अंकुर सिंह
हम जिस देश में रहते है उस देश के प्रमुख शहरों और वहां के सभ्यता को विकसित करने में नदियों का महत्वपूर्ण भूमिका है और नदियों का अस्तित्व उसमे भरे जल से है और जल के महत्व को समझते हुए हमें अपने शहर और सभ्यता को बचाने के लिए एकजुट होकर जल संरक्षण पर ध्यान देना होगा। जल और वायु ऐसे पदार्थ हैं जिनके बिना किसी जीव के जीवन की परिकल्पना ही नहीं की जा सकती, इसलिए कह सकते हैं की स्वस्थ जीवन के लिए शुद्ध जल और शुद्ध हवा का मिलना बहुत जरूरी है।
आकड़ों की बात करें तो पृथ्वी लगभग अपने सतह के दो तिहाई भागों से जल से भरी है, परन्तु उस दो तिहाई भाग का 97 प्रतिशत पानी समुद्र में है और केवल 3 प्रतिशत जल ही पीने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, और मानव शरीर में लगभग 60 प्रतिशत जल होता है और वो भी शरीर के विभिन्न अंगों में पानी की मात्रा भी विभिन्न-विभिन्न होती है जैसे कि- हड्डियों में भी 22 प्रतिशत, दाँतों में 10 प्रतिशत, त्वचा में 20 प्रतिशत, दिमाग में 74.5 प्रतिशत, मांसपेशियों में 75.6 प्रतिशत जबकि खून में 83 प्रतिशत पानी होता हैं। अब इस आधार पर कहा जा सकता है कि पृथ्वी का केवल 3 प्रतिशत पाए जाने वाला जल हमारे और हमारे आने वाले पीढ़ी के लिए कितना महत्वपूर्ण है और हम आज जल संरक्षण को लेकर जागरूक नहीं हुए तो वो दिन भी दूर नहीं जब पानी के लिए हमें गृह-युद्ध का भी सामना करना पड़े।
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कहा जाता है जो चीज जितनी दुर्लभता से मिलती है उसकी कीमत भी उतनी ज्यादा रहती है और वही चीज यदि किसी को सुलभ रूप से मिले तो उसकी कीमत उसे समझ में नहीं आती ठीक वैसे ही आज से लगभग 25-30 साल पीछे जाए तो पानी पाने का इतना सुलभ साधन नहीं था लोग दूर-दराज के कुएँ या तालाब से पानी लाते थे और बड़ा सहेज कर उसका उपयोग करते थे आज के वर्तमान परिवेश में लोग भू-गर्भ में स्थित जल का बड़ी तेजी से दोहन कर रहें हैं। उन्हें बिजली के एक स्विच दबाने से जल आसानी से मिल जा रहा है जिससे लोग इस जल के महत्व को नहीं समझ रहें है। जिसका एक उदाहरण टंकी भर जाने के बाद गिरता हुआ पानी है, नल को खुला छोड़कर शेविंग या ब्रश करना, गाड़ियों को धुलने के लिए बाल्टी-मगे का प्रयोग ना करके तेज धारा वाले पाइप का उपयोग करना इत्यादि देखने को मिल जाते है। एक आंकड़े के मुताबिक हर दिन करीब 4 करोड़ 84 लाख क्यूबिक मीटर पानी की बबार्दी होती है। जल की बबार्दी केवल घरेलू रोजमर्रा के कार्यों में ही नहीं अपितु कल कारखानों में भी हो रहा है साथ ही कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ नदियों में जाकर नदियों के जल को भी दूषित कर रहे हैं और आजकल बोतलबंद पानी और कोल्ड-ड्रिंक का व्यापार भी जबर्दस्त भू-जल का दोहन कर रहा है। भयंकर भू-जल दोहन के कारण 2007-2017 के बीच देश में भू-जल स्तर में लगभग 61 प्रतिशत तक की कमी आयी है।
हम जानते है की भारत एक कृषि प्रधान देश हैं और खेती के लिए सिंचाई बहुत ही जरूरी है, ज्यादातर मामले में देखा जाता है की किसान ये सोचता है की खेत को लबालब पानी भर देने से उसको उत्पादन ज्यादा मिलेगा, परन्तु उसे इस बात का तनिक भी आभास नहीं रहता की उसमें से अधिकतर जल का तो वाष्पीकरण हो जाता है, आकड़ों कि बात करे तो देश के 89 प्रतिशत भू-जल का इस्तेमाल कृषि कार्यों में होता है। अत: किसानों को भी चाहिए की वर्तमान परंपरागत सिंचाई के जगह फुहारा या ड्रिप सिंचाई (ड्रिप या टपक सिंचाई में जल को मंद- मंद गति से बूँद-बूँद के रूप में फसलों के जड़ क्षेत्र में एक छोटी व्यास की प्लास्टिक पाइपलाइन से प्रदान किया जाता है। जिससे जल की काफी मात्रा में बचत होती है) का प्रयोग करें। सरकारें किसानों को सब्सिडी दे रही इस सिंचाई व्यवस्था को अपनाने के लिए सब्सिडी कोई भी किसान ले सकता हैं बस उसके नाम खेती योग्य भूमि हों।
एक रिपोर्ट के अनुसार सवा करोड़ आबादी वाले इस देश में लगभग 70 करोड़ लोग पेयजल के किल्लत का सामना कर रहे है। अभी हाल के वर्षों में देश के प्रधानमंत्री मोदी जी अपने मन की बात कार्यक्रम में जल संकट पर गहरी चिंता व्यक्त की तथा देश के जलशक्ति मंत्रालय ने जल संकट से निपटने के लिए जलशक्ति को जनशक्ति से जोड़ने की बात कहीं और केन्द्रीय जल-शक्ति मंत्री ने 1 जुलाई, 2019 को जलशक्ति अभियान की शुरूआत की। इसके तहत देश के 256 जिलों को प्राथमिकता के आधार पर चुना गया। इस अभियान को दो चरणों में चलाना तय किया गया है, पहला चरण 1 जुलाई, 2019 और दूसरा चरण 1 अक्टूबर, 2019 से और इस अभियान का फोकस पानी के कम दबाव वाले जिलों पर किया गया। इस अभियान का मकसद जल-संरक्षण के फायदों को लेकर लोगों के बीच जागरूकता पैदा करना है ताकि देश के हर एक इंसान को जल का महत्व समझ में आ सके और सभी जल संरक्षण में अपना बहुमूल्य योगदान दें।
जल संरक्षण कि जिÞम्मेदारी केवल सरकार की नहीं बल्कि हम सभी का हैं। देश के पढ़े लिखे लोगों को चाहिये की सबको जागरूक करे उन्हें फिर उन्हें जल संरक्षण के पुराने विधियों जैसे तालाब, कुएँ, पोखर, झील इत्यादि का महत्व समझायें की कैसे उस समय उनके पूर्वज तालाब, कुएँ, पोखर, इत्यादि का निर्माण करवाते थे ताकि बारिश का पानी जमा हो सके जिससे आस पास के भू-जल रिचार्ज हो सके हुए जल स्तर में वृद्धि हो। क्योंकि बिना बारिश के पानी को रोके गिरते जल स्तर पर काबू पाना मुश्किल है। देश की जनसंख्या दिनों पर दिन बढ़ती जा रही है जिससे आने वाले समय में पानी की और जबरदस्त मांग रहेगी एक आकड़ों के अनुसार वर्ष 2000 में प्रति व्यक्ति जल की आवश्यकता 750 मिलियन क्यूबिक मीटर थी वही आने वाले 2025 तक जल की यह आवश्यकता 1050 मिलियन क्यूबिक मीटर हो जाएगी और तो और 2030 तक बढ़ती आबादी के कारण पानी की मांग अभी हो रही आपूर्ति से दोगुनी हो जाएगी। इस आधार पर कह सकते है की बारिश के जल के भण्डारण और जल संरक्षण पर आज सचेत नहीं हुए तो वो दिन दूर नहीं जब लोगों के घरों में चोरी और डकैती भी पानी के लिए होगी। जल संरक्षण हेतु नदी-नालों पर कुछ निश्चित दूरी पर स्टॉप डेमों का निर्माण के साथ-साथ नए तालाबों का निर्माण एवं पुराने तालाबों का जीर्णोध्दार बहुत ही जरूरी है। बीते कई दशकों पर गौर करे तो लगभग दो तिहाई तालाब, कुएँ, पोखर, झील खत्म हो चुके है जिससे बारिश के पानी को पहले जैसा इकट्ठा कर पाना आसान नहीं रहा और तो और किसान भाइयों को भी चाहिए की अपने खेतों की मेड़बंदी काफी ऊँचीं करे जिससे बारिश का पानी खेतों में फसलों के लिए रुके और जो उपजाऊ मिट्टी बारिश के साथ बह जाती थी उसका कटान भी रुके। इसके साथ शहरी क्षेत्रों में वर्षा के जल संचय के छतों इत्यादि पर भी बनाया जा सकता है जिससे बारिश के जल को इकट्ठा कर के उनका दैनिक जीवन में जैसे की बागवानी, गाड़ी, कपड़े बर्तन की धुलाई इत्यादि कार्यं किये जा सकते है या शहरों में भी पार्किंग इत्यादि के पास गड्डे खोद कर वर्षा के जल को संचय किया जा सकता है और ये जल भू जल स्तर बढ़ाने के साथ साथ दैनिक कार्यों में भी बड़े उपयोगी सिद्ध होंगे। जैसा की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में बारिश का केवल 8 प्रतिशत पानी ही संरक्षित हो पाता है। यदि भविष्य में जल संकट से बचाना है तो ज्यादा से ज्यादा बारिश के जल का ज्यादा से ज्यादा संचय करना होगा।
जल संरक्षण के जागरूकता अभियान लिए केंद्र सहित सभी राज्य सरकारों को चाहिए की ग्राम पंचायत स्तर पर कलाकारों की कमेटी बनाकर वहां के क्षेत्रीय भाषा में रंगमंच कार्यक्रम सहित जल संरक्षण पर गायन कार्यक्रम इत्यादि करायें और इन कार्यक्रमों से जल संरक्षण के महत्व को समझाने के साथ-साथ लोगों को वृक्षारोपण के लिए भी जागरूक करें और हर पंचायत स्तर पर लगभग 8-10 घरों से उपयोग के बाद निकलने वाले पानी जैसे नहाने, वाशिंग मशीन का पानी इत्यादि एक जगह इकट्ठा करें एवं पुन: उसे रीसायकल करते हुए अन्य कार्यों में जैसे बागवानी, कृषि कार्यों इत्यादि में प्रयोग करे और निजी कार्यों के लिए हो रहे अंधा-धुंध निजी बोरिंग पर अंकुश लगाए तथा कुएं और हैंडपंप से 2-3 मीटर के दूरी पर गड्डे को अनिवार्य करें और उसमे पहले बड़े पत्थर, फिर उससे छोटे और अंतिम में रेत डाले और वहां पर गिरने वाले पानी को उस गड्डे में जमा करें जिससे आस-पास के जल स्तर को बढ़ने में काफी मदद मिलेगीं।
भारत में जल का संकट जनजीवन पर गहराता नजर आ रहा हैं। साल 2018 में नीति आयोग द्वारा किये गए एक अध्ययन में 122 देशों के जल संकट की सूची में भारत 120वें स्थान पर खड़ा है। जल संकट के मामले में चेन्नई और दिल्ली जल्द ही दक्षिण अफ्रीका का केपटाउन शहर जैसे बनने के राह पर है यदि हम जल संरक्षण पर आज अभी नहीं जगे तो वो दिन दूर नहीं जब देश के कुछ प्रमुख शहर में वाटर लेवल जीरो हो जायेगा मतलब वहां पीने का पानी नहीं रहेगा। अपने देश में जो लोग पानी की कीमत आज बिलकुल नहीं समझ रहें हैं लोगों को समझना होगा की धरती माता द्वारा दिया जा रहा ये तरल पदार्थ पानी ही नहीं अपितु जीवन प्रदान करने वाला एक अमृत भी हैं, और इस अमृत के महत्व को समझकर इससे एक-एक बूंद की रक्षा करें क्योंकि धरती के भू-गर्भ से निकलने वाले अमृत सामान जल के लिए कहा जाता है कि- जल है तो कल है।