निर्मल रानी
उत्तरांचल का व्यस्त पर्यटक स्थल नैनीताल पिछले दिनों साम्प्रदायिकतावादियों के निशाने पर आ गया। ख़बरों के अनुसार 12 अप्रैल को नैनीताल में एक 12 वर्षीय नाबालिग़ लड़की के साथ उस्मान नामक एक वृद्ध आयु के आरोपी द्वारा कथित तौर पर बलात्कार किया गया। पीड़िता की मां द्वारा घटना की रिपोर्ट 30 अप्रैल को मल्लीताल थाने में दर्ज कराई गई। आरोप है कि आरोपी उस्मान स्कूल से आते समय बालिका को बहला फुसलाकर कार में बिठाकर ले गया और उसने कार में ही बच्ची के साथ दरिन्दिगी की। पुलिस द्वारा आरोपी को फ़ौरन गिरफ़्तार कर जेल भेजा जा चुका है । परन्तु प्राथमिकी दर्ज होते ही थाने में ही हिंदूवादी संगठनों की भीड़ इकट्ठी होनी शुरू हो गयी। और उसी दिन देर रात से लेकर अगले दिन 1 मई तक इस घटना के विरुद्ध जो भीड़ द्वारा जो तांडव किया गया। उसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। उस्मान की दरिन्दिगी का बदला उसके समुदाय के लोगों से लिया जाने लगा। चुन चुनकर मुसलमानों के घरों व दुकानों में आग लगाई जाने लगी। अनेक मस्जिदें तोड़ी गयीं व कई आग के हवाले कर दी गईं। सड़कों पर जुलूस निकालकर समुदाय विशेष के विरुद्ध नारेबाज़ी की गयी।
इस घटना का एक अत्यंत सम्प्रदायिकतापूर्ण दुखद पहलू यह भी रहा कि जब हालात को नियंत्रित करने के लिये मल्लीताल थाने में तैनात उत्तराखंड पुलिस के वरिष्ठ सब इंस्पेक्टर मोहम्मद आसिफ़ ख़ान जो ड्यूटी पर तैनात थे, जब वहां पहुंचे तो उन्मादी भीड़ ने उन्हें भी घेर लिया। उनके साथ धक्का-मुक्की की और वर्दी का कॉलर पकड़ कर खींचने की कोशिश की। वे भी वहां प्रदर्शनकारियों की उग्रता का शिकार हो गए। उग्र भीड़ में कुछ लोग उनका नाम पूछते हुए अभद्रता धक्कामुक्की करते देखे गये। भीड़ ने केवल धार्मिक आधार पर उन पर निशाना साधा और उन्हें कोतवाली के अंदर तक घसीट ले गए और कोतवाली में भी हंगामा करते रहे । इस घटना का वीडीओ भी सोशल मीडिया पसर शेयर हुआ और ख़ूब वायरल हुआ। इस घटना का दूसरा प्रभाव यह हुआ कि जो नैनीताल शांति व प्रकृतिक सौदर्य के लिये मशहूर था वह भी साम्प्रदायिकता व अचानक साम्प्रदायिक उपद्रव के नाम से कलंकित हो गया। इतना ही नहीं करोड़ों रूपये का पर्यटन प्रभावित हुआ। और ख़बर तो यह है कि अगले महीने यानी जून तक की बुकिंग अनेक पर्यटकों द्वारा रद्द करा दी गयी ।
एक ओर तो उपद्रवियों द्वारा एक व्यक्ति की दरिन्दिगी के चलते द्वारा उसके धर्म के लोगों के विरुद्ध जमकर फ़साद किया गया तो दूसरी तरफ़ इसी समाज के लोगों द्वारा उस्मान के विरुद्ध कई कड़े फैसले लिये गए। नैनीताल के मुस्लिम संगठन अंजुमन-ए-इस्लामिया द्वारा उस्मान को मुस्लिम समाज से बहिष्कृत करने का फ़ैसला लिया गया और उसके मस्जिद में प्रवेश पर रोक लगा दी गयी । साथ ही पीड़िता के इलाज से लेकर उसकी शिक्षा तक का पूरा ख़र्च उठाने की घोषणा की गयी। अंजुमन ने यथाशीघ्र आरोपी को सख़्त से सख़्त सज़ा दिलाने की मांग की तथा इस घृणित कार्य की घोर निंदा की व इसे अमानवीय कृत्य बताया। परन्तु इस साम्प्रदायिक उपद्रव ने वही सवाल एक बार फिर खड़ा कर दिया कि क्या किसी एक व्यक्ति के अपराध की सज़ा उसके पूरे धर्म व उसके धर्मस्थलों को दी जा सकती है ? और दूसरा यह भी कि बलात्कार जैसे अपराध पर उपद्रवियों का ग़ुस्सा क्या किसी अन्य समाज से जुड़े आरोपियों पर भी कभी उतरते देखा गया ? और तीसरा यह भी कि आख़िर वह कौन लोग हैं जो समय समय पर बलात्कारियों व हत्यारों के पक्ष में दिखाई देते हैं ?
याद कीजिये,इसी उत्तरांचल राज्य में सितंबर 2022 में 19 वर्षीय अंकिता की हत्या एक रिज़ॉर्ट संचालक और भाजपा नेता व पूर्व राज्यमंत्री विनोद आर्य के बेटे पुलकित आर्य, रिज़ॉर्ट मैनेजर सौरभ भास्कर और एक अन्य रिसोर्ट कर्मी अंकित द्वारा कर दी गयी थी। अंकिता विनोद आर्य के स्वामित्व वाले वंतरा रिज़ॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी कर रही थी । पुलिस के अनुसार अंकिता को रिसोर्ट के ‘विशेष ‘ मेहमानों के साथ ‘अनैतिक कार्य’ करने के लिए मजबूर किया जा रहा था और जब अंकिता ने इस बारे में मना किया व इस घटना को दूसरों को बताने की बात कही तो उसकी हत्या कर दी गई। हत्या के बाद अंकिता का शव ऋषिकेश- हरिद्वार मार्ग पर चीला शक्ति नहर के पावर हाउस के पास बरामद किया गया है। उस समय हत्यारे पुलकित का भाई अंकित भी उत्तराखंड में अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग का उपाध्यक्ष था। यह पूरा परिवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा है। अंकिता भी उत्तरांचल की ही बेटी थी और पौड़ी गढ़वाल के डोम श्रीकोट की रहने वालीं थीं। इस घटना के बाद न तो किसी भीड़ का ख़ून खौला न कोई हिंदूवादी संगठन सड़कों पर उतरते नज़र आया ? आख़िर क्यों?
हाँ महिला अस्मिता के इन साम्प्रदायिकतावादी उपद्रवियों की भीड़ उस समय हत्यारों और बलात्कारियों के पक्ष में ज़रूर खड़ी दिखाई दी थी जब 2018 में कश्मीर में आठ साल की मासूम बच्ची असिफ़ा के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटना अंजाम दी गयी थी। और कई दिनों तक कई लोगों द्वारा मंदिर परिसर के एक कमरे में मंदिर के पुजारी सहित अनेक लोगों द्वारा उसका बलात्कार करने के बाद उसका शव झाड़ियों में फ़ेंक दिया गया था। उस समय राज्य में भाजपा व पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की गठबंधन सरकार थी। पुलिस द्वारा आसिफ़ा की मौत व बलात्कार के सिलसिले में एक सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी, चार पुलिस अधिकारियों और एक किशोर सहित आठ लोगों को गिरफ़्तार किया गया था। मगर देश का इतिहास याद रखेगा कि इन आरोपियों की गिरफ़्तारी ने साम्प्रदायिक रूप ले लिया। भाजपा सहित अनेक हिंदूवादी संगठन जम्मू में विरोध प्रदर्शन करने लगे। हिंदूवादी वकीलों द्वारा आरोप पत्र दायर करने के लिए पुलिस को अदालत में प्रवेश करने से रोकने की कोशिश की गयी । यहाँ तक कि सरकार में शामिल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो मंत्रियों व अनेक विधायकों ने आरोपियों के समर्थन में एक तिरंगा रैली निकाली। विश्व मीडिया में इस शर्मनाक घटना की ख़ूब चर्चा हुई थी।
तो क्या अंकिता व आसिफ़ा की अस्मिता महिला अस्मिता नहीं थी ? क्या बिल्क़ीस बानो की अस्मिता महिला अस्मिता का सवाल नहीं है ? मणिपुर में नग्न परेड करा दी जाती है किसी का ख़ून नहीं खोलता? आसाराम जैसे अनेक बलात्कारियों पर किसी का ख़ून नहीं खोलता? हाथरस बलात्कार कांड में भी हत्यारों व बलात्कारियों के समर्थन में लोग जुट जाते हैं ? यह आखिर कैसा देश और कैसा न्याय है जहाँ एक विशेष विचारधारा के लोगों को अपराध से नहीं बल्कि अपराधी के धर्म से नफ़रत है?