हरिकृष्ण पाल
माना जाता है कि जल इस धरा की सबसे अमूल्य निधियों में से है और मानव जाति प्रकृति द्वारा प्रदृत्त इस अमूल्य निधि को लगातार बर्बाद करने पर आतुर है. शायद एक यही बड़ी वजह है कि आगामी समय में जल को सबसे बड़े संकट के तौर पर देखा जा रहा है. आज हम उदय सर्वोदय के मिसाल कॉलम में आपको मिलवाएंगे एक ऐसे शख्स से जिसने अपना सारा जीवन नदियों के संरक्षण और उनको जीवन दान देने में लगा दिया. उन्हें भारत के जलपुरुष के नाम से भी जाना जाता है.
राजेन्द्र सिंह का जन्म 6 अगस्त 1959 को, उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के डौला गाँव में हुआ था. राजेन्द्र सिंह भारत के प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता हैं. वे जल संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने के लिए प्रसिद्ध हैं. उन्होंने तरुण भारत संघ (गैर-सरकारी संगठन) के नाम से एक संस्था बनाई. उन्होंने अपने जीवन के 46 साल जल संरक्षण के काम में लगा दिए. उनकी मेहनत का ही नतीजा था कि करीब एक हजार गांवों को पानी मुहैया कराया गया.
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राजेंद्र सिंह ने शुरूआती पढ़ाई अपने गांव से ही की. हालांकि, उन्होंने हिंदी से एमए किया और भारतीय ऋषिकुल आयुर्वेदिक महाविद्यालय से आयुर्वेद की डिग्री ली. इसके बाद उन्होंने छात्र राजनीति में भी कदम रखे. कॉलेज के दिनों में वह छात्र युवा संघर्ष वाहिनी से भी जुड़े. इसके बाद जब जयप्रकाश नायारण के नेतृत्व में देशभर में आंदोलन चरम पर था तो वह इससे काफी प्रभावित हुए. हालांकि, कुछ समय बाद साल 1980 में उन्हें सरकारी नौकरी मिल गई. जिसके बाद वह नौकरी करने के लिए जयपुर चले गए.
राजेंद्र सिंह की शादी को डेढ़ साल ही हुए थे कि उन्होंने अपनी नौकरी को छोड़ दिया. उन्होंने पानी की समस्या को हल करने का बीड़ा उठाया. बता दें कि साल 1975 में तरुण भारत संघ की नींव राजेंद्र सिंह ने रखी थी. इसने करीब एक हजार गांवों को पानी भी मुहैया कराया. इसके बाद राजेंद्र सिंह ने जल नीति में सुधार की मांग, गंगा को निर्मल कर गंगत्व बचाने, गंगा व श्वेत पत्र जारी करने, जल साक्षरता और जंगल बचाओ-जीवन बचाओ जैसे अभियान चलाए.
राजेंद्र सिंह की मेहनत का ही नतीजा था कि राजस्थान में 11800 जल संरचनाएं बनवाई गईं. इसके अलावा उन्होंने देशभर में अरवरी, रुपारेल, सरसा, भगानी, महेश्वरा, साबी, तबिरा, सैरनी, जहाजवाली, अग्रणी, महाकाली व इचनहल्ला समेत 12 नदियों को पुनर्जीवित किया. साथ ही उन्होंने 60 देशों में जल संरक्षण के लिए यात्रा भी की.
राजेंद्र सिंह ही थे, जिन्होंने प्राचीन भारतीय तकनीक से गांव की तस्वीर को बदल दिया। उन्होंने बारिश के पानी को रोकने के लिए छोटे-छोटे तालाब बनाए थे। जिससे गांवों में होने वाली पानी की कमी को दूर किया जा सका। उनके इस काम की तारीफ पूर्व राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने भी की थी। इसके बाद उन्हें भारत का जलपुरुष कहा जाने लगा।
उल्लेखनीय है कि राजेंद्र सिंह को उनके काम के लिए राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया। साल 2001 में उन्हें वाटर-हार्वेस्टिंग और जल प्रबंधन में समुदाय-आधारित प्रयासों के लिए रैमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा 2005 में ग्रामीण विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग के लिए जमनालाल बजाज पुरस्कार दिया गया।
मामासाल 2008 में द गार्जियन ने उन्हें 50 लोगों की सूची में शामिल किया था, जो पृथ्वी को बचा सकते हैं। इसके साथ ही 2015 में स्टॉकहोम वॉटर प्राइज, 2018 में हाउस आॅफ कॉमन्स, यूनाइटेड किंगडम में अहिसा सम्मान और साल 2019 में अमेरिका सियटल से अर्थ रिपेयर और नई दिल्ली में पृथ्वी भूषण सम्मान था।