग        सहजता से सामान्य लोगों जैसा जीवन व्यतीत कर सकें।
    टिफ्फनी बरार

    #blind #blind people #difficulties #tiffany brar
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