Author: Priyanka Saurabh

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार

प्रियंका सौरभ इंटनेट इस्तेमाल करने वाली स्त्रियों की बढ़ती तादाद एक सकारात्मक बदलाव है। लेकिन, इसने और अधिक संख्या में महिलाओं को वर्चुअल दुनिया में ख़तरों के जोखिम में डाल दिया है। हाँ, ऐसा लग रहा है कि महिलाओं के प्रति ऑनलाइन अपराध की घटनाएँ बढ़ रही हैं। इनमें यौन उत्पीड़न, धमकाने, डराने बलात्कार या जान से मार देने की धमकियाँ देने, साइबर दुनिया में पीछा करने और बिना सहमति के तस्वीरें और वीडियो शेयर करने जैसी वारदातें शामिल हैं। सर्वे में पता चला है कि 60 प्रतिशत लड़कियों और महिलाओं ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उत्पीड़न का सामना किया…

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प्रियंका सौरभ नमो ड्रोन दीदी योजना, पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान क्षेत्रों में ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने का एक अग्रणी प्रयास है। यह पहल महिलाओं को प्रशिक्षण प्रदान करती है, जिससे वे ड्रोन संचालित करने और स्थानीय किसानों को आवश्यक कृषि सेवाएँ प्रदान करने में सक्षम हो जाती हैं। कृषि आधुनिकीकरण के साथ महिला सशक्तिकरण को जोड़कर, यह योजना सामाजिक प्रगति और आर्थिक विकास दोनों को बढ़ावा देती है। इस योजना में भाग लेने वाली महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों में संगठित किया जाता है, जहाँ वे हवाई सर्वेक्षण, सटीक कृषि तकनीक और कीटनाशक छिड़काव सहित ड्रोन संचालन में कौशल…

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प्रियंका सौरभ महामारी के बाद भारत में बच्चों के लिए स्क्रीन का समय काफ़ी बढ़ गया है, उनके सामाजिक और मनोवैज्ञानिक विकास पर इसके प्रभावों के बारे में चिंताएँ बढ़ रही हैं, जिससे संतुलित हस्तक्षेप की आवश्यकता है। अत्यधिक स्क्रीन समय आमने-सामने की बातचीत को कम करता है, जिससे सामाजिक कौशल विकास में बाधा आती है। 2024 के अध्ययन में पाया गया कि प्रतिदिन 3 घंटे से अधिक स्क्रीन समय वाले बच्चों में सामाजिक जुड़ाव का स्तर कम था। स्क्रीन अक्सर पारिवारिक बातचीत की जगह ले लेती है, जिससे पारिवारिक सामंजस्य और साझा अनुभव कम हो जाते हैं। परिवारों को…

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प्रियंका सौरभ आज की भागती दौड़ती ज़िन्दगी में लोग अपनी परंपरा को भूलते जा रहे हैं। इसका परिणाम है कि आज देश में पर्यावरण संकट के साथ-साथ कई तरह की समस्या उत्पन्न हो रही है। जिसके चलते सभी लोग और जीव-जंतु के जीवन पर संकट है। इस परंपरा में एक दीपावली पर्व पर मिट्टी के दीये जलाना भी है। जिसको आज लोग भूलते जा रहे हैं और उसकी जगह पर इलेक्ट्रानिक लाइटों का उपयोग कर रहे हैं। लेकिन जो सुंदरता मिट्टी के दीये जलने पर दिखती है वह इलेक्ट्रानिक लाइटों के जलने से नहीं। इस बात को स्वयं लोग भी…

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प्रियंका सौरभ आज की भागती दौड़ती ज़िन्दगी में लोग अपनी परंपरा को भूलते जा रहे हैं। इसका परिणाम है कि आज देश में पर्यावरण संकट के साथ-साथ कई तरह की समस्या उत्पन्न हो रही है। जिसके चलते सभी लोग और जीव-जंतु के जीवन पर संकट है। इस परंपरा में एक दीपावली पर्व पर मिट्टी के दीये जलाना भी है। जिसको आज लोग भूलते जा रहे हैं और उसकी जगह पर इलेक्ट्रानिक लाइटों का उपयोग कर रहे हैं। लेकिन जो सुंदरता मिट्टी के दीये जलने पर दिखती है वह इलेक्ट्रानिक लाइटों के जलने से नहीं। इस बात को स्वयं लोग भी…

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