रमेश तिवारी
भाजपा के सियासी पंडाल में चर्चा गरम है। चर्चा यह है कि महाराष्ट्र के सबसे बड़े बीजेपी नेता नीतिन गडकरी को गुजरात लॉबी ने महाराष्ट्र के चुनाव से बाहर कर दिया है। कोई सभा करने या सीट शेयरिंग करने, टिकट वितरण करने,चुनाव में सलाह देने अथवा चुनावी रणनीति बनाने आदि से बाहर कर दिया गया है। आखिर ऐसी कौन सी वजह है कि गडकरी को गुजरात लॉबी तवज्जो नहीं देना चाहती। या फिर गडकरी स्वयं महाराष्ट्र के विधान सभा चुनाव से खुद को अलग कर लिया है।
इसे भी पढ़ें =डिजिटल अरेस्ट होता डिजिटल इंडिया!
विदर्भ में कांग्रेस के कदम तेज
क्या गुजरात लॉबी गडकरी को कोई सियासी बेनिफिट नहीं देना चाहती या लेना नहीं चाहती। उन्हें महाराट्र के चुनाव के लाइम लाइट से दूर रखा जा रहा है। क्या गडकरी गुटबंदी के शिकार हो गए हैं? लगता यही है। बीजेपी का मौजूदा नेतृत्व गडकरी को लेकर कंर्फटेबल नहीं है,यही माना जा रहा है। जबकि विदर्भ में कांग्रेस बड़ी तेजी से उभर कर आई है।गडकरी विदर्भ के सबसे बड़े नेता है। बीजेपी खाने में चर्चा है कि मोदी के पी। एम। बन जाने के बाद भी गडकरी और गुजरात लॉबी के बीच छत्तीस का रिश्ता बना हुआ है।
महाराष्ट्र बिन गडकरी
गुजरात लॉबी गडकरी की महाराष्ट्र में क्या सियासी उपयोगिता है,जानकर भी उनसे बायें हो रही है। यानी यह कह सकते हैं गुजरात लॉबी और गडकरी के बीच आल इज वेल नहीं है। इस बार विधान सभा चुनाव में महाराष्ट्र बिन गडकरी। लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद भी गडकरी से गुजरात लॉबी दूरी बना लिया है। सवाल यह है कि महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव से गडकरी को अलग क्यों कर दिया गया है? क्या गुजरात लॉबी गडकरी से डर रही है। या फिर उसे लग रहा है कि जनता और विपक्ष के बीच गडकरी ज्यादा लोकप्रिय हैं। वो चाहेंगे तो खेला कर देंगे। जबकि गुजरात लॉबी को पता है विदर्भ में 62 सीट है। और इस इलाके के कद्दावर नेता नीतिन गडकरी हैं। क्या सियासी अदावत इतनी ज्यादा बढ़ गयी है कि गडकरी और गुजरात लॉबी के बीच शीतयुद्ध बढ़ गया है? क्या गुजरात लॉबी को लगता है कि यदि महाराष्ट्र चुनाव गडकरी के नेतृत्व में लड़ा गया और जीत गए तो पार्टी के अंदर मोदी की जगह गडकरी को पी। एम। बनाने की बात फिर से होने लगेगी। इस डर की वजह से गुजरात लॉबी गडकरी को चुनाव से दूर रखा है। वैसे गडकरी कह चुके हैं कि मैं प्रोफेशनल राजनीति नही करता। मैं तो अपने आॅफिस की फाइल निपटाने में लगा हूँ।
गडकरी ने खिलाफत की
जानकारों का कहना है कि गडकरी स्वयं महाराट्र के चुनाव से खुद को अलग कर लिया है। उसकी वजह यह है कि गुजरात लॉबी ने महाराष्ट्र में जो सियासी अपराध किये हैं, उसका पाप अपने सिर पर नहीं लेना चाहते। उद्धव की सरकार को गिराना,शरद पवार की पार्टी एनसीपी को तोड़ना कुछ लोगों को जेल भेजना। इन सब वजह से बीजेपी का एक खेमा चुनाव को लेकर संशय में है। लाड़ली बहन योजना में 1500 रुपए दिया जा रहा है। इसकी खिलाफत गडकरी कर चुके हैं। कब तक वोटर को पैसा दिया जाता रहेगा।
कूटनीति की राजनीति से दूर
बीजेपी का एक गुट मानता है कि यदि नीतिन गडकरी होते तो शिवसेना न टूटती। उद्धव की सरकार न गिरती। उनकी राजनीति कूटनीति की नहीं है। वो विकास की राजनीति करते हैं। महाराष्ट्र में मिलजुल कर रहने की राजनीति होती है। वर्ष 2014 के बाद से महाराष्ट्र की राजनीति बदल गयी है। विपक्ष ने गडकरी को आॅफर भी दिया है कि वो चाहें तो हम पी। एम। बना सकते हैं। लेकिन उन्होने इस आॅफर को दरकिनार कर दिया। महाराष्ट्र में व्यक्तिगत राजनीति नहीं होती। भाई चारे की राजनीति होती है। ईडी और इनकम टैक्स के छापे कभी नहीं पड़े। बीजेपी का एक गुट मानता है कि घृणा की राजनीति हावी हो गयी है। धर्म के आड़ मे लड़ाने की राजनीति बढ़ गयी है। गडकरी की राजनीतिक प्रकृति से मेल नहीं खाती गुजरात लॉबी की राजनीति।
महाराष्ट्र का नुकसान गुजरात के लिए
मराठा वर्सेस गुजरात का झगड़ा पुराना है। फिर भी दिल से कोई नहीं लिया। लेकिन राजनीतिक नजरिये से देखे तो महाराष्ट्र के विकास को गुजरात लॉबी रोक रही है। महाराष्ट्र का नुकसान गुजरात के लिए किया जा रहा है। कई प्रोजेक्ट महाराष्ट्र से निकाल कर गुजरात शिफ्ट कर दिया गया। मसलन वेदांता लिमिटेड ने गुजरात में सेमीकंडक्टर बनाने की फैक्टरी लगाने की घोषणा की थी। कंपनी यह फैक्टरी ताइवान की कंपनी के साथ मिलकर स्थापित करने वाली थी। बीस अरब डॉलर की लागत आती। इसे केन्द्र सरकार ने गुजरात के गांधीनगर में शिफ्ट कर दिया।
बीजेपी कुल्हाड़ी मार रही
बीजेपी में गडकरी को लेकर चर्चा है कि जिस वक्त गडकरी को लेकर चलना चाहिए था गुजरात लॉबी ने उन्हे अलग- थलग कर दिया। लोकसभा चुनाव उन्हें हराने की कोशिश की गयी। उन्हें पता हो गया और वो अपने आप को अपने लोकसभा तक सिमित कर लिया था। गडकरी महाराष्ट्र देखते तो बीजेपी को लोकसभा में नौ सीट नहीं मिलती। जबकि बीजेपी हमेशा बीस सीट के आसपास जीतती आई है। जाहिर सी बात है कि गडकरी को गुजरात लॉबी किनारे करके महाराष्ट्र में उनका वजूद कम करना चाहती है। लोगों को बताना चाहती है कि सोनिया गांधी,विपक्ष और यहां तक कि मुस्लिम वोटर भी जिसकी तारीफ करता है,उसकी सियासी जरूरत गुजरात लॉबी को नहीं है। उनके बगैर भी महाराष्ट्र हम जीत सकते हैं। एकनाथ शिंदे और एनसीपी अजीत पवार के साथ मिलकर गुजरात लॉबी महाराष्ट्र विधान सभा में कितनी सीट लाती है,यह गडकरी चुनावी मैदान से बाहर रहकर देखना चाहते हैं।
हैरान करने वाला फैसला
महाराष्ट्र में जटिल सियासी समीकरण के बावजूद गुजरात लॉबी को भरोसा है कि हिन्दू कार्ड के दम पर स्थानीय गुटबाजी से निबटने, बगावती सुरों पर काबू पाते हुए बेहतर नतीजे हासिल करने में सफल रहेंगे। इसलिए कि आरएसएस सहयोग कर रहा है। संघ ने 150 स्वयं सेवकों की संभाग स्तरीय समितियां और विधान सभा वार समूह बनाए हैं। जो जमीन स्तर पर जुड़ने मोदी सरकार की योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने का काम करेंगे। मराठावाड़ा में मुस्लिम सदस्यों के विरोध प्रदर्शन और हालिया घटनाओं से नैरेटिव को आगे बढ़ने का मौका दे दिया है। जिसका लाभ कांग्रेस को हो सकता है। चूंकि हरियाणा की सियासी जमीन से महाराष्ट्र अलग है। ऐसे में गुजरात लॉबी का गडकरी को किनारे करना हैरान करता है।