रंजना सेन
भारत के अधिकतर क्षेत्रों में आज भी लड़कियों को खेलकूद में हिस्सा नहीं लेने दिया जाता है. इसके बीच हरिद्वार की आरती सैनी आज समाज और देश के लिए एक मिसाल हैं. महज 13 साल की उम्र में वुशु (ताइक्वांडो) सीखने वाली आरती अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीत चुकी हैं. आज वे हरिद्वार में अपनी वुशु एकेडमी चला रही हैं और लड़कियों को आत्मरक्षा के गुर सिखा रही हैं.
बचपन में तय कर लिया भविष्य
आरती जिस समय चौथी कक्षा में पढ़ती थीं, उसी वक्त उनके स्कूल में ताइक्वांडो प्रशिक्षण का एक कैंप लगा था. उसमें हिस्सा लेकर वह इतना प्रेरित हुर्इं कि उन्होंने इसी खेल में अपना भविष्य तलाशने की ठान ली. आरती ने इसके लिए कड़ी मेहनत की. वो वुशु का प्रशिक्षण लेने के लिए अपने घर से 15 किलोमीटर दूर बुढ़ाना के एकेडमी में जाती थीं. उस वक्त कई लोगों ने उन पर उंगलियां भी उठार्इं. अपने भाई-बहनों में तीसरे नंबर की आरती आज हरिद्वार शहर की आन-बान व शान हैं.
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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीते कई पदक
प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. अपने शानदार खेल से पदकों का ढेर लगा दिया. आरती ने साल 2003 में पंजाब में आयोजित विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता. इसके बाद 2004 में दिल्ली में हुई इंटरनेशनल चैंपियनशिप में रजत और 2007 में नेपाल में आयोजित चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर वुशु की दुनिया में सनसनी मचा दी. उपलब्धि की बात करें तो अब तक आरती पदकों का शतक पूरा कर चुकी हैं.
पति का मिला साथ
2007 में शादी के बाद वह हरिद्वार के मिस्सरपुर गांव आ गर्इं, लेकिन मार्शल आर्ट के प्रति अपने समर्पण को जारी रखा. इसी गांव में आरती ने ताइक्वांडो एकेडमी खोली. आज वे इस एकेडमी में कई खिलाड़ियों को आत्मरक्षा के गुर सिखा रही हैं. इस काम में उनके पति ने भी उनका बखूबी साथ दिया.
संघर्षों के बाद हासिल किया मुकाम
अंतरराष्ट्रीय ताइक्वांडो खिलाड़ी आरती का कहना है कि काफी संघर्ष के बाद उन्होंने यह मुकाम हासिल किया है. उनका कहना है कि वे ऐसा नहीं चाहतीं कि किसी और को भी उनकी तरह संघर्ष करना पडेÞ. इस वजह से वह खिलाड़ियों की पूरी मदद करती हैं. आज जब देश और समाज में महिला उत्पीड़न के मामले बढ़ते जा रहे हैं, ऐसे में आरती उन महिलाओं के लिए वाकई एक मिसाल हैं.