अजय कुमार
उत्तर प्रदेश की रिक्त दस में से नौ विधानसभा सीटों पर 20 नवबंर को उपचुनाव कराने का फैसला लेकर चुनाव आयोग ने चुनाव की तारीखों को लेकर चल रहे सभी कयासों पर विराम लगा दिया है। बीजेपी, समाजवादी पार्टी ने अपनी-अपनी बिसात बिछा दी है। दिग्गजों के हाथ में चुनाव की कमान सौंपने के दोनों ही दल प्रत्याशियों के चयन में भी सतर्कता बरत रहे है। सपा ने राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल सिंह यादव सहित कई दिग्गजों को अगस्त में ही छह सीटों का चुनाव प्रभारी बनाकर चुनावी बिगूल फूंक दिया है। इन छह सीटों पर ही अब तक सपा ने अपने प्रत्याशी भी घोषित किए हैं। अब शेष चार सीटों में से सपा दो और पर अपने उम्मीदवार उतार सकती है। सपा गठबंधन में गाजियाबाद सदर सीट कांग्रेस को दे सकती है। सूत्रों के मुताबिक अलीगढ़ की खैर सीट के लिए भी सपा व कांग्रेस में बात चल रही है।
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उत्तर प्रदेश की जिन नौ सीटों पर उपचुनाव की घोषणा की गई, उनमें वर्ष 2022 के चुनाव में चार सीटें करहल, कटेहरी, कुंदरकी व सीसामऊ सपा ने जीती थीं। मीरापुर सीट पर आरएलडी ने सपा के साथ गठबंधन में जीत दर्ज की थी। सपा ने शिवपाल सिंह यादव को कटेहरी सीट की कमान सौंपी है। फैजाबाद के सांसद अवधेश प्रसाद और विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी यादव को मिल्कीपुर सीट का प्रभारी बनाया है। हालांकि, इस सीट पर अभी उपचुनाव घोषित नहीं हुआ है। चंदौली के सांसद वीरेंद्र सिंह को मझवां, पूर्व मंत्री चंद्रदेव यादव को करहल, पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव इंद्रजीत सरोज को फूलपुर और विधायक राजेंद्र कुमार को सीसामऊ सीट का प्रभारी बनाया गया है। सपा ने अब तक गाजियाबाद, खैर, मीरापुर और कुंदरकी सीट पर अपने प्रभारी घोषित नहीं किए हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने करहल सीट जीती थी। अखिलेश यादव ने भतीजे तेज प्रताप यादव को करहल से उतारा है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की बेटी राजलक्ष्मी यादव के पति तेज प्रताप यादव वर्ष 2014 में मैनपुरी सीट से सांसद चुने गए थे। इस बार लोकसभा चुनाव में उनको कन्नौज से प्रत्याशी घोषित किया गया था, हालांकि अंतिम समय में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के चुनाव मैदान में उतर आए थे।
कानपुर की सीसामऊ सीट से सपा के इरफान सोलंकी पिछली बार विजयी हुए थे। कोर्ट से मिली सजा के चलते विधायकी गंवाने वाले इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी इस सीट से उपचुनाव लड़ेंगी। तीन बार के विधायक रह चुके मुज्तबा सिद्दीकी को फूलपुर, अंबेडकरनगर से सांसद बनने के बाद लालजी वर्मा की सीट कटेहरी पर उनकी पत्नी शोभावती वर्मा और मीरजापुर की मझवां सीट से डा. ज्योति बिंद सपा प्रत्याशी होंगी। डॉ. ज्योति बसपा से तीन बार विधायक और भदोही से भाजपा के सांसद रहे डॉ. रमेश बिंद की बेटी हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सभी सीटों पर अपनी यूथ विंग को जुटने के निर्देश दिए हैं। वह खुद भी उप चुनाव की कमान संभालेंगे। अखिलेश उपचुनावों में प्रचार से दूरी बनाकर रखते हैं।
उधर, लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन से झटका खा चुकी भाजपा के लिए उपचुनाव अग्निपरीक्षा माना जा रहा है। पार्टी इस चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर लोकसभा चुनाव का हिसाब चुकता करने के साथ ही विधानसभा चुनाव के लिए बड़ा संदेश देना चाहती है। उपचुनाव की तारीखों के एलान से पहले ही सत्ताधारी दल ने जमीनी मोर्चे पर अपने सभी मंत्रियों की तैनाती कर दी थी। रालोद का साथ भाजपा की उम्मीदों को और परवान चढ़ा रहा है। अखिलेश यादव के जिस पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की रणनीति ने लोकसभा चुनाव में भाजपा को चौंकाया था, उससे पार्टी अब काफी हद तक उबर चुकी है। इसके अलावा कांग्रेस और सपा द्वारा पिछड़ों और दलितों में फैलाए गए आरक्षण के भ्रम को भी दूर करने में कुछ हद तक सफल रही है। उप चुनाव में भाजपा की सीधी रणनीति अपनी सभी सीटों को बचाए रखने के साथ ही विपक्षी खेमें में सेंध लगाने की है। इन सीटों पर योगी सरकार के 30 मंत्रियों की ड्यूटी लगाई गई है। इनमें 14 कैबिनेट और 16 राज्यमंत्री हैं।
बीजेपी और सपा के साथ-साथ लोकसभा चुनाव में सपा के साथ मिलकर प्रदेश में अप्रत्याशित परिणाम हासिल करने के बाद कांग्रेस की नजर विधानसभा उपचुनाव पर भी है। उपचुनाव में सीटों पर कांग्रेस की हिस्सेदारी भले ही कम होगी पर पार्टी आने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अपनी सक्रियता बनाए रखने का पूरा प्रयास कर रही है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय पहले भी यह साफ कर चुके हैं कि उनकी पार्टी का लक्ष्य भाजपा को हराना है। सपा से गठबंधन के चलते कांग्रेस के हिस्से खैर व गाजियाबाद की दो सीटें आने की संभावना है। कांग्रेस ने भाजपा व रालोद के हिस्से रहीं पांच सीटों पर अपनी दावेदारी की थी। मिल्कीपुर सीट पर अभी चुनाव की घोषणा नहीं हुई है। जबकि कुंदरकी व मीरापुर सपा अपने पास रखना चाहती है। ऐसे में कांग्रेस सभी सीटों पर अपने संगठन को मजबूत करने का प्रयास करेगी, जिसका लाभ उसे आगे मिल सके।
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बात बसपा की कि जाये तो यूपी में नौ विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में बसपा एकला चलो की तर्ज पर ही अपने उम्मीदवार उतारेगी। पिछले लोकसभा चुनाव में भी बसपा ने किसी दल से गठबंधन नहीं किया था। एनडीए और आईएनडीआईए से दूर रहते हुए चुनाव मैदान में उतरी बसपा को एक भी सीट पर सफलता नहीं मिली थी। पिछले दिनों हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में मायावती ने जरूर इनेलो से गठबंधन किया था, लेकिन एक भी सीट जीतना तो दूर, पार्टी के वोट भी पहले से घट गए। ऐसे में बसपा प्रमुख ने भविष्य में किसी भी राज्य के क्षेत्रीय दल से भी चुनावी गठबंधन न करने का निर्णय किया है।
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लेखक के निजी विचार हैं