हुसैन ताबिश
भारत को अगर एक महान देश माना और समझा जाता रहा है, तो इसकी वजह यहाँ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, उदार सनातन संस्कृति, परम्परा, यहाँ का सहिष्णु समाज, देश का संविधान और कानून रहा है, जो इसे दुनिया के तमाम मुल्कों से अलहदा करता है, और एक ख़ास पहचान देता है.
होली- दीवाली, ईद, मुहर्रम और ईस्टर सभी हमारी कंपोजिट कल्चर का हिस्सा हैं, लेकिन भारत माता के कुछ लाल इसे एक दूसरे से जुदा करने में लगे हैं. आज से पहले कई बार ऐसा हुआ है, जब दो धर्मों के पर्व- त्योहार एक साथ पड़े हैं. अगर एक-दो या छिटपुट और फौरी तौर पर होने वाले किसी टकराव को छोड़ दिया जाए तो कभी कोई विवाद नहीं हुआ, लेकिन इस बार ऐसा क्या हुआ कि होली और रमजान का जुमा एक दिन होने से बवाल मचा हुआ है ?
क्या होली और रमजान सिर्फ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश या बिहार में है, या पूरे मुल्क में हैं ? किसी दूसरे प्रदेश में तो कोई इस चिंता में दुबला नहीं हो रहा है कि 14 तारीख को होली और रमजान का जुमा एक साथ पड़ने वाल है? ये शोर UP और बिहार में ही क्यों उठ रहा है?
हालांकि, इसमें वो मुसलमान भी कम दोषी नहीं है, जिसने मस्जिदों में नमाज़ का टाइम बढ़ाने का पहले-पहल शिगूफा छोड़ा था. क्या होली की कोई नमाज़ होती है, उसका कोई टाइम टेबल होता है ? रही बात जुलूस निकलने की तो, क्या हुआ मुसलमानों को इसके साथ नमाज के लिए भी निकलना चाहिए. अगर जुलूस में शामिल लोग कोई तुमपर रंग फेक देंगे. गाली दे देंगे. उकसाएँगे तो सह लेना. ज़ब्त और सब्र से काम लेना. रमजान हर साल यही सिखाने तो हमें आता है? रंग कोई आग नहीं है, जिससे बदन जल उठेगा ? पढ़ लेना रंगे हुए लिबास पहनकर अपनी नमाज़. नमाज़ में कोई कसर नहीं होगी.
और अगर तुम इतने डरपोक कौम हो तो उस दिन जुमे की नमाज़ पढ़ने के बजाये घर पर जोहर की नमाज़ अदा कर लेना. सख्त बारिश, आंधी और तूफ़ान की सूरत में जुमा की नमाज़ छोड़ने का हुक्म है, तो यहाँ तो तुम्हारी जान को खतरा है! तो मत जाओ उस दिन जुमे की नमाज़ पढने. घर पर जोहर की नमाज़ पढ़ लो, लेकिन न कोई तूफ़ान खड़ा करो न किसी के बिछाए जाल में फंसो. याद रखना सरपसंद अनासिर तुम्हे अछूत बनाने, हासिये पर धकेलने के लिए तैयार बैठे हैं. तुम उससे दो कदम दूरी बनाओगे तो वह तुम्हे 2 कोस दूर धकेल देंगे.
संभल में शाही जामा मस्जिद, लडानिया वाली मस्जिद, थाने वाली मस्जिद, एक रात मस्जिद, गुरुद्वारा रोड मस्जिद, गोल मस्जिद, खजूर वाली मस्जिद, अनार वाली मस्जिद और गोल दुकान वाली मस्जिद समेत कुल 20 मस्जिदों को ढंकने के आदेश दिए गए हैं.
वहीँ, बुधवार को शाहजहापुर में 20 मस्जिदों को तिरपाल से ढक दिया गया है, ताकि वे रंगों से दागदार न हों. इससे पहले, मंगलवार को लगभग 67 मस्जिदों को तिरपाल से ढंक दिया गया था.
दरअसल, मस्जिदों को ढंकने की शुरुआत साल 2022 में संभल के लडानिया वाली मस्जिद पर होली के दौरान कुछ लोगों द्वारा रंग फेकने के बाद शुरू हुई थी.
लेकिन क्या या प्रशासनिक नजरिये से सही है ? एक मस्जिद पर रंग फेंकने वाले आराजक तत्त्वों को कानून को सजा देकर एक नजीर पेश करना चाहिए था कि आगे से कोई ऐसी गलती या दुस्साहस न करे, तो उल्टा प्रशासन ने मस्जिदों को ही ढंकने का आदेश दे दिया यानी उसपर रंग फेंकने के अपराध को पुलिस ने एक तरह से वैलिडिटी प्रदान कर दी. गोया कि तुम गलत नहीं हो, रास्ते में मस्जिद का होना ही गलत है! कल किसी महिला का बलात्कार हो जाए तो पुलिस आसानी से कह देगी कि गलती तुम्हारी है. तुम आखिर एक महिला क्यों पैदा हुई हो ? कल को किसी का कोई माल लूट ले तो पुलिस कह देगी तुमने माल कमाया ही क्यों था ?
क्या भाजपा शासित प्रदेशों की पुलिस का ज़मीर मर चुका है? प्रशासन शीघ्रपतन का शिकार हो चुका है? मस्जिदों के आगे रुककर आखिर DJ कौन बजाता है? मस्जिदों के आगे मियाओं को कौन उकसाता है? क्या ये सभ्य सनातनी हैं ? कौन सभ्य हिन्दू होली में मस्जिदों के आगे उत्पात मचाता है? पुलिस आखिर किन गुंडे, मवाली, खलिहर, अराजक तत्वों की तरफदारी कर रही है? क्या पुलिस ने शरीफ नागरिकों की हिफाज़त और कानून व्यवस्था सँभालने की ज़िम्मेदारी छोड़ दी है ? क्या कानून का शासन और पुलिस का इकबाल खत्म हो चुका है ? अगर ऐसा है तो ये कल को बहुसंख्यक समाज के लिए भी खतरा पैदा कर सकता है.दरअसल, मस्जिदों को तिरपाल से ढंकना समस्या का कोई समाधान नहीं है. ये बिमारी को बढाने वाला एक इलाज है. ये राष्ट्रीय शर्म की बात है. कानून के शासन और राज्य की विफलता का प्रतीक है. सैम्विधानिक मूल्यों का मजाक है. देश और दुनियाभर में अपनी भद्द पिटवाने वाला अमल है. सत्ता के लिए नेता और सियासत अवाम को ऐसे ही छलती रहेगी.. एक दूसरे से भिड़ाती रहेगी..
अच्छा होगा कि ये आवाज़ सच्चे सनातनियों की तरफ से आये कि मस्जिदों को न ढंका जाए.. ऐसी व्यवस्था बने, ऐसा भरोसा पैदा हो कि होली का जुलूस जब मस्जिद के आगे से गुज़रे तो मस्जिद का नमाज़ी सफ़ेद कुरता पजामा और टोपी पहनकर उसे देखने के लिए मस्जिद के दरवाजे पर खड़ा हो जाए.. जी चाहे तो जुलूस में घुसकर थोडा नाच ले.. झूम ले! अगर ऐसा नहीं हुआ तो मस्जिदों में लिपटा ये तिरपाल महज तिरपाल नहीं रह जाएगा. ऐसा लग रहा है कि ये लाज का वह घूंघट है जिसे ओढ़कर भारत माता कह रही हो मैं क्या थी.. तुमने क्या बना दिया मुझे!